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भारत की शिशु मृत्यु दर में गिरावट: संयुक्त राष्ट्र 

सामान्य अध्ययन पेपर II: बच्चों से संबंधित मुद्दे, मानव संसाधन, स्वास्थ्य 

चर्चा में क्यों? 

भारत की शिशु मृत्यु दर में गिरावट: हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। विश्व निकाय ने भारत की इस प्रगति को अन्य देशों के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल माना है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट के मुख्य बिंदु 

संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में जारी रिपोर्ट “Levels & Trends in Child Mortality” विश्व और भारत की स्वास्थ्य पहलों और रणनीतिक निवेश की सफलता को उजागर करती है।

  • रिपोर्ट के अनुसार कई निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों ने 2000 के बाद से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में वैश्विक औसत से अधिक सुधार किया है।    
  • रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में वैश्विक स्तर पर पांच वर्ष से कम उम्र में मरने वाले बच्चों की संख्या घटकर 4.8 मिलियन (48 लाख) रह गई। 
  • 2000 से अब तक, दुनिया में बच्चों की मृत्यु दर आधे से अधिक कम हुई है और मृत जन्मों की संख्या में एक-तिहाई की कमी आई है। 
  • 2022 में पहली बार पांच वर्ष से कम उम्र में मरने वाले बच्चों की संख्या 5 मिलियन (50 लाख) से कम हो गई।  
  • भारत ने 2000 से अब तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 70% और नवजात मृत्यु दर में 61% की कमी दर्ज की है।
  • दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत’ ने प्रति परिवार प्रति वर्ष लगभग 5 लाख रुपये का कवरेज प्रदान कर स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाया है। इससे गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को मुफ्त उपचार, दवाएं और पोषण सहायता मिली है।
  • भारत ने मातृत्व प्रतीक्षा गृह, नवजात स्थिरीकरण इकाइयों, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य विंग, और जन्म दोष जांच कार्यक्रम जैसे ढांचे स्थापित किए हैं, जिससे प्रसव संबंधी जटिलताओं में कमी आने के साथ साथ शिशु मृत्यु दर में भी भारी गिरावट देखी गई है।
  • भारत ने डिजिटल निगरानी प्रणाली में सुधार करके और सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण देकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाई है। 
  • भारत ने अंटीनैटल कॉर्टिकोस्टेरॉइड, निरंतर पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (CPAP) और दृष्टि एवं श्रवण जांच जैसी सुविधाओं के माध्यम से समय से पूर्व जन्मे और गंभीर रूप से बीमार नवजातों की मृत्यु दर में कमी लाई है।
  • भारत में 2000 में खसरे से संबंधित शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक थी, जहां 189,000 मौतें दर्ज की गई थीं और टीकाकरण दर मात्र 56% थी। 2023 तक, खसरा टीकाकरण दर 93% तक पहुंच गई और खसरे से होने वाली मौतों में 97% की कमी आई।
  • भारत के साथ-साथ नेपाल, सेनेगल, घाना, और बुरुंडी जैसे देशों ने भी शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी दर्ज की है।

शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate – IMR) क्या हैं?

