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मत्स्य पालन विस्तार क्षेत्र: भारत में 2013-14 से अब तक मछली उत्पादन में 83% की वृद्धि हुई है, जिससे तीन करोड़ मछुआरों और किसानों को आजीविका के अवसर प्राप्त हुए हैं।
मुख्य बिंदु:
- भारत की मछली उत्पादन स्थिति:
- भारत, जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली और मत्स्य पालन उत्पादक है, ने 2013-14 के बाद से मछली उत्पादन में 83% की वृद्धि देखी है।
- 2022-23 में भारत का मछली उत्पादन 175 लाख टन तक पहुंच गया, जो एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है।
- मत्स्य संसाधन और रोजगार: भारत के मत्स्य संसाधन विविध हैं और लगभग तीन करोड़ मछुआरों और किसानों के लिए आजीविका का अवसर प्रदान करते हैं।
- आंतरिक मछली पालन का योगदान: भारत की मछली उत्पादन में 75% योगदान आंतरिक मछली पालन (इंडलैंड फिशरीज) से होता है।
- विस्तार सेवाओं की आवश्यकता:
- अंतिम छोर तक पहुंचने वाली मछली पालन और मत्स्य पालन विस्तार सेवाओं को सुधारने की आवश्यकता है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी सेवाओं में मछुआरों/मछली किसानों को प्रजातियों के जीवन चक्र, पानी की गुणवत्ता, रोगों और उपलब्ध पालन प्रौद्योगिकियों पर आधारित सेवाएं दी जानी चाहिए।
भारत में मत्स्य पालन विस्तार क्षेत्र का महत्व:
- वैज्ञानिक प्रगति और मछली किसानों के बीच सेतु का काम: मत्स्य पालन विस्तार सेवाएं वैज्ञानिक उन्नतियों और मछली किसानों के दैनिक कार्यों के बीच अंतर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- महत्वपूर्ण ज्ञान का प्रसार: इन सेवाओं के माध्यम से मछली प्रजातियों के प्रबंधन, पानी की गुणवत्ता, रोग नियंत्रण और पालन तकनीकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है।
- सतत प्रथाओं में प्रशिक्षण: मछुआरों को सतत और पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं में प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे मछली पालन को एक लाभकारी व्यवसाय मॉडल के रूप में बढ़ावा मिलता है।
- जलवायु परिवर्तन और अतिपालन जैसे मुद्दों का समाधान: जलवायु परिवर्तन और अतिपालन जैसे समस्याओं को देखते हुए यह सेवाएं और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि यह मछली पालन को अधिक प्रभावी और टिकाऊ बनाने में मदद करती हैं।
भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र की चुनौतियाँ:
- अधिक मछली पकड़ना (Overfishing): अत्यधिक मछली पकड़ने से मछलियों की प्रजातियाँ संकट में हैं।
- गैरकानूनी मछली पकड़ना (IUU): बिना अनुमति के मछली पकड़ने से मछली स्टॉक्स का संरक्षण प्रभावित होता है।
- खराब प्रबंधन:निगरानी की कमी और मछली स्टॉक्स पर पर्याप्त डेटा की कमी से समस्याएँ बढ़ती हैं।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: अपर्याप्त सुविधाएँ और पुरानी तकनीक कार्यक्षमता में बाधा डालती हैं।
- प्रदूषण: औद्योगिक गतिविधियाँ और कृषि रनऑफ से समुद्री आवासों को खतरा है।
- जलवायु परिवर्तन: समुद्र और ताजे पानी के पर्यावरण में बदलाव से मछलियों के प्रवास और प्रजनन में असर पड़ रहा है।
- सामाजिक–आर्थिक मुद्दे: गरीबी और संसाधनों का असमान वितरण मछुआरे समुदायों को कमजोर करता है।
मत्स्यपालन क्षेत्र की वृद्धि के लिए सरकारी पहलकदमी:
- राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB): 2006 में स्थापित, यह भारत में मत्स्यपालन विकास के लिए योजना और प्रचार का प्रमुख निकाय है।
- ब्लू रिवोल्यूशन (Blue Revolution): 2015 में शुरू, यह स्थायी विकास और मत्स्यपालन क्षेत्र के प्रबंधन को बढ़ावा देने का उद्देश्य है।
- सागरमाला कार्यक्रम (Sagarmala Programme): 2015 में लॉन्च, इसका उद्देश्य तटीय क्षेत्र और समुद्री क्षेत्र की क्षमता बढ़ाना है, जिसमें मछली पकड़ने के बंदरगाह और प्रसंस्करण सुविधाएँ शामिल हैं।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY): 2020 में लॉन्च, इसका उद्देश्य मछली उत्पादन बढ़ाना, एक्वाकल्चर को बढ़ावा देना और बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है।
- मत्स्य और एक्वाकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (FIDF): 2018-19 में ₹7522.48 करोड़ के फंड के साथ स्थापित, यह मत्स्यपालन क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- राष्ट्रीय मत्स्य नीति (National Fisheries Policy): 2020 में लॉन्च, यह नीति मत्स्यपालन के स्थायी विकास, जिम्मेदार प्रबंधन और मछुआरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने का लक्ष्य रखती है।