सामान्य अध्ययन पेपर I: भौतिक भूगोल, महत्त्वपूर्ण भौगोलिक घटनाएँ, चक्रवात |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चक्रवात अल्फ्रेड ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से टकराया, जिससे व्यापक तबाही हुई। यह पिछले 50 वर्षों में क्षेत्र के सबसे खतरनाक तूफानों में से एक था। इसकी अधिकतम गति 130 किमी/घंटा दर्ज की गई।
चक्रवात अल्फ्रेड क्या है?
चक्रवात अल्फ्रेड एक उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) तूफान है, जो वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से टकराया है।
- यह चक्रवात दक्षिणी क्षेत्र में बना है और यह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है, जिससे इसके प्रभाव लंबे समय तक बने रहने की संभावना है।
- यह चक्रवात विशेष रूप से ब्रिस्बेन, गोल्ड कोस्ट, सनशाइन कोस्ट, बायरन बे और बैलीना जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
- इससे तेज़ हवाएं, भारी बारिश और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इससे पहले, इस क्षेत्र में 1974 में इतना शक्तिशाली चक्रवात आया था, जिससे व्यापक तबाही हुई थी।
- यह डबल आइलैंड पॉइंट (क्वींसलैंड) से लेकर ग्राफ्टन (न्यू साउथ वेल्स) तक के क्षेत्रों में ख़तरा पैदा कर सकता है।
- इसकी गति धीमी है और दक्षिणी निर्माण प्रारूप इसे अन्य चक्रवातों से अलग बनाते हैं।
चक्रवात अल्फ्रेड की मुख्य विशेषताएँ
- गठन स्थान – यह चक्रवात सामान्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बनने वाले चक्रवातों से भिन्न है। अल्फ्रेड अपेक्षाकृत अधिक दक्षिण में बना है, जहां आमतौर पर इस तरह के तूफान नहीं देखे जाते।
- श्रेणी और गति – इसे श्रेणी 2 का चक्रवात वर्गीकृत किया गया है, जिसकी निरंतर गति 95 किमी/घंटा और अधिकतम झोंकों की गति 130 किमी/घंटा दर्ज की गई है।
- धीमी गति – इसकी गति अपेक्षाकृत धीमी है, जिससे यह प्रभावित क्षेत्रों पर लंबे समय तक असर डाल सकता है। यह बिजली आपूर्ति बाधा और बाढ़ का मुख्य कारण बन सकता है।
- दिशा – इसका पश्चिमी दिशा में बढ़ना तस्मान सागर में बने उच्च-दबाव प्रणाली (हाई-प्रेशर सिस्टम) के कारण हो रहा है, जिससे यह अपनी सामान्य दिशा से हटकर पश्चिम की ओर बढ़ रहा है।
चक्रवातों की श्रेणियाँ
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चक्रवात अल्फ्रेड के धीमी गति से बढ़ने के मुख्य कारण
चक्रवात अल्फ्रेड की गति सामान्य चक्रवातों की तुलना में अधिक धीमी है, जिससे इसका प्रभाव लंबे समय तक बना रह सकता है। इसकी धीमी गति का मुख्य कारण वायुमंडलीय परिस्थितियाँ हैं, जो इसके मार्ग और तीव्रता को प्रभावित कर रही हैं।
- तस्मान सागर में उच्च-दबाव प्रणाली: तस्मान सागर के ऊपर स्थित एक मजबूत उच्च-दबाव प्रणाली (High-Pressure System) चक्रवात के मार्ग को प्रभावित कर रही है। यह दबाव प्रणाली पूर्वी दिशा से आने वाली हवाओं को अवरुद्ध कर रही है, जिससे अल्फ्रेड तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इस कारण यह पश्चिम दिशा में जनसंख्या घनत्व वाले इलाकों की ओर बढ़ रहा है, जिससे संभावित खतरे बढ़ गए हैं।
- कमजोर स्टीयरिंग हवाएँ: चक्रवातों को सामान्य रूप से आगे बढ़ाने वाली स्टीयरिंग हवाएँ (Steering Winds) इस समय कमजोर हैं, जिससे अल्फ्रेड एक ही क्षेत्र में अधिक समय तक बना रह सकता है। इन हवाओं की कमी के कारण चक्रवात को गति नहीं मिल रही है, जिससे यह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।
