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संदर्भ:
चोलनाइक्कन जनजाति: केरल के सामग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत चोलानाइकन जनजाति की एक बीमार और बिस्तर पर सीमित लड़की को शिक्षा प्रदान करने के लिए एक अनूठी पहल की गई है। राज्य के सामान्य शिक्षा विभाग ने इस जनजाति की विशिष्ट भाषा में 30 ऑडियो-वीडियो पाठ्य सामग्री तैयार की है, जिससे उसे अपनी मातृभाषा में सीखने का अवसर मिल सके।
चोलानायक्कन जनजाति (Cholanaikkan Tribe):
- नामकरण (Nomenclature):
- चोलानायक्कन को मलानायक्कन या शोलनायक्कन भी कहा जाता है।
- इन्हें “केरल की गुफावासी जनजाति” (Cavemen of Kerala) के रूप में जाना जाता है।
- नाम की उत्पत्ति: “शोला” या “चोला” = गहरी जंगल, “नायकन” = राजा
- वर्गीकरण (Classification): यह जनजाति विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) में शामिल है।
- जनसंख्या (Population): इनकी कुल संख्या 400 से भी कम है।
- आवास (Habitat):
- मलप्पुरम जिले की नीलांबुर घाटी में स्थित संरक्षित वनों में निवास करते हैं।
- उनकी बस्तियों को “जन्मम” कहा जाता है, जिनमें 2 से 7 परिवार मिलकर “चेम्मम” बनाते हैं।
- आजीविका (Occupation):
- मुख्य रूप से वन संसाधनों पर निर्भर रहते हैं।
- खेती नहीं करते क्योंकि हाथियों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने की आशंका अधिक रहती है।
- बाहरी दुनिया से अलगाव (Isolation from Outsiders):
- इनका क्षेत्र अत्यधिक प्रतिबंधित है।
- बाहरी लोगों को जंगल में प्रवेश और संसाधन एकत्र करने की अनुमति नहीं है।
- भाषा (Language):
- इनकी भाषा एक विशिष्ट द्रविड़ भाषा-भाषी बोली है।
- यह मलयालम और कन्नड़ से कुछ समानताएँ रखती है, लेकिन पूरी तरह अलग है।
- संस्कृति (Culture): इनके नामों मेंहिंदू पौराणिक कथाओं का कोई प्रभाव नहींदेखा जाता, जिससे इनका लंबे समय से अलग-थलग रहना स्पष्ट होता है।