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ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS)

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सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) संशोधन नियम, 2024 अधिसूचित किए हैं, जो राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत हैं।

महत्वपूर्ण परिवर्तन:

  • ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS)-आधारित ETC: इस नए नियम में GNSS-आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह (ETC) के प्रावधान जोड़े गए हैं, जो कि 2008 के नियमों में संशोधन के रूप में लागू होंगे।
  • टोल लगाने के तरीके: अब स्वचालित नंबर प्लेट पहचान (एपीएनआर) डिवाइस और GNSS ऑन-बोर्ड यूनिट (ओबीयू) को टोल संग्रह के तरीकों में शामिल किया जाएगा।
  • शून्य उपयोगकर्ता शुल्क: यांत्रिक वाहनों (राष्ट्रीय परमिट वाहनों को छोड़कर) के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों पर प्रत्येक दिशा में 20 किलोमीटर तक की यात्रा पर कोई उपयोगकर्ता शुल्क नहीं लगेगा।
  • विशेष लेन: GNSS के लिए विशेष लेन बनाई जाएगी। इस लेन में प्रवेश करने वाले गैर-ओबीयू वाहनों को दोगुना शुल्क देना होगा।
  • फास्टैग की जगह: GNSS-आधारित ETC का उद्देश्य भविष्य में फास्टैग के स्थान पर टोल संग्रह को सुविधाजनक बनाना है।

GPS-आधारित टोल सिस्टम (GNSS) क्या है?

GPS-आधारित टोल सिस्टम एक तरीका है जिसमें सैटेलाइट्स और वाहन में लगे ट्रैकिंग डिवाइस का उपयोग करके टोल की गणना की जाती है। यह वाहन द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर टोल चार्ज करता है।

टोल की गणना:

  • टोल वाहन द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर लिया जाएगा।

फायदे:

  • टोल प्लाजा की ज़रूरत खत्म होती है।
  • ट्रैफिक जाम कम होगा।
  • ड्राइवर्स को टोल बूथ पर इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

नए नियम:

  • सड़क परिवहन मंत्रालय ने टोल नियमों में संशोधन किया है।
  • यदि यात्रा की दूरी 20 किलोमीटर से अधिक है, तो टोल वास्तविक दूरी के आधार पर लिया जाएगा।

GNSS तकनीक कैसे काम करेगी?

  • सिस्टम: GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) से वाहन की स्थिति ट्रैक की जाएगी।
  • ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU): वाहन में लगा डिवाइस, जो GPS का उपयोग करके टोल की गणना करेगा।
  • कैमरे: हाईवे पर गैण्ट्रीज़ और CCTV कैमरे निगरानी के लिए लगाए जाएंगे।

GNSS तकनीक के फायदे:

  • टोल बूथ की ज़रूरत खत्म हो जाती है।
  • ट्रैफिक जाम और इन्फ्रास्ट्रक्चर लागत कम होती है।
  • लगातार और सटीक ट्रैकिंग के साथ सही टोल की गणना होती है।

FASTag की तुलना में GNSS क्यों बेहतर है?

  • इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: टोल बूथ की ज़रूरत नहीं।
  • लगातार ट्रैकिंग: सही टोल की गणना।
  • लचीलापन: अलग-अलग टोल दरों और दूरी के लिए उपयुक्त।
  • कम प्रशासन: ऑटोमेशन से मैन्युअल काम कम होता है।

GNSS का टोल राजस्व पर प्रभाव:

  • वर्तमान में NHAI सालाना 40,000 करोड़ रुपये का टोल राजस्व जुटाती है।
  • GNSS से यह राशि बढ़कर 4 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच सकती है।
  • नए सिस्टम को FASTag के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाएगा, और विशेष लेन बनाकर टोल कलेक्शन किया जाएगा।

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