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हाल ही में भारत ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2024 को राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते या उच्च सागर संधि पर हस्ताक्षर किए।
क्या है उच्च सागर?
- उच्च सागर, वे महासागरीय क्षेत्र हैं जो किसी देश के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, यानी यह प्रादेशिक जल और विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) से परे होते हैं।
- यह महासागरीय क्षेत्र समुद्र की सतह का 65% और पृथ्वी का 43% हिस्सा बनाते हैं।
- उच्च समुद्र अंतरराष्ट्रीय जल-क्षेत्र का हिस्सा होते हैं और इनका कोई राष्ट्रीय स्वामित्व नहीं होता, इस कारण इनकी सुरक्षा वैश्विक जिम्मेदारी होती है।
उच्च सागर का महत्व:
- महासागर, 3 अरब लोगों के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत और 90% माल ढुलाई के लिए जिम्मेदार हैं।
- यह गहरे समुद्र तल में खनिजों और दुर्लभ मृदा तत्वों का भंडार रखते हैं, जो उभरती तकनीकों के लिए आवश्यक होते हैं।
- महासागर 50% से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं और मानव गतिविधियों से उत्पन्न CO2 का 25% अवशोषित करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS):
- यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो महासागरों और उनके संसाधनों के उपयोग के लिए नियम स्थापित करती है।
- UNCLOS का उद्देश्य समुद्री गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करना है और विवादों का समाधान करना है।
- भारत सहित 169 देशों और यूरोपीय संघ ने UNCLOS पर हस्ताक्षर किए हैं।
उच्च सागर संधि (BBNJ) क्या है?
- यह संधि उच्च समुद्र में सभी मानवीय गतिविधियों को विनियमित करती है ताकि महासागरीय संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और उनके लाभों को देशों के बीच समान रूप से साझा किया जा सके।
- इस संधि का उद्देश्य समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPAs) का सीमांकन, महासागरीय आनुवंशिक संसाधनों का न्यायसंगत बंटवारा, और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की प्रक्रिया शुरू करना है।
- यह संधि एक कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज है, जिसे अब तक 105 देशों ने हस्ताक्षरित किया है।
भारत के लिए प्रासंगिकता:
- भारत की नीली अर्थव्यवस्था और समुद्री नीतियों के तहत उच्च सागर संधि का पालन भारत की समुद्री सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकता है।
- यह भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिति को मजबूत करने में सहायक होगी, विशेषकर “सागर” नीति के तहत जो समुद्र की सुरक्षा और विकास को बढ़ावा देती है।
संधि की चुनौतियाँ:
- उच्च सागर के 1.44% हिस्से को ही संरक्षित किया गया है, जबकि 2030 तक 30% हिस्से को संरक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है, जो चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- महासागरीय आनुवंशिक संसाधनों पर तकनीकी रूप से उन्नत देशों का एकाधिकार और बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े विवाद भी समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
- छोटे द्वीप देशों और स्थल-रुद्ध देशों में संसाधनों की कमी, और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की उच्च लागत भी एक बड़ी बाधा है।