धीमी गति वाले चक्रवातों के प्रभाव
- भारी वर्षा और बाढ़: धीमी गति से आगे बढ़ने वाले चक्रवात किसी एक स्थान पर लंबे समय तक वर्षा करते हैं, जिससे जलभराव और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। अल्फ्रेड के शुरुआती अनुमानों के अनुसार, यह तट पर जल्दी पहुंचकर आगे बढ़ जाता, लेकिन अब इसके लंबे समय तक क्षेत्र में बने रहने की संभावना है, जिससे बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो गई है।
- समुद्री लहरों का उग्र रूप: चक्रवात जितना अधिक समय तट के पास रहेगा, उतनी ही अधिक समुद्री लहरों की ऊँचाई बढ़ती जाएगी। इससे तटीय क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव (Erosion) तेज होगा, जिससे आवासीय और व्यावसायिक ढांचे को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, यह मछली पकड़ने और नौवहन (Navigation) को भी प्रभावित कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि चक्रवातों के गठन और तीव्रता को प्रभावित कर सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसे क्षेत्र भी चक्रवातों से प्रभावित होने लगे हैं, जहाँ पहले ऐसे तूफान नहीं आते थे। इसका प्रभाव कृषि, जल आपूर्ति, बुनियादी ढांचे और समुद्री पारिस्थितिकी पर पड़ सकता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात: परिस्थितियाँ, नामकरण और प्रभाव
उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone) महासागरों में उत्पन्न होने वाले प्रचंड तूफान होते हैं, जो तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं और भारी तबाही मचाते हैं। ये तेज़ हवाओं, अत्यधिक वर्षा और समुद्री तूफानों के कारण व्यापक विनाश का कारण बनते हैं। इनकी दिशा और गति पर कई कारक प्रभाव डालते हैं, जिससे इनका स्वरूप भौगोलिक रूप से भिन्न हो सकता है।
- चक्रवातों के विभिन्न नाम: विश्व के विभिन्न महासागरीय क्षेत्रों में ये चक्रवात अलग-अलग नामों से पहचाने जाते हैं—
- भारतीय महासागर में इन्हें चक्रवात (Cyclone) कहा जाता है।
- अटलांटिक महासागर में इन्हें हरिकेन (Hurricane) कहा जाता है।
- पश्चिमी प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में ये तूफान (Typhoon) कहलाते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर इन्हें विली-विलीज़ (Willy-Willies) के नाम से जाना जाता है।
- अनुकूल परिस्थितियाँ: चक्रवातों के बनने के लिए कुछ आवश्यक परिस्थितियाँ होती हैं—
- समुद्र की सतह का तापमान 27°C से अधिक होना चाहिए।
- कोरिओलिस बल (Coriolis Force) की उपस्थिति आवश्यक होती है, जो पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है और चक्रवात की दिशा को नियंत्रित करता है।
- ऊपरी वायुमंडल में कम हवा की गति भिन्नता (Vertical Wind Shear) होनी चाहिए, जिससे चक्रवात व्यवस्थित रूप से विकसित हो सके।
- पहले से मौजूद कम दबाव क्षेत्र (Low-Pressure Area) या चक्रवाती परिसंचरण का होना आवश्यक है।
- समुद्र तल से ऊपर वायुमंडलीय स्तर पर हवा का प्रसार (Upper Divergence) होना चाहिए, जिससे निम्न दबाव क्षेत्र और गहरा हो।
- चक्रवात तब तक तेज़ होते रहते हैं जब तक इन्हें समुद्र से लगातार नमी और ऊर्जा मिलती रहती है। जैसे ही चक्रवात ज़मीन पर पहुँचता है, उसकी नमी की आपूर्ति बंद हो जाती है और वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
- चक्रवातों की संरचना: एक पूर्ण विकसित उष्णकटिबंधीय चक्रवात में निम्नलिखित भाग होते हैं—
