E-Waste in India
संदर्भ:
भारत ने अपने ई-कचरा प्रबंधन को नए रूप में ढालते हुए ई–वेस्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 लागू किए हैं, जो 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी हुए। ये नियम ई–वेस्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 की जगह लेते हैं और भारत में तेजी से बढ़ते ई-कचरे के संकट से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन का संकेत देते हैं।
भारत में ई–कचरा: स्थिति, प्रभाव और प्रबंधन:
ई–कचरा क्या है?
- परिभाषा: ई-कचरा उन त्यागी गई इलेक्ट्रॉनिक और विद्युत उपकरणों को कहा जाता है जो तकनीकी उन्नति के कारण अप्रचलित हो गए हैं, जैसे कंप्यूटर, फोन, टीवी आदि।
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य: चीन और अमेरिका के बाद भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक है।
- वृद्धि: 2017-18 में 7.08 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17.78 लाख मीट्रिक टन, छह वर्षों में 151.03% की वृद्धि।
अनुचित ई–कचरा प्रबंधन का प्रभाव:
- पर्यावरणीय क्षरण:
- जल प्रदूषण: साइनाइड और सल्फ्यूरिक एसिड का विषाक्त निर्वहन जल निकायों को प्रभावित करता है।
- वायु प्रदूषण: सीसे के धुएं और प्लास्टिक जलाने से हानिकारक उत्सर्जन।
- मृदा संदूषण: खतरनाक पदार्थ मिट्टी में रिसकर कृषि और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं।
- सामाजिक लागत:
- असंगठित क्षेत्र का वर्चस्व: 95% ई-कचरा अनौपचारिक रूप से पुनर्चक्रित होता है, जिसमें महिलाओं और बच्चों की भागीदारी प्रमुख है।
- स्वास्थ्य जोखिम: विषाक्त संपर्क के कारण अनौपचारिक ई-कचरा कार्यकर्ताओं का औसत जीवनकाल 27 वर्ष से कम।
- आर्थिक क्षति:
- कीमती धातुओं की हानि: हर साल लगभग ₹80,000 करोड़ मूल्य की महत्वपूर्ण धातुएं पुन: उपयोग के बिना नष्ट।
- राजस्व हानि: औपचारिक लेखा और नियामक देखरेख की कमी के कारण लगभग $20 बिलियन का वार्षिक कर राजस्व नुकसान।
प्रबंधन में चुनौतियां:
- उपभोक्ता प्रोत्साहन की कमी: जिम्मेदारी से ई-कचरा निपटाने के लिए आर्थिक या तार्किक प्रोत्साहनों का अभाव।
- एकत्रीकरण ढांचे की कमी:
- विशेषकर टियर-II और टियर-III शहरों में अधिकृत संग्रह केंद्रों का अभाव।
- अधिकतर उपभोक्ता अनौपचारिक कबाड़ व्यापारियों पर निर्भर।
- असुरक्षित पुनर्चक्रण प्रक्रियाएं: 90-95% ई-कचरा अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा कच्चे तरीकों जैसे अम्लीय निस्तारण, खुले में जलाना और बिना सुरक्षा उपकरणों के मैन्युअल विघटन के माध्यम से निपटाया जाता है।
- ग्रे चैनल आयात: “दान” या “पुनर्नवीनीकरण वस्तुओं” के रूप में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं भारत में प्रवेश करती हैं, जो बाद में कचरा बन जाती हैं।
ई–कचरा प्रबंधन ढांचा:
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों को उनके उत्पादों के जीवन के अंत में कचरा प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जाती है।
- CPCB का ऑनलाइन पोर्टल: ई-कचरा प्रबंधन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है, जहां उत्पादकों, निर्माताओं, पुनर्चक्रणकर्ताओं और पुनर्नवीनीकरणकर्ताओं को पंजीकरण करना आवश्यक है।
- नीति सुधार: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 का व्यापक रूप से पुनरीक्षण किया और ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 को अधिसूचित किया।
- पहला ई–कचरा क्लिनिक:
- भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में शुरू हुआ।
यह घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से ई-कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान के लिए एक सुविधा है।