Prelims GS– अंतरराष्ट्रीय महत्व से संबंधित वर्तमान घटनाएं Mains GS II – भारत एवं उसके पड़ोसी-संबंध, द्विपक्षीय समूह भारत से संबंधित। GS III – सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियां एवं उनका प्रबंधन। |
चर्चा में क्यों?
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि हाल ही में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि बांग्लादेश के विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने भारत से अपनी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की संभावना को लेकर संकेत दिए हैं। शेख हसीना के खिलाफ उनके पद से हटने के बाद कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इन मामलों के चलते बांग्लादेश सरकार के गृह और कानून मंत्रालय ने यदि निर्णय लिया, तो भारत पर शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने का दबाव बनाया जा सकता है। इस संदर्भ में, भारत और बांग्लादेश के बीच की प्रत्यर्पण संधि की प्रासंगिकता और इसके कानूनी पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
भारत – बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) क्या हैं?
- भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि एक द्विपक्षीय समझौता है, जिसे दोनों देशों ने 2013 में हस्ताक्षरित किया था। जिसे 2016 में संशोधित भी किया गया था।
- इस संधि के तहत, यदि कोई अपराधी या वांछित व्यक्ति एक देश में भागकर दूसरे देश में शरण लेता है, तो उस व्यक्ति को संबंधित देश में भेजा जा सकता है जहां उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई लंबित हो। हालांकि, प्रत्यर्पण के लिए कुछ शर्तें और प्रक्रियाएं भी निर्धारित की गई हैं, जिनमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि संबंधित अपराध संधि के दायरे में आता हो और वह राजनीतिक या सैन्य अपराध न हो।
- इस संधि का उद्देश्य अपराधियों, आतंकवादियों, और अन्य वांछित व्यक्तियों को उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में न्याय के कटघरे में खड़ा करने के लिए प्रत्यर्पित करना है।
- यह संधि दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है ताकि कानून व्यवस्था को बनाए रखा जा सके और सीमा पार से होने वाले अपराधों को नियंत्रित किया जा सके।
- यह संधि दोनों देशों के बीच आतंकवाद और संगठित अपराधों से निपटने में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखी जाती है।
- संधि के तहत, दोनों देश प्रत्यर्पण के मामलों को न्यायसंगत और कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार निपटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के प्रमुख अपवादी बिंदु
- अपराधों का दायरा: इस संधि के तहत केवल उन अपराधों के लिए प्रत्यर्पण किया जा सकता है जिनकी गंभीरता दोनों देशों के कानूनों में मान्यता प्राप्त हो। इनमें आतंकवाद, हत्या, अपहरण, तस्करी, धोखाधड़ी, और अन्य गंभीर आपराधिक गतिविधियां शामिल हैं।
- राजनीतिक और सैन्य अपराधों का अपवाद: यदि कोई व्यक्ति राजनीतिक या सैन्य अपराध के लिए वांछित है, तो उसे इस संधि के तहत प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संधि का दुरुपयोग राजनीतिक प्रतिशोध के लिए न हो।
- दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत: प्रत्यर्पण तभी संभव है जब वह अपराध दोनों देशों के कानूनों में अपराध के रूप में परिभाषित हो। इसे “दोहरी आपराधिकता” का सिद्धांत कहा जाता है।
- प्राथमिक कानूनी प्रक्रियाएं: प्रत्यर्पण के लिए संबंधित देश की अदालतों में पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया न्यायिक समीक्षा के माध्यम से होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्यर्पण न्यायसंगत और कानूनी हो।
- समझौता करने की अनिवार्यता नहीं: दोनों देश प्रत्यर्पण अनुरोधों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं हैं। यदि कोई देश किसी कारण से प्रत्यर्पण नहीं करना चाहता है, तो वह इसे अस्वीकार कर सकता है।
- अस्थायी प्रत्यर्पण: यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ एक से अधिक मामलों में कार्यवाही लंबित है, तो उस व्यक्ति को अस्थायी रूप से प्रत्यर्पित किया जा सकता है ताकि दूसरे देश में न्यायिक प्रक्रिया पूरी की जा सके।
दो देशों के बीच प्रत्यर्पण की प्रक्रिया
प्रत्यर्पण प्रक्रिया एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से एक देश किसी व्यक्ति को, जो किसी अपराध के लिए दूसरे देश में वांछित है, उस देश को सौंप देता है।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी की जाती है:
- अनुरोध का प्रारंभ: जिस देश (आवेदनकर्ता देश) को किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण चाहिए, वह औपचारिक रूप से प्रत्यर्पण का अनुरोध करता है।
- आवश्यक दस्तावेज: अनुरोध के साथ अपराध का विवरण, दोषारोपण के सबूत, गिरफ्तारी वारंट, और कानूनी आधार को प्रदर्शित करने वाले दस्तावेज शामिल होते हैं।
- प्रारंभिक जांच: अनुरोध प्राप्त करने के बाद, प्रत्यर्पण अनुरोध पर विचार किया जाता है कि क्या यह देश की कानूनी आवश्यकताओं और प्रत्यर्पण संधि के प्रावधानों के अनुरूप है।
