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अजरबैजान की राजधानी बाकू में जारी COP29 सम्मेलन में भारत ने विकसित देशों पर गंभीरता की कमी का आरोप लगाते हुए विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में वित्तीय और तकनीकी मदद की आवश्यकता पर जोर दिया।
- COP29: भारत ने कहा कि जिन विकसित देशों के पास जलवायु कार्रवाई करने की सबसे बड़ी क्षमता है, उन्होंने लगातार अपने लक्ष्य बदले, जलवायु कार्रवाई में देरी की और वैश्विक कार्बन बजट का बहुत बड़ा हिस्सा अपने लिए इस्तेमाल किया।
COP29 सम्मेलन में भारत के मुख्य बिंदु:
- विकसित देशों पर नाराजगी: भारत ने आरोप लगाया कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन पर गंभीर चर्चा से बच रहे हैं और बार-बार अपने लक्ष्यों को बदलते रहे हैं।
- विकासशील देशों की वित्तीय आवश्यकता: भारत ने जोर देकर कहा कि बिना वित्तीय और तकनीकी सहायता के, विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना असंभव है।
- मिटिगेशन वर्क प्रोग्राम का उद्देश्य: भारत ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य देशों की मदद करना है, न कि उन्हें दंडित करना। यह हर देश की विशेष परिस्थितियों और जरूरतों का सम्मान करना चाहिए।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर फोकस: भारत ने विकसित देशों को ग्रीनहाउस गैसों के ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि उनके पास अधिक संसाधन और क्षमता है, फिर भी वे कार्रवाई में देरी कर रहे हैं।
- विकासशील देशों की सीमित क्षमता: भारत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों का सामना विकासशील देश कर रहे हैं, लेकिन उनके पास उबरने या अनुकूलित होने की पर्याप्त क्षमता नहीं है।
- कार्यवाही में रुकावट: भारत ने शिकायत की कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई प्रगति नहीं हुई है और विकासशील देशों को पर्याप्त चर्चा और कार्रवाई का अवसर नहीं मिल रहा है।
- वैश्विक कार्बन बजट: भारत ने आरोप लगाया कि विकसित देशों ने वैश्विक कार्बन बजट का बड़ा हिस्सा अपने लिए उपयोग कर लिया है, जिससे अन्य देशों के लिए सीमित विकल्प बचे हैं।
कार्बन बजट (Carbon Budget)
कार्बन बजट का परिचय
कार्बन बजट वह सीमा है, जिसके तहत पूरी मानवता को ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करना चाहिए, ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को प्री-इंडस्ट्रियल स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सके।
महत्व: यह पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत निर्धारित किया गया है।
कार्बन बजट कैसे काम करता है?
कुल उत्सर्जन सीमा तय की जाती है, जैसे एक साल या एक दशक के लिए।
इस सीमा को देशों या क्षेत्रों में बाँटा जाता है।
- ऐतिहासिक उत्सर्जन
- जनसंख्या
- आर्थिक गतिविधियों के आधार पर।
- भारत और कार्बन बजट
भारत का योगदान और स्थिति:
वार्षिक उत्सर्जन: भारत का वार्षिक उत्सर्जन चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों से काफी कम है।
वैश्विक उत्सर्जन में हिस्सा: 1850 से 2019 तक, भारत का हिस्सा कुल वैश्विक उत्सर्जन में 4% से कम है।
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (Per Capita Emission): भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन: 2.4 tCO2e (टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष)।
वैश्विक औसत: 6.3 tCO2e।
भारत की रणनीति (भारत का INDC – Intended Nationally Determined Contribution):
- उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य: 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी।
- स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य: 2030 तक कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना।
- पेरिस जलवायु समझौता (2015): वैश्विक तापमान वृद्धि को 5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमति।
- कोपेनहेगन जलवायु वार्ता (2009): विकसित देशों ने विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का वादा किया था।
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