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ऋण जाल कूटनीति: हाल ही में, 2024 की अंतर्राष्ट्रीय ऋण रिपोर्ट विश्व बैंक द्वारा जारी की गई। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दुनिया के कुल द्विपक्षीय बाह्य ऋण का 25% से अधिक चीन के पास था, जिससे वह विश्व का प्रमुख ऋण वसूलकर्ता बन गया।
- इसने चीन द्वारा इस्तेमाल की जा रही ऋण जाल कूटनीति को लेकर चिंताएं उत्पन्न की हैं।
- दो दशकों पहले, जापान, उसके बाद जर्मनी, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम वैश्विक उधारी में प्रमुख थे, जबकि चीन बहुत कम ऋण प्रदान करता था।
ऋण जाल कूटनीति (Debt Trap Diplomacy):
ऋण जाल कूटनीति एक रणनीति को दर्शाती है, जिसमें एक देश दूसरे देश को अत्यधिक ऋण प्रदान करता है, जिससे बाद में उस देश के लिए अपनी कर्ज की अदायगी करना कठिन हो जाता है।
- इस स्थिति में, ऋणी देश को अपनी संपत्तियों पर नियंत्रण या अपने घरेलू और विदेशी नीतियों पर प्रभाव को ऋणदाता देश को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
ऋण जाल कूटनीति के परिणाम:
- ऋण पर निर्भरता:
- चीन से ऋण लेने वाले देश भारी कर्ज में डूब जाते हैं।
- इससे वे चीन के आर्थिक दबाव और राजनीतिक प्रभाव के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- संपत्ति का नियंत्रण: ऋण चुकता नहीं करने पर देश महत्वपूर्ण संसाधन या बुनियादी ढांचा चीन को सौंपने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
- उदाहरण: श्रीलंका ने हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए चीनी कंपनी को पट्टे पर दिया।
- रणनीतिक प्रभाव: चीन को अफ्रीका, दक्षिण एशिया, और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी भू-राजनीतिक ताकत बढ़ाने का मौका मिलता है।
- इससे इन देशों की संप्रभुता पर असर पड़ता है।
- बुनियादी ढांचा परियोजनाएं:
- चीन द्वारा वित्तपोषित परियोजनाएं बड़ी बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं (सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों) पर आधारित होती हैं।
- ये परियोजनाएं विकास को बढ़ावा देती हैं, लेकिन साथ ही कर्ज का बोझ बढ़ता है।
- ऋण पुनर्गठन:
- चीन ने कुछ देशों से ऋण पुनर्गठन वार्ता की है।
- इन वार्ताओं में पारदर्शिता की कमी की आलोचना की जाती है।
चीन की ऋण जाल नीति से प्रभावित देश:
- श्रीलंका: $8 बिलियन के कर्ज से जूझ रहा है, जिसके कारण हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल के लिए पट्टे पर देना पड़ा।
- पाकिस्तान: लगभग $22 बिलियन का कर्ज है, जो इसके द्विपक्षीय ऋण का 60% के करीब है।
- लाओस: $6 बिलियन का कर्ज है, जो इसके द्विपक्षीय ऋण का 75% से अधिक है।
- एंगोला: $17 बिलियन का कर्ज है, जो इसके बाहरी ऋण का 58% है।
भारत के लिए चिंताएँ:
- चीन का बढ़ता प्रभाव:
- छोटे देशों जैसे नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका पर चीन का बढ़ता ऋण और प्रभाव।
- इससे चीन का क्षेत्रीय प्रभुत्व बढ़ता है, जो भारत की सुरक्षा आकांक्षाओं के खिलाफ है।
- भारत का लक्ष्य दक्षिण एशिया में एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता बनने का है, जिसे चीन का बढ़ता प्रभाव चुनौती दे रहा है।
- इंडो-पैसिफिक रणनीति के लिए चुनौती:
- चीन का ऋण जाल नीति क्षेत्र में उसकी आक्रामकता को बढ़ावा देती है।
- यह नीति भारत और अन्य देशों के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक स्वतंत्र, शांतिपूर्ण और खुले मार्ग की कल्पना के खिलाफ जाती है।
- भारत की संप्रभुता के खिलाफ:
- चीन द्वारा वित्तपोषित परियोजनाएँ, जैसे कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो भारत के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरती हैं, भारत की संप्रभुता पर प्रत्यक्ष हमला हैं।
- इस परियोजना के जरिए चीन पाकिस्तान के साथ अपने प्रभाव को और बढ़ाना चाहता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।