Global Drought Outlook 2025
Global Drought Outlook 2025 –
संदर्भ:
हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा ग्लोबल ड्रॉट आउटलुक 2025 जारी किया गया, जिसमें विश्वभर में सूखे की बढ़ती गंभीरता को लेकर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अब दुनिया के लगभग 40% भूमि क्षेत्र को अधिक बार और अधिक गंभीर सूखे का सामना करना पड़ रहा है।
- यह चेतावनी जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और कृषि सुरक्षा के लिए एक गंभीर संकेत मानी जा रही है।
वैश्विक सूखा संकट: प्रमुख निष्कर्ष
सूखा–प्रभावित भूमि में तेज़ वृद्धि:
- 1900 से 2020 के बीच सूखा प्रभावित वैश्विक भूमि क्षेत्र दोगुना हो गया।
- वर्तमान में पृथ्वी का लगभग 40% हिस्सा अधिक बार और तीव्रता से सूखे का सामना कर रहा है।
मिट्टी और भूजल पर असर:
- 1980 से अब तक, वैश्विक स्तर पर 37% भूमि पर मिट्टी की नमी में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
- 62% निगरित एक्विफ़र्स (जलभृत) में भूजल स्तर में गिरावट देखी गई है।
जलवायु परिवर्तन की भूमिका:
- 2022 के यूरोपीय सूखे की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 20 गुना तक अधिक हुई।
- उत्तरी अमेरिका में जारी सूखा भी जलवायु परिवर्तन के चलते 42% अधिक संभावित हो गया है।
सूखा (Drought) और उसके प्रकार
परिभाषा: सूखा एक जल-संतुलन का असंतुलन (Hydrological Imbalance) है, जिसमें लंबे समय तक सामान्य से कम वर्षा होने के कारण मिट्टी की नमी, सतही जल और भूजल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सूखे के प्रकार:
- मौसमीय सूखा (Meteorological Drought):
- जब किसी क्षेत्र में लंबे समय तक सामान्य से बहुत कम वर्षा होती है।
- इससे वातावरण में अत्यधिक सूखापन और जल संकट उत्पन्न होता है।
- कृषि सूखा (Agricultural Drought):
- जब मिट्टी की नमी फसलों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हो जाती है।
- इससे फसल उत्पादन में गिरावट आती है और खेती प्रभावित होती है।
- जलविज्ञान संबंधी सूखा (Hydrological Drought):
- जब नदियाँ, झीलें और भूजल स्तर सामान्य से नीचे गिर जाते हैं।
- यह मानव उपयोग और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जल की उपलब्धता को प्रभावित करता है।
वैश्विक स्तर पर सूखा: प्रमुख रुझान
प्रभावित भूमि:
- 1900 के बाद से वैश्विक सूखा-प्रभावित भूमि दोगुनी हो चुकी है।
- इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में बदलाव है।
वर्तमान स्थिति (2023):
- दुनिया की लगभग 48% भूमि को कम-से-कम एक महीने के लिए अत्यधिक सूखे का सामना करना पड़ा।
- इससे पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों पर गंभीर दबाव पड़ा।
क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: पश्चिमी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में लंबे और तीव्र सूखे अब आम होते जा रहे हैं।
जल संसाधनों पर प्रभाव:
- 62% निगरित जलभृत (aquifers) में भूजल स्तर घट रहा है।
- कई प्रमुख नदियों में जलप्रवाह में कमी देखी जा रही है, जिससे जल सुरक्षा खतरे में है।
भविष्यवाणियाँ:
- यदि वैश्विक तापमान +4°C तक बढ़ता है, तो 2100 तक सूखे की आवृत्ति और तीव्रता 7 गुना तक बढ़ सकती है।
- यह वैश्विक स्तर पर प्रणालीगत खतरा बन सकता है।
सूखे के प्रभाव:
- पर्यावरणीय प्रभाव
- आर्थिक प्रभाव
- वैश्विक आर्थिक लागत में वृद्धि
- सामाजिक प्रभाव
- घटनाएं कम, लेकिन मृत्यु दर अधिक