- आंख (Eye): यह चक्रवात का केंद्र बिंदु होता है, जहां हवा शांत रहती है और दबाव सबसे कम होता है। इसकी चौड़ाई 150 से 250 किमी के बीच हो सकती है।
- आंख की दीवार (Eye Wall): यह क्षेत्र चक्रवात का सबसे खतरनाक भाग होता है, जहां तेज़ी से हवा ऊपर उठती है। यहां हवाओं की गति 250 किमी/घंटा तक पहुँच सकती है।
- स्पाइरल बैंड्स (Spiral Bands): ये चक्रवात के चारों ओर फैली बादलों और वर्षा की धारियाँ होती हैं, जो चक्रवात की ऊर्जा बढ़ाने में सहायक होती हैं।
- नामकरण की प्रक्रिया: चक्रवातों को नाम देना आवश्यक होता है, ताकि लोग उन्हें आसानी से पहचान सकें और पूर्वानुमान में कोई भ्रम न हो।
- प्रत्येक महासागर बेसिन में चक्रवातों के नाम रखने के लिए क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम केंद्र (RSMCs) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्र (TCWCs) कार्यरत होते हैं।
- विश्वभर में 6 RSMCs और 5 TCWCs हैं, जिनमें भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी शामिल है।
- IMD 13 देशों के लिए चक्रवातों के नाम तय करता हैं।
- चक्रवातों का प्रभाव:
- भूमि पर टकराव (Landfall): जब कोई उष्णकटिबंधीय चक्रवात ज़मीन से टकराता है, तो इसे लैंडफॉल (Landfall) कहा जाता है। इस दौरान हवाएँ तेज़ होती हैं और भारी वर्षा के साथ बाढ़ आने की संभावना रहती है।
- चक्रवातों का पुनः मुड़ना (Recurvature): आमतौर पर 20° उत्तर अक्षांश के बाद चक्रवात अपनी दिशा बदल लेते हैं और अधिक विनाशकारी हो जाते हैं।
- तटीय क्षरण (Coastal Erosion): समुद्री लहरों की तीव्रता बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में भूमि का कटाव होता है, जिससे बस्तियों और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हो सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवातों के स्वरूप में परिवर्तन देखा गया है। समुद्र की सतह का बढ़ता तापमान चक्रवातों की तीव्रता को बढ़ा सकता है। मौसम के असामान्य पैटर्न के कारण चक्रवात नए क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं।
UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2015): उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) अक्षांशों में दक्षिण अटलांटिक और दक्षिण-पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न नही होता है। इसका क्या कारण है? (a) समुद्र पृष्ठों के ताप निम्न होते हैं (b) अन्तः-उष्णकटिबंधीय अभिसारी क्षेत्र (इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेस ज़ोन) बिरले ही होता है (c) कोरिऑलिस बल अत्यंत दुर्बल होता है (d) उन क्षेत्रों में भूमि मौजूद नहीं होती उत्तर: (b) प्रश्न (2011): वर्ष 2004 की सुनामी ने लोगों को यह महसूस करा दिया कि गरान (मैंग्रोव) तटीय आपदाओं के विरुद्ध विश्वसनीय सुरक्षा बाड़े का कार्य कर सकते हैं। गरान सुरक्षा बाड़े के रूप में किस प्रकार कार्य करते हैं? (a) गरान अनूप होने से समुद्र और मानव बस्तियों के बीच एक ऐसा बड़ा क्षेत्र खड़ा हो जाता है जहाँ लोग न तो रहते हैं, न जाते हैं। (b) गरान भोजन और औषधि दोनों प्रदान करते हैं जिनकी ज़रूरत प्राकृतिक आपदा के बाद लोगों को पड़ती है। (c) गरान के वृक्ष घने वितान के लंबे वृक्ष होते हैं जो चक्रवात और सुनामी के समय उत्तम सुरक्षा प्रदान करते हैं। (d) गरान के वृक्ष अपनी सघन जड़ों के कारण तूफान और ज्वार-भाटे से नहीं उखड़ते। उत्तर: (d) |
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