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संदर्भ:
वैश्विक तापमान वृद्धि: संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर–सरकारी पैनल (IPCC) के अध्यक्ष जिम स्की ने कहा कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने की संभावना अभी भी बनी हुई है, लेकिन यह अत्यंत संकटपूर्ण स्थिति में है।
- उन्होंने जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित और कठोर कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे कार्बन उत्सर्जन को प्रभावी रूप से कम किया जा सके और ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर प्रभावों से बचाव किया जा सके।
जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि पर चेतावनी:
- तापमान वृद्धि और जलवायु संकट:
- 2024 में वैश्विक तापमान वृद्धि 5°C से अधिक हो गई, जिससे दुनिया एक उच्च जलवायु जोखिम क्षेत्र में प्रवेश कर रही है।
- इस प्रभाव को सीमित करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है।
- अनुकूलन (Adaptation) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को कम किया जा सकता है।
- IPCC की चेतावनी: 2018 में प्रकाशित IPCC की विशेष रिपोर्ट में कहा गया था कि 5°C तापमान सीमा को वैज्ञानिक दृष्टि से बनाए रखना संभव है।
- पेरिस जलवायु समझौता: लगभग 200 देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और संभव हो तो 5°C तक सीमित रखने का निर्णय लिया था।
- TERI विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन:
- यह तीन दिवसीय सम्मेलन IPCC की चीन में हुई महत्वपूर्ण बैठक के कुछ दिनों बाद आयोजित किया गया।
- IPCC का अगला समग्र रिपोर्ट सेट 2029 के उत्तरार्ध में जारी किया जाएगा।
पेरिस समझौते का अंगीकरण:
- कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि: यह जलवायु परिवर्तन पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है।
- अंगीकरण और प्रभावी तिथि
- इसे 12 दिसंबर 2015 को फ्रांस के पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 196 पक्षों द्वारा अपनाया गया।
- यह 4 नवंबर 2016 से प्रभावी हुआ।
- उद्देश्य: जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना और एक सतत, निम्न-कार्बन (low-carbon) भविष्य की दिशा में तेजी से कार्य करना।
- मुख्य लक्ष्य
- वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से2°C से नीचे सीमित करना।
- इसे और घटाकर5°C तक सीमित करने के प्रयास करना।
आगे का मार्ग (Way Forward):
- वैश्विक आपातकाल: जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक आपातकाल है, जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाता है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक: यह एक ऐसी समस्या है, जिसके समाधान के लिए सभी स्तरों पर समन्वित प्रयास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
- कम कार्बन समाधान और नए बाजार: पेरिस समझौते के बादनिम्न–कार्बन (low-carbon) समाधानों और नए बाजारों के विकास में प्रगति हुई है।
- 2030 तक शून्य–कार्बन समाधान की प्रतिस्पर्धात्मकता: 2030 तक, शून्य-कार्बन (zero-carbon) समाधान 70% से अधिक वैश्विक उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं, जिससे शुरुआती अपनाने वालों (early adopters) के लिए नए व्यापारिक अवसर पैदा होंगे।
- नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कोपवन और सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और अनुकूलन रणनीतियों (adaptation strategies) के माध्यम से कम किया जा सकता है।