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रुपये का अवमूल्यन: भारतीय रुपये की विनिमय दर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर को पार कर गई है। इसका मतलब है कि अब $1 खरीदने के लिए ₹85 चुकाने होंगे। अप्रैल में यह दर करीब ₹83 थी, जबकि एक दशक पहले, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यभार संभाला था, यह दर ₹61 के आसपास थी।
रुपये का अवमूल्यन (Devaluation of rupee):
जब एक देश की मुद्रा (Currency) की कीमत दूसरी मुद्रा के मुकाबले घटती है, तो इसे मुद्रा का अवमूल्यन (Currency Depreciation) कहते हैं। भारतीय रुपया भी समय-समय पर प्रमुख मुद्राओं, खासकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है।
रुपये के अवमूल्यन (Devaluation of rupee) के कारण:
- कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी: वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत का आयात खर्च बढ़ा है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है।
- चीन को पूंजी प्रवाह: विदेशी निवेशक (FPIs) भारत से अपने निवेश हटाकर चीन की ओर बढ़ रहे हैं। चीन की नई मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों ने उनकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है।
- इस बदलाव को “Sell India, Buy China” रणनीति कहा जा रहा है।
- डॉलर की बढ़ती मांग: विदेशी बैंकों द्वारा अमेरिकी डॉलर की अधिक मांग के कारण रुपये की कीमत और गिरी है।
- घरेलू बाजार की कमजोरी: भारत के शेयर और बांड बाजारों में कमजोरी से विदेशी निवेशकों का विश्वास घटा है, जिससे रुपये पर और दबाव बढ़ा है।
रुपये के अवमूल्यन के प्रभाव:
- निर्यात और आयात पर प्रभाव:
- कमजोर रुपया भारतीय उत्पादों को विदेशी बाजार में सस्ता बनाकर निर्यात बढ़ा सकता है।
- लेकिन आयात महंगा हो जाता है, खासकर तेल और मशीनरी जैसी आवश्यक चीजें।
- विदेशी कर्ज का बोझ: जिन कंपनियों और सरकार का कर्ज विदेशी मुद्रा में है, उनके लिए कर्ज चुकाना महंगा हो जाता है।
- मुद्रास्फीति (Inflation): आयात महंगा होने से रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे आम लोगों की क्रय शक्ति पर असर पड़ता है।
- निवेशकों का विश्वास: रुपये की गिरावट से विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और पूंजी प्रवाह में कमी आती है।
रुपये की स्थिरता में RBI की भूमिका :
- विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप:
- RBI विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करके डॉलर खरीदता या बेचता है।
- इसका उद्देश्य रुपये की कीमत में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकना होता है।
- मौद्रिक नीति समायोजन:
- RBI ब्याज दरों को बदलकर पूंजी प्रवाह को नियंत्रित करता है।
- उच्च ब्याज दरें विदेशी निवेश को आकर्षित करती हैं, जिससे रुपये का मूल्य स्थिर रहता है।
- विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन:
- RBI पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखता है।
- इसका उपयोग रुपये की अस्थिरता के समय स्थिरता लाने के लिए किया जाता है।
आगे की दिशा:
- दीर्घकालिक निवेश पर जोर:
- रुपये की स्थिरता के लिए दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर ध्यान देना चाहिए।
- अस्थिर विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) पर निर्भरता कम करनी चाहिए।
- प्रेषण को बढ़ावा देना:
- भारत प्रेषण के मामले में विश्व में अग्रणी है।
- अनिवासी भारतीयों (NRIs) को धन भेजने के लिए आसान नीतियां लागू करनी चाहिए।
- इससे विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ेगा और रुपये की स्थिरता सुनिश्चित होगी।
- निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाना:
- तकनीकी, दवा, वस्त्र और निर्माण क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए।
- निर्यात की प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर विदेशी मुद्रा आय को मजबूत किया जा सकता है।