  • परिभाषा: शिशु मृत्यु दर किसी क्षेत्र में एक वर्ष से कम आयु के प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मौतों की संख्या को दर्शाती है। यह सूचक किसी देश या क्षेत्र की स्वास्थ्य प्रणाली की गुणवत्ता, सामाजिक स्थिति और पर्यावरणीय परिस्थितियों का प्रतिबिंब होता है।
  • गणना: शिशु मृत्यु दर की गणना किसी विशेष वर्ष में एक वर्ष से कम आयु में मरने वाले बच्चों की संख्या को उस वर्ष के कुल जीवित जन्मों की संख्या से विभाजित करके 1,000 से गुणा करके की जाती है। 
  • मुख्य कारक: शिशु मृत्यु दर में वृद्धि या कमी कई पर्यावरणीय और सामाजिक कारकों पर निर्भर करती है। इन कारकों में माँ की शिक्षा का स्तर, स्वच्छता की स्थिति, स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता, संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण, पोषण स्तर, और स्वास्थ्य अवसंरचना की गुणवत्ता प्रमुख हैं।
  • पाँच वर्ष से कम मृत्यु दर (U5MR): पाँच वर्ष से कम मृत्यु दर (Under Five Mortality Rate – U5MR) एक अन्य महत्त्वपूर्ण संकेतक है, जो प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु की संभावना को दर्शाता है।
  • नवजात मृत्यु दर (NMR): नवजात मृत्यु दर (Neonatal Mortality Rate – NMR) किसी क्षेत्र में पहले 28 दिनों में मरने वाले नवजात शिशुओं की संख्या को दर्शाता है। यह नवजात देखभाल की गुणवत्ता, समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप और अस्पताल की सुविधाओं पर निर्भर करता है। 

शिशु मृत्यु दर में भारत की स्थिति 

  • भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (Under Five Mortality Rate – U5MR) में लगातार सुधार देखा गया है। वर्ष 2019 में U5MR प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 35 था, जो 2020 में घटकर 32 हो गया। यह गिरावट वार्षिक आधार पर 8.6% की दर से हुई, जो एक सकारात्मक संकेत है।
  • भारत में बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों की तुलना में अधिक रही है। 2020 में U5MR बालिकाओं के लिए 33 जबकि बालकों के लिए 31 था। हालाँकि, इसी अवधि में बालकों की मृत्यु दर में 4 अंक और बालिकाओं की मृत्यु दर में 3 अंक की गिरावट आई है।
  • नवजात मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। वर्ष 2019 में यह प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 22 थी, जो 2020 में घटकर 20 पर आ गई।
  • भारत ने शिशु मृत्यु दर को कम करने में सकारात्मक प्रगति की है, लेकिन 2030 तक के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए अभी भी निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है। 
  • भारत के कई राज्यों ने शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय प्रगति की है। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में U5MR में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है। 
  • छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों — केरल (4), दिल्ली (9), तमिलनाडु (9), महाराष्ट्र (11), जम्मू-कश्मीर (12) और पंजाब (12) ने पहले ही NMR का सतत विकास लक्ष्य (SDG) हासिल कर लिया है। 
  • ग्यारह राज्यों ने U5MR के लिए 2030 तक 25 के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। 

भारत में शिशु मृत्यु दर को प्रभावित करने वाले कारक

  • कुपोषण: भारत में कुपोषण शिशु मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया की दर 58.6% से 67% तक पाई गई है, जो अत्यंत चिंताजनक है। एनीमिया और कुपोषण का यह उच्च स्तर बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है, जिससे वे विभिन्न संक्रमणों का आसानी से शिकार बन जाते हैं। 
  • गैर-संस्थागत प्रसव: अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र के बजाय घर में प्रसव होने पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। हालाँकि भारत में संस्थागत प्रसव की दर में सुधार हुआ है, फिर भी यह विकसित देशों की तुलना में कम है। गैर-संस्थागत प्रसव में उचित चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण प्रसव के दौरान जटिलताएँ और नवजात की मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।
  • समय पूर्व जन्म: समय पूर्व जन्म और मृत जन्म शिशु मृत्यु दर को बढ़ाने वाले प्रमुख कारकों में से हैं। विश्व स्तर पर प्रत्येक 10 में से 1 शिशु समय पूर्व जन्म लेता है, जबकि भारत में यह आंकड़ा प्रत्येक 6-7 जन्मों में से 1 है। समय पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं में जटिलताओं और मृत्यु का जोखिम अधिक होता है। 
  • प्रतिरक्षा की कमी: शिशु मृत्यु के कई मामलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। निमोनिया, नवजात संक्रमण, समय पूर्व जन्म, जन्म के समय कम वजन, दस्त रोग और जन्म श्वासावरोध जैसे रोग नवजात मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। वैक्सीन अनुपालन का निम्न स्तर बच्चों को गंभीर संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है। 
  • माँ की आयु: कम उम्र में माँ बनने वाली महिलाओं के बच्चों में एनीमिया और कुपोषण की घटनाएँ अधिक देखी गई हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि 37 सप्ताह के बाद जन्म लेने वाले शिशुओं की तुलना में समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की मृत्यु का खतरा 2 से 4 गुना अधिक होता है। 

