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अनिवार्य धार्मिक प्रथा (Essential Religious Practice) | Apni Pathshala

Essential Religious Practice

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संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया कि वक्फ(waqf) की स्थापना इस्लाम में कोई अनिवार्य धार्मिक प्रथा‘ (Essential Religious Practice) नहीं है।

वक़्फ़ इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा (Essential Religious Practice) नहीं है

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि

  • वक़्फ़ अपने स्वभाव में एक धार्मिक दान (Charity) है, और दान सभी धर्मों का हिस्सा होता है, लेकिन यह किसी धर्म की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
  • यदि कोई मुसलमान वक़्फ़ नहीं बनाता है, तो इससे वह कम मुसलमान नहीं हो जाता, और न ही वह इस्लाम से बाहर हो जाता है।
  • इस्लाम में वक़्फ़ बनाना अनिवार्य नहीं है और न ही यह स्वतंत्र अधिकार है।
  • वक़्फ़ कानून केवल धार्मिक आस्था में हस्तक्षेप किए बिना इसके धर्मनिरपेक्ष और प्रशासनिक पहलुओं पर केंद्रित होता है।

क्या होती है Essential Religious Practice (ERP)?

  • ERP सिद्धांत यह तय करता है कि कौन सी धार्मिक प्रथाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 26 के तहत संरक्षित हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने Commissioner of Police v. Acharya Jagadisharananda Avadhuta (2004) में कहा—
    • किसी प्रथा को आवश्यक धार्मिक प्रथा तभी माना जा सकता है, यदि उसके होने से धर्म की मूल पहचान बदल जाए
    • यदि उस प्रथा को हटाने से धर्म का मूल स्वभाव या विश्वास बदल जाता है, तो वह प्रथा आवश्यक मानी जाएगी।
    • इन आवश्यक तत्वों में कोई जोड़घटाव नहीं किया जा सकता क्योंकि ये धर्म का सार होते हैं।

महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय:

  1. Commissioner of Police v. Acharya Jagadisharananda Avadhuta (2004): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तांडव नृत्य, आनंद मार्ग संप्रदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
  2. Shayara Bano v. Union of India (2017): सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं माना और अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण देने से इनकार किया।
  3. कर्नाटक हाईकोर्ट (2022): स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक को सही ठहराया। कहा गया कि हिजाब इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और यह अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है।

अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

  • हर व्यक्ति को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है।
  • यह अधिकार भारत के सभी व्यक्तियों (नागरिक व गैर-नागरिक) को मिलता है।
  • यह केवल धार्मिक विश्वासों पर नहीं, बल्कि धार्मिक प्रथाओं पर भी लागू होता है।
  • बलात धर्मांतरण संविधान में दिए गए ‘freedom of conscience’ का उल्लंघन है।

सीमाएं:

  • यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
  • राज्य धर्म से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है।

अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता

हर धार्मिक संप्रदाय या उसका कोई भी भाग निम्न अधिकार रखता है:

  • धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए संस्थान स्थापित करना और चलाना
  • धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंधन करना
  • चल व अचल संपत्ति का अधिकार प्राप्त करना
  • ऐसी संपत्ति का कानून के अनुसार प्रशासन करना

विशेषताएं:

  • यह सामूहिक धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
  • अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 26 धार्मिक समुदायों/संप्रदायों के अधिकार सुनिश्चित करता है।

यह भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य की सीमाओं में बाध्य है।

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