Genetically modified crops
Genetically modified crops –
संदर्भ:
अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा है कि वह जैव-संशोधित (GM) उत्पादों जैसे सोयाबीन मील और डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्युबल्स (DDGS) के आयात की अनुमति दे — जो पशु आहार के रूप में उपयोग होते हैं। DDGS एथेनॉल उत्पादन की प्रक्रिया में बना एक उप-उत्पाद है। हालांकि, भारत ने अब तक घरेलू स्तर पर भी GM फसलों को लेकर सतर्क रुख अपनाया है, ऐसे में आयातित GM उत्पादों की अनुमति देना सरकार के लिए एक कठिन निर्णय बन गया है।
जेनेटिकली मोडिफाइड फसलें: प्रमुख जानकारी
परिभाषा:
- Genetically Modified (GM) crops वे फसलें हैं जिनके डीएनए (DNA) को आधुनिक बायोटेक्नोलॉजी या जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से बदला गया होता है।
- इसका उद्देश्य ऐसे गुणों को शामिल करना होता है जो प्राकृतिक रूप से मौजूद नहीं होते या पारंपरिक कृषि विधियों से प्राप्त नहीं किए जा सकते।
इतिहास: पहली वाणिज्यिक GM खाद्य फसल 1994 में अमेरिका में विकसित टमाटर था, जिसे आम जनता के लिए उपलब्ध कराया गया।
वैश्विक स्थिति (2023 तक):
- 2023 तक 200 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में GM फसलें जैसे सोयाबीन, मक्का, कैनोला आदि उगाई जा रही हैं।
- ये फसलें 76 देशों में खेती के तहत हैं, जिससे यह तकनीक वैश्विक स्तर पर तेजी से अपनाई जा रही है।
भारत में स्थिति: भारत में Bt कपास (Bt cotton) एकमात्र वाणिज्यिक रूप से स्वीकृत GM फसल है, जिसे कीट प्रतिरोधी गुणों के लिए अपनाया गया है।
Other GM Crops in India: प्रमुख जानकारी
Bt Cotton:
- भारत में एकमात्र वाणिज्यिक रूप से स्वीकृत GM फसल।
- इसने कपास उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि की है और कीटों के नियंत्रण में कारगर सिद्ध हुआ है।
Bt Brinjal:
- 2009 में GEAC (Genetic Engineering Appraisal Committee) द्वारा स्वीकृत किया गया था।
- लेकिन सार्वजनिक चिंता और वैज्ञानिक मतभेदों के कारण उस पर moratorium (अस्थायी रोक) लगा दी गई, और अब भी यह पुनरीक्षण प्रक्रिया में है।
GM Mustard:
- दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई पहली GM खाद्य फसल।
- इसे बीज उत्पादन और परीक्षण के लिए स्वीकृति मिली है, लेकिन अब तक वाणिज्यिक खेती की अनुमति नहीं दी गई है।
भारत के लिए जी.एम. फसलों का महत्व
- उत्पादकता में वृद्धि (Bridging the Yield Gap):
- भारत की कपास, दलहन और तिलहन की उपज वैश्विक स्तर से काफी कम है।
- Bt कपास ने उपज को तीन गुना तक बढ़ाया, लेकिन अब भी भारत का औसत 504 किग्रा/हेक्टेयर अमेरिका (1,008) और चीन (1,761) से पीछे है।
- GM फसलें इस yield gap को पाटने में सहायक हो सकती हैं।
- लागत में कमी और रसायनों पर निर्भरता घटाना:
- Bt कपास ने कीटनाशक उपयोग में 50% तक की कमी की, जिससे लागत घटने के साथ-साथ पर्यावरणीय सुरक्षा भी बढ़ी।
- जलवायु अनुकूलन क्षमता में सुधार:
- GM लक्षण सूखा, बाढ़ और गर्मी जैसी परिस्थितियों में सहनशीलता बढ़ाते हैं।
- यह भारत की मानसून–निर्भर और जलवायु–असुरक्षित कृषि के लिए बेहद आवश्यक है।
- पोषण सुरक्षा का समर्थन:
- Golden Rice और आयरन/जिंक युक्त अनाज जैसी GM फसलें छिपी भूख (hidden hunger) से लड़ने में मदद कर सकती हैं।
- इन्हें PDS और Mid-Day Meal योजनाओं के पूरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
- किसानों की आय और निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि:
- Bt कपास से विशेषकर गुजरात में कृषि विकास और किसानों की आय में इजाफा हुआ।
- व्यापक GM अपनाने से निर्यात (जैसे कपास, सोयाबीन) को बल मिलेगा और आयात (जैसे खाद्य तेल) पर निर्भरता घटेगी।
- भारतीय अनुसंधान और नवाचार को मजबूती
- GM सरसों (DMH-11) जैसी स्वदेशी तकनीक भारत की नवाचार क्षमता को दर्शाती है।