भारत में शिशु मृत्यु दर घटाने के लिए सरकारी पहल

  • पोषण अभियान: भारत में कुपोषण को दूर करने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2018 में राष्ट्रीय पोषण मिशन (NHM) या पोषण अभियान शुरू किया। इस योजना के अंतर्गत बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उचित पोषण, स्वास्थ्य सेवाएँ और पोषण संबंधी जागरूकता प्रदान की जाती है।
  • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: वर्ष 2018 में “एनीमिया मुक्त भारत” अभियान शुरू किया गया, जिसका लक्ष्य एनीमिया की वार्षिक गिरावट दर को 1-3 प्रतिशत तक बढ़ाना है। इस पहल के तहत आयरन और फोलिक एसिड की खुराक, कुपोषण मुक्त आहार और नियमित स्वास्थ्य जांच को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण और प्रसव पूर्व देखभाल सुनिश्चित करने के लिये प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) शुरू की गई है। इसके अंतर्गत गर्भवती महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 6,000 रुपये की राशि हस्तांतरित की जाती है, ताकि वे प्रसव पूर्व बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें। 
  • समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: वर्ष 1975 में शुरू की गई समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना का उद्देश्य छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, प्री-स्कूल शिक्षा, स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करना है। 
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। इसमें प्रसव, दवाओं, जाँच और परिवहन जैसी सभी सेवाओं को नि:शुल्क किया गया है।
  • आयुष्मान भारत योजना (ABY): आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) शुरू की गई है, जो प्रत्येक परिवार को सालाना 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है। आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। आयुष्मान भारत योजना शिशु और मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने के साथ-साथ गंभीर बीमारियों के उपचार को भी सुलभ बनाती है।

शिशु मृत्यु दर कम करने के संभावित उपाय

  • परिवार नियोजन: समय पूर्व जन्म और मृत जन्म के जोखिम को कम करने के लिए परिवार नियोजन सेवाओं को सुलभ और व्यापक बनाया जाना आवश्यक है। इससे महिलाओं को गर्भावस्था की बेहतर योजना बनाने और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का अवसर मिलेगा। 
  • प्रसवपूर्व देखभाल: गर्भवती महिलाओं को उच्च गुणवत्ता वाली प्रसवपूर्व सेवाएँ उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक है। इनमें नियमित स्वास्थ्य जांच, पोषण संबंधी परामर्श और आयरन-फोलिक एसिड अनुपूरण जैसी सेवाएँ शामिल होनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने से नवजात शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।
  • आहार संबंधी सुधार: गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए पोषण योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करने की जरूरत है। आंगनवाड़ी केंद्रों और स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से महिलाओं को पोषण संबंधी परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे वे अपने और अपने बच्चे के लिए सही आहार चुन सकें।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की समानता: स्वास्थ्य सुविधाओं में शहरी-ग्रामीण अंतर को कम करना बहुत आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएँ अभी भी सीमित हैं। मोबाइल मेडिकल यूनिट्स, टेली-मेडिसिन और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर दूरस्थ क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2017). निम्नलिखित में से कौन-से ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ के उद्देश्य हैं? 

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के प्रति जागरूकता पैदा करना। 
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों में कमी लाना। 
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये गए चावल की खपत को बढ़ावा देना। 
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 1, 2 और 3

(c) केवल 1, 2 और 4

(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)

प्रश्न (2021). क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। 

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