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उर्वरक आयात में भारत को चुनौतियाँ

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भारत, एक कृषि प्रधान देश होने के नाते, उर्वरक आयात में कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो उसकी खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर सकती हैं। वर्तमान वैश्विक संकटों, जैसे यूक्रेन और गाजा संघर्ष, के चलते उर्वरक की उपलब्धता और कीमतों में उतार-चढ़ाव आ रहा है।

  1. आयात पर निर्भरता
  • उर्वरकों की मांग: भारत की घरेलू उर्वरक उत्पादन क्षमता उसकी कुल मांग को पूरा नहीं कर पाती, जिसके कारण आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। संसद की स्थायी समिति की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार:
    • यूरिया: घरेलू आवश्यकता का 20% आयात किया जाता है।
    • डीएपी: 50-60% मांग आयात से पूरी की जाती है।
    • एमओपी: आयात पर 100% निर्भरता।
  1. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान :यूक्रेन संकट ने खाद्य और उर्वरक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है, जिससे कीमतों में वृद्धि और उपलब्धता में कमी हो रही है। इसी तरह, गाजा संकट भी वैश्विक बाजार पर असर डाल रहा है।
  2. कृषि उत्पादकता में कमी: भारत में कई छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी उत्पादकता निम्न है। खेती मुख्यतः वर्षा पर निर्भर करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी आ रही है। एक ही भूमि पर लगातार फसलें उगाने से मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
  3. स्थानीय उत्पादन में कमी: 2021-22 में भारत की वार्षिक उर्वरक खपत 579.67 लाख मीट्रिक टन थी, जबकि घरेलू उत्पादन केवल 435.95 लाख मीट्रिक टन रहा। इस कमी के कारण एमओपी का पूरा आयात करना पड़ता है।
  4. कीमतों में वृद्धि: वैश्विक बाजार में उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि, विशेष रूप से प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी, उर्वरक उत्पादन की लागत को प्रभावित कर रही है। इसका परिणाम कृषि लागत में वृद्धि के रूप में सामने आता है, जो किसानों की आय को कम करता है।
  5. नीतिगत चुनौतियाँ: उर्वरक के उपयोग में संतुलन बनाने के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। नीतिगत निर्णय अक्सर विभिन्न हितधारकों के बीच राजनीतिक मतभेदों के कारण प्रभावित होते हैं, जिससे स्थायी समाधान खोजना कठिन हो जाता है।

यूक्रेन और गाजा संघर्ष का प्रभाव

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वरिष्ठ अर्थशास्त्री निकोलस सिटको ने यूक्रेन और गाजा संघर्ष के कारण उर्वरक कीमतों में संभावित अस्थिरता पर प्रकाश डाला है। यह अशांति निम्नलिखित तरीकों से भारतीय कृषि और उर्वरक बाजार को प्रभावित कर सकती है:

  1. तेल की कीमतों पर असर: संघर्षों के कारण वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जिससे पेट्रोलियम आधारित उर्वरक उत्पादन महंगा हो जाएगा। चूंकि उर्वरक उत्पादन में ऊर्जा एक प्रमुख घटक है, तेल की बढ़ती कीमतें उत्पादन लागत को सीधे प्रभावित करेंगी।
  2. आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: भारत के उर्वरक आयात के दो महत्वपूर्ण स्रोत, रूस और पश्चिम एशिया, इन संघर्षों से प्रभावित हो सकते हैं। आयात में रुकावट से उर्वरक की उपलब्धता कम हो सकती है, जो कीमतों में और वृद्धि का कारण बनेगी।
  3. उर्वरक सब्सिडी का वित्तीय बोझ: भारत सरकार ने उर्वरक की सामर्थ्य को बनाए रखने के लिए 2023-24 के बजट में भारी सब्सिडी आवंटित की है:
    • कुल सब्सिडी: ₹1.79 लाख करोड़
    • स्वदेशी यूरिया सब्सिडी: ₹1.04 लाख करोड़
    • आयातित यूरिया सब्सिडी: ₹31,000 करोड़
    • स्वदेशी पीएंडके उर्वरक सब्सिडी: ₹25,500 करोड़
    • आयातित पीएंडके उर्वरक सब्सिडी: ₹18,500 करोड़

ये सब्सिडी किसानों के लिए आवश्यक तो हैं, लेकिन सरकार पर एक भारी वित्तीय बोझ डालती हैं, जो बजट संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं।

आत्मनिर्भरता के लिए रणनीतिक पहल: विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए कुछ प्रमुख रणनीतियों को अपनाना चाहिए:

  1. नए यूरिया संयंत्र: 2012 की निवेश नीति के बाद से, छह नए यूरिया संयंत्र स्थापित किए गए हैं, जिससे भारत की उत्पादन क्षमता में 76.2 लाख मीट्रिक टन की वृद्धि हुई है। वर्तमान में, 36 यूरिया संयंत्र सक्रिय हैं, जिनमें रामगुंडम, गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
  2. टिकाऊ उर्वरकों की ओर बदलाव: नैनो यूरिया और प्राकृतिक खेती पर जोर देने से रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम किया जा सकता है। यह न केवल लागत को कम करेगा, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बेहतर बनाएगा।
  3. घरेलू उत्पादन में निवेश: स्थायी समिति ने उर्वरक विनिर्माण में सार्वजनिक, सहकारी और निजी क्षेत्रों से निवेश को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

नीतिगत सिफारिशें और भविष्य का दृष्टिकोण: स्थायी समिति ने निम्नलिखित नीतिगत सिफारिशें की हैं:

  • उर्वरक विनिर्माण के लिए प्रोत्साहन बढ़ाना: उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ठोस नीतियां बनाना आवश्यक है।
  • नैनो यूरिया के उपयोग को प्रोत्साहित करना: यह उर्वरक की आवश्यकता को कम करने और मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करेगा।
  • जैविक एवं टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करना: दीर्घकालिक स्थिरता के लिए ये पद्धतियाँ महत्वपूर्ण हैं।
  • बुनियादी ढांचे में निवेश करना: मौजूदा उर्वरकों का बेहतर और कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है।

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