Download Today Current Affairs PDF
संदर्भ:
लैंगिक समानता: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से स्कूल शिक्षा में लैंगिक समानता, नैतिक मूल्यों और महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार को शामिल करने पर जोर दिया, ताकि एक समावेशी और सम्मानपूर्ण समाज की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।
सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- नैतिक और नैतिक शिक्षा की आवश्यकता:
- स्कूलों में नैतिक शिक्षा और नैतिकता (Moral and Ethical Education) अनिवार्य होनी चाहिए।
- विशेष रूप से महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता सिखाने पर जोर दिया जाए।
- वर्तमान में कुछ स्कूलों में नैतिक शिक्षा होती है, लेकिन इसे नियमित रूप से पढ़ाया जाना चाहिए।
-
लैंगिक समानता की शुरुआत घर से:
- लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव अक्सर घर से शुरू होता है।
- माता-पिता बेटियों पर अधिक प्रतिबंध लगाते हैं, लेकिन बेटों पर वही प्रतिबंध नहीं होते।
- महिलाएं समाज की 50% आबादी हैं, फिर भी वे असुरक्षा और तनाव में जीती हैं।
- महिलाओं के प्रति मिसोजिनिस्टिक (misogynistic) मानसिकता को बदलने के लिए शिक्षा आवश्यक है।
भारत में यौन हिंसा के प्रमुख कारण:
- लैंगिक असमानता और सांस्कृतिक परंपराएं: पुरुष प्रधान मानसिकता और दहेज, पर्दा प्रथा जैसी परंपराएंमहिलाओं के प्रति भेदभाव बढ़ाती हैं।
- विवाह संबंधी समस्याएं:
- बाल विवाह और पारंपरिक विवाहों में महिलाओं के अधिकार सीमित होते हैं।
- वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) अभी भी अपराध नहीं माना जाता।
- शिक्षा और रोजगार की कमी: महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता की कमी उन्हें हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।
- लिंगानुपात की समस्या:
- महिला भ्रूण हत्या के कारण जनसंख्या में असंतुलन बढ़ रहा है।
- इससे पुरुषों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, जिससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ने की आशंका रहती है।
- गरीबी और सामाजिक असमानता: गरीब और वंचित वर्ग की महिलाओंको अधिक यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियां: पुलिस जांच कीलचर व्यवस्थाऔर मामलों की धीमी सुनवाई अपराधियों को सजा से बचने में मदद करती है।
- कम सजा दर (low conviction rate) अपराधियों के हौसले बढ़ाती है।
यौन हिंसा के दुष्परिणाम:
- सामाजिक प्रभाव:
- कलंक और अपमान: पीड़ित और उनके परिवार को समाज में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है।
- सामाजिक बहिष्कार: अविवाहित पीड़ितों को विवाह और सामाजिक स्वीकार्यता में कठिनाई होती है।
- मानसिक और शारीरिक प्रभाव:
- मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: अवसाद, चिंता, PTSD और आत्महत्या का खतरा बढ़ जाता है।
- अवांछित गर्भधारण एवं यौन संक्रामक रोग: कानूनी बाधाओं के कारण असुरक्षित गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है।
- HIV और अन्य संक्रमणों का खतरा: सुरक्षा उपायों की कमी से जोखिम अधिक रहता है।
- आर्थिक और शैक्षिक प्रभाव:
- रोजगार पर असर: पीड़ित काम छोड़ने या छुट्टी लेने को मजबूर होते हैं।
- शिक्षा पर प्रभाव: पीड़ितों की पढ़ाई बाधित होती है, जिससे करियर पर नकारात्मक असर पड़ता है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- विधायी पहल:
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: निर्भया कांड के बाद लागू, सख्त सजा और नए अपराध जोड़े गए।
- POCSO अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए।
- POSH अधिनियम, 2013: कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023: महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर कड़े प्रावधान।
- नीतिगत पहल:
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (2015): लड़कियों की सुरक्षा और शिक्षा को बढ़ावा।
- वन स्टॉप सेंटर (2015): हिंसा पीड़ित महिलाओं को सहायता।
- निर्भया फंड (2013): महिला सुरक्षा और हेल्प डेस्क के लिए।
- महिला पुलिस स्वयंसेवक योजना: महिलाओं की सहायता के लिए समुदाय स्तर पर सहयोग।