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भारत दुनिया का पहला देश है जिसने “ग्रीन स्टील” के लिए टैक्सोनॉमी (परिभाषा और मानक) निर्धारित की है। यह स्टील सेक्टर में डिकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन में कमी) की दिशा में भारत की बड़ी उपलब्धि है।
ग्रीन स्टील टैक्सोनॉमी क्या है?
यह एक ऐसा ढांचा है जो “ग्रीन स्टील” को उसके कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता (Emission Intensity) के आधार पर परिभाषित करता है।
मुख्य विशेषताएँ:
- उत्सर्जन की सीमा (Emission Intensity Threshold): ग्रीन स्टील वह स्टील होगा, जिसका कार्बन उत्सर्जन 2 टन CO2e प्रति टन तैयार स्टील से कम होगा।
- स्टार रेटिंग सिस्टम: ग्रीन स्टील को उसके उत्सर्जन की तीव्रता के आधार पर स्टार रेटिंग दी जाएगी:
- 5 स्टार: < 1.6 tCO2e/tfs
- 4 स्टार:6 – 2.0 tCO2e/tfs
- स्टार:0 – 2.2 tCO2e/tfs
- उत्सर्जन का दायरा (Scope of Emissions):
- स्कोप 1: प्रत्यक्ष उत्सर्जन।
- स्कोप 2: ऊर्जा खपत से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन।
- सीमित स्कोप 3: आपूर्ति श्रृंखला से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन।
- नोडल एजेंसी: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी स्टील टेक्नोलॉजी (NISST) मापन, रिपोर्टिंग, सत्यापन और ग्रीन सर्टिफिकेट जारी करने का कार्य करेगा।
- समीक्षा: उत्सर्जन की सीमा को हर तीन साल में समीक्षा कर बेहतर बनाया जाएगा।
ग्रीन स्टील टैक्सोनॉमी के फायदे:
- पर्यावरणीय स्थिरता: स्टील सेक्टर में कार्बन उत्सर्जन घटाकर पर्यावरण की रक्षा।
- वैश्विक नेतृत्व: ग्रीन स्टील मानक निर्धारित कर भारत को एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना।
- बाजार निर्माण: लो-कार्बन स्टील उत्पादों की मांग बढ़ाना और टिकाऊ तकनीकों को प्रोत्साहित करना।
- नीतिगत समन्वय: ग्रीन स्टील उत्पादन के लिए नीतियां और प्रोत्साहन विकसित करने में सहायता।
चुनौतियाँ:
- लागू करना: उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारी निवेश और नई तकनीकों की आवश्यकता होगी।
- डाटा संग्रह और सत्यापन: उत्सर्जन मापन और रिपोर्टिंग की सटीकता सुनिश्चित करना।
- प्रतिस्पर्धा: वैश्विक बाजार में भारतीय स्टील की प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखना।
स्टील सेक्टर के डिकार्बोनाइजेशन के लिए भारतीय प्रयास:
- नेशनल मिशन ऑन ग्रीन स्टील (NMGS)
- ग्रीन स्टील सार्वजनिक खरीद नीति (GSPPP)
- स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति 2019
- परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना
- कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS)