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भारत के समुद्र तट की लंबाई में वृद्धि (Increase in the length of India’s coastline) | Ankit Avasthi Sir

Increase in the length of India’s coastline

संदर्भ:

गृह मंत्रालय ने अपनी 2023–24 की रिपोर्ट में भारत के समुद्र तट (coastline) की लंबाई को संशोधित कर 11,099 किलोमीटर कर दिया है, जो पहले 7,516.6 किलोमीटर मानी जाती थी। यह अद्यतन आंकड़ा तटीय क्षेत्रों के बेहतर प्रबंधन और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

(Increase in the length of India’s coastline) भारत के समुद्र तट की लंबाई में वृद्धि के कारण:

उच्चरिज़ॉल्यूशन मैपिंग तकनीकों का उपयोग:

  • पुरानी गणना (1970s):
    • 1:45,00,000 पैमाने के कम-रिज़ॉल्यूशन मानचित्रों का उपयोग किया गया था।
    • संकीर्ण ज्वारीय नदियाँ, रेत की पट्टियाँ जैसे सूक्ष्म तटीय तत्व छूट गए थे।
  • नई गणना (2024):
    • 1:2,50,000 पैमाने के हाई-रिज़ॉल्यूशन चार्ट्स का उपयोग किया गया।
    • तटीय भौगोलिक संरचनाओं को अधिक विस्तार से मापा गया।
    • उदाहरण:
      • ज्वारीय नदियाँ (Tidal Creeks)
      • रेत की पट्टियाँ (Sandbars)
      • मुहाने (Estuaries)
      • ज्वारीय समतल (Tidal Flats)
      • तटीय कगार (Coastal Ridges)
      • इनलेट्स (Inlets)

द्वीप समूहों का सटीक समावेश:

  • अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप जैसे द्वीप समूह जो पहले आंशिक रूप से ही शामिल थे, अब पूरी तरह से कवर किए गए हैं।

कोस्टलाइन पैरेडॉक्स (Coastline Paradox):

  • कोस्टलाइन पैरेडॉक्स यह दर्शाता है कि किसी समुद्र तट की लंबाई उस माप के पैमाने पर निर्भर करती है जिससे उसे मापा जाता है।
  • जैसे-जैसे मापने का पैमाना छोटा (अधिक सूक्ष्म) होता है, समुद्र तट की लंबाई बढ़ती जाती है

यूक्लिडियन ज्यामिति (Euclidean Geometry)

  • इस ज्यामिति में आकृतियाँ सपाट रेखाओं और मुलायम वक्रों से बनती हैं।
  • लंबाई मापना सीधा और निश्चित होता है।

भारत में बढ़ती समुद्र तट की लंबाई:

  1. समुद्री सुरक्षा (Maritime Security)
  • अब अधिक क्षेत्र की निगरानी और सुरक्षा करनी होगी।
    (उदाहरण: 26/11 के बाद स्थापित कोस्टल रडार ग्रिड)
  • कोस्टल पुलिसिंग और नौसेना की तैनाती की रणनीति को नए सिरे से आंकलन करना पड़ेगा
  1. आपदा प्रबंधन (Disaster Management)
  • चक्रवात, सुनामी और समुद्री जल-स्तर वृद्धि से निपटने के लिए बेहतर योजना संभव।
    (उदाहरण: ओडिशा की अर्ली वार्निंग सिस्टम)
  • Coastal Regulation Zone (CRZ) मैपिंग की सटीकता में सुधार होगा।
  1. आर्थिक क्षेत्र निर्धारण (Economic Zoning)
  • EEZ (Exclusive Economic Zone) की गणना और मत्स्य पालन अधिकार के निर्धारण में बदलाव संभव।
  • तमिलनाडु और केरल जैसे तटीय राज्यों को ब्लू इकॉनमी में अधिक लाभ मिल सकता है।
  1. अवसंरचना योजना: बंदरगाह, शिपिंग लेन, और तटीय पर्यटन के लिए सटीक डाटा उपलब्ध होगा।
    (उदाहरण: सागरमाला परियोजना)

बढ़ती समुद्र तट लंबाई का महत्व:

  • यह वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाता है – भौगोलिक सटीकता में सुधार, न कि क्षेत्रीय विस्तार।
  • इससे नीति निर्धारण को बल मिलता है – खासकर जलवायु अनुकूलन, जैवविविधता संरक्षण और तटीय विकास में।

भारत की समुद्री पहचान को और सुदृढ़ करता है – ब्लू इकॉनमी में वैश्विक नेतृत्व के लक्ष्य को सहयोग देता है।

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