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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
- शास्त्रीय भाषाएँ भारत की समृद्ध और गहन सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं, जो विभिन्न समुदायों के इतिहास, साहित्य, और परंपराओं को संरक्षित करती हैं।
- इस निर्णय के द्वारा, सरकार न केवल इन भाषाओं को सम्मानित कर रही है, बल्कि भारत के सांस्कृतिक विविधता के प्रतीकों को भी संरक्षित करने का प्रयास कर रही है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ इन भाषाओं की ऐतिहासिक जड़ों को समझ सकें और उनकी सराहना कर सकें।
- यह कदम राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा क्यों?
- किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का मुख्य उद्देश्य उसके ऐतिहासिक महत्व को पहचानना और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत के संरक्षक के रूप में उसकी भूमिका को मान्यता देना है।
- शास्त्रीय भाषाएँ हजारों वर्षों से भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों, दर्शन और मूल्यों को संरक्षित और प्रसारित करने में योगदान देती आई हैं।
- इन भाषाओं को शास्त्रीय मान्यता देकर सरकार उनकी पुरातनता, साहित्यिक परंपराओं और सांस्कृतिक ताने-बाने में उनके योगदान को स्वीकार करती है। यह मान्यता इन भाषाओं के महत्व को उजागर करती है, जो भारत की विरासत को समृद्ध करती हैं।
- इसके अलावा, इस दर्जे से इन भाषाओं के प्रचार, संरक्षण, और आगे के शोध को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आधुनिक दुनिया में उनकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए मानदंड:
- प्रारंभिक ग्रंथों की प्राचीनता:
- अत्यधिक प्राचीनता: किसी भी भाषा के प्रारंभिक ग्रंथों या अभिलिखित इतिहास की प्राचीनता एक हजार वर्षों से अधिक होनी चाहिए।
- 2005 और 2024 में इस मानदंड में संशोधन के बाद, प्राचीनता को 1500-2000 वर्षों की अवधि में विस्तारित किया गया।
- प्राचीन साहित्य का संग्रह:
- महत्वपूर्ण विरासत: भाषा के प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का एक संग्रह होना चाहिए, जिसे वक्ताओं की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।
- इसमें न केवल काव्य ग्रंथ बल्कि गद्य ग्रंथ भी शामिल होते हैं, जो ज्ञान का स्रोत होते हैं।
- मौलिक साहित्यिक परंपरा: साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और इसे किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार नहीं लिया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि भाषा का विकास स्वदेशी है और इसकी अपनी पहचान है।
- अलग पहचान: शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक भाषा से भिन्न हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।
- पुरालेखीय और अभिलेखीय साक्ष्य: शास्त्रीय भाषाओं में ज्ञान ग्रंथ होना चाहिए, जिसमें काव्य ग्रंथों के अलावा गद्य ग्रंथ और अन्य पुरालेखीय साक्ष्य शामिल हैं।
2024 में संशोधित मानदंडों का अनुसरण
2024 की भाषाई विशेषज्ञ समिति ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया, और बंगाली जैसी भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में विचार करने के लिए इन संशोधित मानदंडों को पूरा करने की सिफारिश की। यह सभी भाषाएँ न केवल प्राचीनता और साहित्यिक परंपरा में समृद्ध हैं, बल्कि उनकी मौलिकता भी महत्वपूर्ण है, जिससे इनका शास्त्रीय दर्जा प्राप्त करने का रास्ता प्रशस्त होता है।
अब तक कुल कितनी भाषाओं को शास्त्रीय घोषित किया गया है?
अब तक 11 भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। इनमें शामिल हैं:
पहले से घोषित शास्त्रीय भाषाएँ:
- संस्कृत
- तमिल
- तेलुगु
- कन्नड़
- मलयालम
- ओडिया
हाल में जोड़ी गई भाषाएँ (3 अक्टूबर, 2024 को घोषित):
- मराठी
- पाली
- प्राकृत
- असमिया
- बंगाली
भाषा |
मान्यता की तिथि |
अधिसूचना द्वारा |
स्रोत/अधिसूचना तिथि |
तामिल |
12 अक्टूबर, 2004 |
गृह मंत्रालय |
12 अक्टूबर, 2004 |
संस्कृत |
25 नवंबर, 2005 |
गृह मंत्रालय |
25 नवंबर, 2005 |
तेलुगू |
31 अक्टूबर, 2008 |
संस्कृति मंत्रालय |
31 अक्टूबर, 2008 |
कन्नडा |
31 अक्टूबर, 2008 |
संस्कृति मंत्रालय |
31 अक्टूबर, 2008 |
मलयालम |
8 अगस्त 2013 |
संस्कृति मंत्रालय |
8 अगस्त 2013 |
ओडिया |
1 मार्च 2014 |
संस्कृति मंत्रालय |
1 मार्च 2014 |
शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम:
- 2020 में, संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए।
- प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, शोध को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम पेश करने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान का निर्माण किया गया।
- मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए हैं।
- इसके अतिरिक्त, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं।
- शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालय की कुर्सियाँ और शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए समर्पित केंद्र भी प्रदान किए गए हैं।
किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित करने का प्रभाव:
- रोजगार के अवसर:
- शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता मिलने से शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।
- प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेज़ीकरण और डिजिटलीकरण में कार्य करने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता बढ़ती है, जिससे संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया जैसे क्षेत्रों में नए करियर की संभावनाएं खुलती हैं।
- शोध और संरक्षण को बढ़ावा:
- विद्वानों के लिए प्राचीन ग्रंथों और ज्ञान प्रणालियों के अध्ययन, संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
- इससे भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक पहचान को बढ़ावा मिलता है।
- गर्व और स्वामित्व की भावना:
- भाषाओं को शास्त्रीय मान्यता मिलने से बोलने वालों में गर्व की भावना जागृत होती है।
- यह राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने में मदद करता है और एक आत्मनिर्भर, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत के निर्माण में योगदान करता है।
निष्कर्ष:
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का निर्णय भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत में इन भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। यह न केवल उनके ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व को मान्यता देता है, बल्कि भारत की भाषाई विविधता को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित करता है।
इस पहल से अकादमिक और शोध के अवसरों को बढ़ावा मिलने, वैश्विक सहयोग को बढ़ाने और देश की सांस्कृतिक और आर्थिक वृद्धि में योगदान करने की उम्मीद है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन भाषाओं को सुरक्षित करके, सरकार आत्मनिर्भर भारत और सांस्कृतिक रूप से निहित भारत के उद्देश्यों के अनुरूप सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय एकीकरण को सुदृढ़ कर रही है।
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