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धीमी अर्थव्यवस्था में विस्तारवादी नीतियां (Expansionary Policies in a Slowing Economy) | Apni Pathshala

Expansionary Policies in a Slowing Economy

Expansionary Policies in a Slowing Economy

Expansionary Policies in a Slowing Economy – 

संदर्भ:

भारत इस समय धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था से निपटने के लिए एक साथ विस्तारवादी राजकोषीय (Fiscal) और मौद्रिक (Monetary) नीतियों को लागू कर रहा है। इन नीतियों का उद्देश्य निवेश और खपत को प्रोत्साहित कर आर्थिक गति को तेज करना है।

हाल में अपनाई गई प्रमुख नीतियाँ:

  • केन्द्रीय बजट 2025–26: ₹11.21 लाख करोड़ पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित किए गए, जिनमें बुनियादी ढांचा, कृषि, MSMEs और डिजिटल कनेक्टिविटी पर ज़ोर दिया गया।
  • आयकर में कटौती: आर्थिक मंदी के दौरान खपत को बढ़ावा देने के लिए आयकर दरों में कटौती की गई।
  • RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती: धीमी आर्थिक वृद्धि के बीच ऋण और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए रेपो रेट घटाकर 5% किया गया।
  • RBI का दोहरा लक्ष्य मूल्य स्थिरता और आर्थिक वृद्धि:
    • ब्याज दरों में कटौती के माध्यम से उधारी को प्रोत्साहन।
    • मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण नीति, जिसके तहत खुदरा मुद्रास्फीति 2024–25 में घटकर 6% पर आ गई।
    • वित्तीय संस्थानों और NBFCs के लिए तरलता सहायता प्रदान की गई।

नीतिगत समन्वय की आवश्यकता:

मांगपक्षीय नीतियों की परस्पर क्रिया: मौद्रिक नीति और राजकोषीय नीति दोनों कुल मांग (Aggregate Demand) को प्रभावित करती हैं।

  • ब्याज दरों में कटौती से निवेश बढ़ता है।
  • कर कटौती से उपभोग बढ़ता है। यदि इन दोनों नीतियों में समन्वय न हो, तो इससे महँगाई बढ़ने या राजकोषीय घाटा होने का खतरा पैदा हो सकता है।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण:

  • अमेरिका और ब्रिटेन: कर कटौतियों को महँगाई के डर से सख्त मौद्रिक नीति के ज़रिये संतुलित किया गया।
  • 2008 का संकट: जब ब्याज दरों में कटौती से माँग नहीं बढ़ी, तब सरकार के खर्च से माँग को बहाल किया गया।

भारत की वर्तमान स्थिति:

  • भारत में इस समय मौद्रिक और राजकोषीय दोनों नीतियाँ विस्तारवादी हैं।
  • लेकिन घरेलू उपभोक्ताओं की धीमी प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि आयकर कटौतियों का तात्कालिक माँग पर पूरा असर नहीं पड़ा है।
  • इससे यह स्पष्ट होता है कि नीति-निर्धारण में बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।

भारत में विस्तारवादी नीतियों के लाभ:

कुल मांग में वृद्धि:

  • कर कटौती और सरकारी व्यय में वृद्धि जैसी विस्तारवादी राजकोषीय नीतियाँ लोगों की आय बढ़ाती हैं, जिससे उपभोग और मांग में इज़ाफा होता है।
  • ब्याज दरों में कमी से ऋण लेना आसान होता है, जिससे निवेश और मांग दोनों को बढ़ावा मिलता है।

रोज़गार को समर्थन:

  • सरकार द्वारा वित्तपोषित इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ और MSME समर्थन योजनाएँ ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में मदद करती हैं।
  • आर्थिक मंदी के समय ये योजनाएँ बेरोज़गारी को कम करने में सहायक होती हैं।

निजी निवेश को प्रोत्साहन:

  • सस्ती उधारी और बेहतर उपभोक्ता भावना से निजी कंपनियाँ उत्पादन क्षमता, नवाचार और भर्ती में निवेश करने के लिए प्रेरित होती हैं।

वित्तीय बाज़ारों में स्थिरता:

  • RBI द्वारा तरलता प्रदान करना और NBFCs व बैंकों के लिए क्रेडिट गारंटी जैसी पहलें वित्तीय संकट को रोकने और बाज़ार में विश्वास बनाए रखने में सहायक होती हैं।

तत्काल आर्थिक राहत:

  • COVID-19 जैसी आपात स्थितियों में प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और खाद्य सुरक्षा उपायों ने गरीब और असुरक्षित वर्गों को त्वरित राहत प्रदान की।

आगे की राह (Way Forward):

  • नीतिगत समन्वय को मजबूत करें:
  • लक्षित हस्तांतरणों को प्राथमिकता दें:
  • कर संरचना में व्यापक सुधार:
  • मुद्रास्फीति पर सक्रिय निगरानी:

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