Digital Payment Intelligence Platform
संदर्भ:
डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं पर लगाम लगाने के प्रयास में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के मार्गदर्शन में एक डिजिटल पेमेंट इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (DPIP) विकसित किया जा रहा है। इसे एक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) के रूप में तैयार किया जा रहा है, जिसमें प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों को शामिल किया गया है। यह पहल डिजिटल लेनदेन को अधिक सुरक्षित, विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
Digital Payment Intelligence Platform क्या है ?
- DPIP (Digital Public Infrastructure for Prevention of Financial Frauds) एक प्रस्तावित प्रणाली है जो धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन को मजबूत करने के लिए इंटेलिजेंस साझा करने और उन्नत तकनीकों के माध्यम से कार्य करेगी।
- इसका उद्देश्य बैंकों के बीच समन्वय को बढ़ाकर मौजूदा धोखाधड़ी पहचान तंत्र को अधिक प्रभावी बनाना है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- इंटेलिजेंस शेयरिंग: वास्तविक समय में जानकारी साझा करने की प्रणाली, जिससे धोखाधड़ी का पता जल्द लग सके।
- तकनीकी एकीकरण: आधुनिक तकनीकों के उपयोग से डेटा विश्लेषण व धोखाधड़ी ट्रैकिंग को सशक्त बनाना।
- बैंकों के बीच समन्वय: सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के बैंकों को एकीकृत नेटवर्क में जोड़ना।
समिति गठन: DPIP की स्थापना के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा हेतु श्री ए.पी. होता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।
प्रोटोटाइप निर्माण:
- RBI इनोवेशन हब (RBIH) को 5–10 बैंकों के साथ परामर्श कर DPIP का प्रारूप (prototype) तैयार करने का कार्य सौंपा गया है।
- इसमें सरकारी और निजी – दोनों प्रकार के बैंक शामिल होंगे।
आवश्यकता क्यों है ?
- RBI की वार्षिक रिपोर्ट (FY25):
- FY24 में जहां बैंकिंग धोखाधड़ी की राशि ₹12,230 करोड़ थी,
- वहीं FY25 में यह तीन गुना बढ़कर ₹36,014 करोड़ हो गई।
- यह तेज़ वृद्धि दर्शाती है कि वर्तमान धोखाधड़ी पहचान प्रणाली में खामियाँ हैं, जिसे DPIP दूर कर सकता है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
- छल व धोखा देने की रणनीति: धोखेबाज़ आमतौर पर फिशिंग, पहचान चुराना, कार्ड विवरण चोरी जैसे तरीकों से ग्राहकों को निशाना बनाते हैं।
- मनी लॉन्ड्रिंग: चोरी की गई राशि को कई खातों के माध्यम से घुमाकर बैंकिंग प्रणाली की निगरानी से बचा लिया जाता है।
- जांच में बाधाएँ:
- धोखाधड़ी की देर से रिपोर्टिंग
- पीड़ित द्वारा साक्ष्य मिटा देना
- असंरचित और धीमी डेटा साझाकरण प्रणाली
RBI की वर्तमान पहलें:
- मल्टी-फैक्टर प्रमाणीकरण: सभी बैंकों को इलेक्ट्रॉनिक भुगतान के लिए बहु-स्तरीय प्रमाणीकरण अनिवार्य रूप से लागू करना है।
- शून्य उत्तरदायित्व नीति: ग्राहक की गलती न होने पर, बैंक या थर्ड पार्टी की चूक से हुए नुकसान के लिए ग्राहक की कोई जिम्मेदारी नहीं।
- सत्यापन योग्य डोमेन (bank.in और fin.in): ग्राहकों को फर्जी वेबसाइटों से बचाने के लिए RBI ने सरकारी बैंकिंग डोमेन निर्धारित किए हैं।
आगे की राह:
- समेकित प्रयास: भारत में वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए आवश्यक है —
- तकनीकी नवाचार
- विनियामकीय सुधार
- तेज व मानकीकृत डेटा साझा करना
- जन जागरूकता
- सहयोग अनिवार्य: बैंक, फिनटेक कंपनियाँ, कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ और ग्राहक — सभी का मिलकर कार्य करना आवश्यक है।
- प्रमुख रोकथाम उपाय:
- मल्टी-डिवाइस लॉगिन अलर्ट
- बैंकिंग ऐप्स पर स्क्रीन-शेयरिंग निष्क्रिय करना
- स्पष्ट और विस्तृत बैंक स्टेटमेंट अनिवार्य करना