Fiscal Deficit
संदर्भ:
भारत सरकार ने नियंत्रक महालेखापाल (CGA) द्वारा जारी अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 4.8% के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह उपलब्धि राजकोषीय अनुशासन और सरकारी खर्चों के प्रभावी प्रबंधन को दर्शाती है।
वित्त वर्ष 2024–25 का राजकोषीय प्रदर्शन: प्रमुख बिंदु–
- राजकोषीय घाटा: ₹15.77 लाख करोड़ रहा, जो GDP का 4.8% है — संशोधित अनुमान के अनुरूप।
- कुल राजस्व प्राप्ति: ₹30.78 लाख करोड़ रही।
- शुद्ध कर राजस्व: ₹24.99 लाख करोड़ रहा, जो लक्ष्य का 97.7% है।
- विनिवेश से प्राप्ति: सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से सरकार ने ₹10,131 करोड़ अर्जित किए — यह पूंजीगत रसीदों में शामिल रहा, परंतु लक्ष्य से काफी कम।
- कुल सरकारी व्यय: ₹46.55 लाख करोड़ रहा, जो संशोधित अनुमान का 97.8% है।
- पूंजीगत व्यय (अर्थात् अधोसंरचना जैसे दीर्घकालिक परिसंपत्तियों पर खर्च): ₹10.52 लाख करोड़ रहा।
- राजस्व व्यय (यानी चालू खर्च जैसे वेतन, सब्सिडी आदि): ₹36.03 लाख करोड़ रहा।
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) –
राजकोषीय घाटा क्या है?
- परिभाषा: राजकोषीय घाटा वह स्थिति है जब किसी वित्तीय वर्ष में सरकार का कुल बजटीय व्यय (राजस्व व पूंजीगत) उसके कुल बजटीय प्राप्तियों (राजस्व व पूंजीगत, उधारी को छोड़कर) से अधिक होता है।
- सूत्र: राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – (राजस्व प्राप्तियां + गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां)
राजकोषीय घाटे के प्रभाव:
- मुद्रास्फीतिक दबाव: लगातार अधिक राजकोषीय घाटा होने पर सरकार केंद्रीय बैंक से धन लेकर खर्च करती है, जिससे महंगाई बढ़ती है।
- क्राउडिंग आउट प्रभाव: जब सरकार भारी मात्रा में उधारी लेती है, तो निजी क्षेत्र के लिए ऋण की उपलब्धता घट जाती है, जिससे निजी निवेश प्रभावित होता है।
- राजकोषीय स्थान में कमी: अधिक घाटा होने पर आपातकालीन, संकट की स्थिति में सरकार के पास खर्च करने की क्षमता घट जाती है।
- उधारी में कठिनाई: सरकार की वित्तीय स्थिति बिगड़ने पर उसके बॉन्ड्स की मांग घटती है, जिससे उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेना पड़ता है।
कम राजकोषीय घाटे के लाभ:
- बेहतर क्रेडिट रेटिंग: लगातार घाटा कम करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार की साख सुधरती है, जिससे वैश्विक ऋण की लागत घटती है।
- ऋण सेवा लागत में कमी: ब्याज भुगतान पर कम खर्च होने से अधिक संसाधन विकास कार्यों में लगाए जा सकते हैं।
- बैलेंस ऑफ पेमेंट में सुधार: विदेशी उधारी पर निर्भरता घटने से मुद्रा विनिमय दर स्थिर रहती है और चालू खाता घाटा नियंत्रित होता है।
- निवेशकों का विश्वास बढ़ता है: यह वित्तीय अनुशासन का संकेत देता है, जिससे देश में विदेशी और घरेलू निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।