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वैश्विक प्रवासी श्रमिकों पर रिपोर्ट : ILO

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संदर्भ:

दिसंबर 2024 में, अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) की वैश्विक प्रवासी श्रमिकों पर रिपोर्ट जारी की। यह चौथी वैश्विक रिपोर्ट जारी की गई हैं। 

वैश्विक प्रवासी श्रमिकों पर रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

वैश्विक प्रवासी अनुमान:

  • 2022 में लगभग 169 मिलियन अंतरराष्ट्रीय प्रवासी श्रमिक दर्ज किए गए।
  • यह वैश्विक श्रम शक्ति का 4.7% है।
  • वैश्विक श्रम शक्ति का अर्थ है वे लोग जो नियोजित या बेरोजगार हैं लेकिन काम करने के इच्छुक हैं।
  • वृद्धि का रुझान: प्रवासी श्रमिकों की संख्या 2013 में 150 मिलियन, 2017 में 164 मिलियन से बढ़कर 2022 में 169 मिलियन हो गई।

क्षेत्रीय वितरण: 68.4% प्रवासी श्रमिक उच्च आय वाले देशों जैसे यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अरब देशों में स्थित हैं।

लैंगिक असमानता:

  • प्रवासी श्रमिकों में महिलाओं की भागीदारी केवल 38.7% है, जबकि पुरुषों की भागीदारी 61.3% है।
  • महिलाएं मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं, विशेष रूप से देखभाल अर्थव्यवस्था से जुड़े कार्यों में।

प्रवासी श्रमिकों का क्षेत्रवार वितरण:

  • 68.4% प्रवासी श्रमिक सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
  • महिला प्रवासी श्रमिकों का सेवा क्षेत्र में वर्चस्व (80.1%) पुरुषों (60.8%) की तुलना में अधिक है।
  • निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक है।
  • कृषि क्षेत्र मुख्य रूप से गैर-प्रवासियों द्वारा संचालित है।

रिपोर्ट में उजागर चुनौतियाँ:

  1. लैंगिक भेदभाव:
    • प्रवासी महिलाओं को देखभाल अर्थव्यवस्था तक सीमित रखा जाता है।
    • पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बेरोजगारी दर अधिक है।
  2. आर्थिक असुरक्षा:
    • प्रवासी श्रमिकों को कम वेतन और शोषणकारी परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।
    • सामाजिक सुरक्षा की कमी आपातकालीन स्थितियों में श्रमिकों को संकट में डालती है।
  3. रोजगार में बाधाएं: योग्यता, कौशल की कमी और भाषाई बाधाएं श्रमिकों के लिए नई जगहों में समायोजन को कठिन बनाती हैं।
  4. सामाजिक अलगाव: प्रवासी श्रमिकों को अक्सर ज़ेनोफोबिया (विदेशियों के प्रति भय), नस्लवाद और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।
  5. प्रवास की उच्च लागत:
    • प्रवासी श्रमिकों को एजेंटों को अत्यधिक शुल्क देना पड़ता है, जिससे वे ऋण और वित्तीय बोझ में फंस जाते हैं।
    • इससे श्रमिक मानव तस्करी और जबरन श्रम के शिकार बनते हैं, जैसे कि अरब देशों की कफाला प्रणाली।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के बारे में:

स्थापना:

  • 1919 में वर्साय संधि के तहत प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ILO की स्थापना हुई।
  • इसका उद्देश्य था कि सामाजिक न्याय के आधार पर सार्वभौमिक और स्थायी शांति स्थापित की जाए।
  • 1946 में, लीग ऑफ नेशंस के विघटन के बाद, ILO संयुक्त राष्ट्र की पहली विशेषीकृत एजेंसी बनी।

विशेषता:

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय एजेंसी है जहां श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकारों के प्रतिनिधियों को नीति-निर्माण में समान अधिकार प्राप्त हैं।
  • इन तीनों समूहों का ILO की सभी निर्णय लेने वाली संस्थाओं में प्रतिनिधित्व होता है और वे इसके कार्यों को संचालित करने की जिम्मेदारी साझा करते हैं।

मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के उद्देश्य:

  1. श्रम मानकों और मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देना और सुनिश्चित करना:
  2. स्त्री-पुरुष दोनों के लिए सम्मानजनक रोजगार और आय के अवसर सृजित करना:
  3. सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा कवरेज और प्रभावशीलता को बढ़ाना:
  4. त्रिपक्षीय सहयोग और सामाजिक संवाद को मजबूत करना

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