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संदर्भ:
संवैधानिक नैतिकता: हाल के वर्षों में, भारत के संवैधानिक न्यायालयों ने “संवैधानिक नैतिकता” (constitutional morality) की बहुअर्थी अवधारणा को संविधान की व्याख्या और क़ानूनों की वैधता की जांच के एक उपकरण के रूप में अपनाया है। यह सिद्धांत संवैधानिक मूल्यों और न्याय के व्यापक दृष्टिकोण को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality):
संविधानिक नैतिकता उन सिद्धांतों और मूल्यों को संदर्भित करती है जो संविधान की नींव रखते हैं और सरकार और नागरिकों की क्रियाओं का मार्गदर्शन करते हैं।
- साझा मूल्यों का प्रतिबिंब: संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं बल्कि एक नैतिक दस्तावेज़ भी है जो समाज के साझा मूल्यों और आकांक्षाओं को दर्शाता है।
- संविधान की व्याख्या: यह विचार करता है कि संविधान की व्याख्या और कार्यान्वयन इन मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए, न कि केवल एक तकनीकी दस्तावेज़ के रूप में जिसे शाब्दिक रूप से अनुसरण किया जाए।
- संविधान में उल्लेख नहीं: संविधानिक नैतिकता शब्द का कोई स्पष्ट उल्लेख संविधान में नहीं है, फिर भी यह एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो संविधान की वास्तविक भावना को परिभाषित करती है।
संविधानिक नैतिकता के तत्व (Elements of Constitutional Morality):
संविधानिक नैतिकता के कुछ महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित हैं:
- कानून का शासन (Rule of Law): सभी व्यक्तियों और संस्थाओं को कानून के सामने समान रूप से जवाबदेह होना चाहिए, चाहे वह किसी भी पद पर हो।
- समानता का अधिकार (Right to Equality): सभी नागरिकों को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त होनी चाहिए और कोई भी व्यक्ति भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहिए।
- सामाजिक न्याय (Social Justice): संविधानिक नैतिकता यह सुनिश्चित करती है कि समाज के कमजोर वर्गों को न्याय और समान अवसर मिले।
- कानूनी प्रक्रिया का पालन (Due Process of Law): किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति या स्वतंत्रता से वंचित करने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty): प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बशर्ते कि यह समाज की सामान्य भलाई के खिलाफ न हो।
- व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression): नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जो लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संविधानिक नैतिकता और भारतीय संविधान की प्रस्तावना:
संविधानिक नैतिकता अपनी वास्तविकता भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पाई जाती है।
- प्रस्तावना का महत्व: प्रस्तावना संविधानिक मूल्यों और आदर्शों को स्पष्ट करती है, जो समाज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व के सिद्धांतों पर आधारित हैं।
- संविधानिक नैतिकता के प्रमुख तत्व:
- प्रस्तावना (Preamble)
- कानूनी शासन (Rule of Law)
- समानता का अधिकार
- राष्ट्र की एकता और अखंडता
- सामाजिक न्याय (Social Justice)
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty)
- व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- मूल अधिकारों का योगदान: संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक के मूल अधिकार (Fundamental Rights) भी संविधानिक नैतिकता में योगदान करते हैं, जो समाज के हर सदस्य की स्वतंत्र और सुरक्षित अस्तित्व के लिए आवश्यक अधिकारों की गारंटी प्रदान करते हैं।
संविधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) का महत्व:
संविधानिक नैतिकता एक लोकतांत्रिक समाज के कार्यकलाप के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है:
- नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा: यह नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने में मदद करती है, यह सुनिश्चित करती है कि सरकार कानून के शासन और लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों के प्रति जिम्मेदार हो।
- लोकतांत्रिक आदर्शों को बढ़ावा देना: यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता बनाए रखने में मदद करती है, यह सुनिश्चित करती है कि सरकार जनमत और संविधान के सिद्धांतों द्वारा सीमित हो।
- समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना: इसका उपयोग उन कानूनों या क़ानूनी प्रावधानों की व्याख्या करने में किया जा सकता है जो अब समय के साथ अप्रचलित हो गए हैं, इस प्रकार यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम बन सकता है।
- समावेशी समाज का निर्माण: यह सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है और विविधता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती है, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करके, चाहे उनका पृष्ठभूमि या पहचान कुछ भी हो।