- प्रारंभिक स्वीकृति: यदि अनुरोध को प्रारंभिक तौर पर स्वीकार किया जाता है, तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है, और उसे अदालत के सामने पेश किया जाता है।
- अदालत की सुनवाई: व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाता है, जहां प्रत्यर्पण के लिए आवश्यक कानूनी आधार की समीक्षा की जाती है। अदालत यह जांच करती है कि क्या सभी आवश्यक शर्तें पूरी हो रही हैं, जैसे दोहरी आपराधिकता, मानवाधिकारों की सुरक्षा, और उचित कानूनी प्रक्रिया।
- सरकार की स्वीकृति: अदालत के प्रत्यर्पण की सिफारिश के बाद अंतिम निर्णय सरकार के पास होता है।
- व्यक्ति का हस्तांतरण: सरकार की मंजूरी के बाद, व्यक्ति को उस देश की हिरासत में सौंपा जाता है जिसने प्रत्यर्पण का अनुरोध किया था। यह प्रक्रिया दोनों देशों के बीच निर्धारित समझौतों के अनुसार होती है।
- मानवाधिकारों की निगरानी: प्रत्यर्पण प्रक्रिया में यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्यर्पित व्यक्ति को निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रिया मिले और उसके मानवाधिकारों का हनन न हो। यदि प्रत्यर्पण के बाद व्यक्ति के साथ किसी प्रकार की अमानवीयता की संभावना होती है, तो प्रत्यर्पण नहीं किया जाएगा।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत महत्वपूर्ण मामले
- जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के आतंकवादी: जेएमबी जैसे आतंकवादी संगठनों के कई सदस्य, जो बांग्लादेश में वांछित थे, ने भारत के पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में शरण ली थी। इन आतंकवादियों के खिलाफ दोनों देशों के सुरक्षा बलों ने मिलकर कार्रवाई की, जिसके परिणामस्वरूप कुछ आतंकवादियों को गिरफ्तार करके उन्हें बांग्लादेश को प्रत्यर्पित किया गया। इस प्रक्रिया ने दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को मजबूत किया है।
- यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के नेता अनूप चेतिया का प्रत्यर्पण (2015): 2015 में, भारत ने उल्फा के शीर्ष नेता अनूप चेतिया को बांग्लादेश से सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित किया। अनूप चेतिया, जो असम में अलगाववादी गतिविधियों में शामिल थे, कई वर्षों तक बांग्लादेश में शरण लिए हुए थे। बांग्लादेश सरकार ने भारत के अनुरोध पर चेतिया को प्रत्यर्पित किया, जिससे भारत के लिए उल्फा के खिलाफ कानूनी कार्यवाही में महत्वपूर्ण बढ़त मिली। यह मामला संधि के तहत सबसे उल्लेखनीय प्रत्यर्पणों में से एक है।
भारत-बांग्लादेश संबंध
- भारत-बांग्लादेश संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक रूप से घनिष्ठ और बहुआयामी हैं।
- 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के बाद से दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध बने हैं।
- समय के साथ, व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा, और सीमा प्रबंधन में सहयोग बढ़ा है।
- दोनों देश संयुक्त रूप से आतंकवाद, अवैध प्रवासन, और सीमा विवाद जैसे मुद्दों का समाधान करने का प्रयास करते हैं।
- हालांकि, कभी-कभी तीस्ता नदी जल बंटवारा और अवैध आव्रजन जैसे मुद्दों पर मतभेद उभरते हैं, फिर भी दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता और मित्रता बनी हुई है।
प्रत्यर्पण प्रक्रिया का उद्देश्य
- न्याय सुनिश्चित करना: अपराधी को उस देश में सजा देना जहां उसने अपराध किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अपराधियों को शरण देने वाले देशों को रोकना।
- अंतर्राष्ट्रीय अपराधों से लड़ना: वैश्विक स्तर पर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करना।
प्रत्यर्पण कानून में प्रमुख चुनौतियाँ
- दो देशों के कानूनों में अंतर: प्रत्येक देश के अपने कानून होते हैं और अपराधों की परिभाषाएं अलग-अलग हो सकती हैं। इस कारण से, यह निर्धारित करना मुश्किल हो सकता है कि एक विशेष अपराध दोनों देशों के कानूनों के तहत अपराध है या नहीं।
- राजनीतिक संबंध: दो देशों के बीच राजनीतिक संबंध प्रत्यर्पण प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं। यदि दो देशों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, तो प्रत्यर्पण प्रक्रिया में देरी हो सकती है या पूरी तरह से रुक सकती है।
- दोहरे नागरिकता: यदि कोई व्यक्ति दो देशों का नागरिक है, तो यह निर्धारित करना मुश्किल हो सकता है कि किस देश में उसका प्रत्यर्पण किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: कुछ मामलों में, एक देश राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है।
- अपराध की गंभीरता: कुछ देशों में, केवल गंभीर अपराधों के लिए ही प्रत्यर्पण की अनुमति होती है।
- शरणार्थी का दर्जा: यदि कोई व्यक्ति शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करता है, तो उसे प्रत्यर्पण नहीं किया जा सकता।
वर्तमान परिस्थिति में भारत का अगला कदम
वर्तमान परिस्थिति में, भारत के लिए शेख हसीना के प्रत्यर्पण पर निर्णय लेना एक जटिल कूटनीतिक चुनौती है। अनुच्छेद 8 के तहत, भारत के पास हसीना के प्रत्यर्पण को यह कहते हुए अस्वीकार करने का विकल्प है कि उनके खिलाफ आरोप “न्याय के हित में सद्भावनापूर्ण” नहीं हैं। हालांकि, इस निर्णय का ढाका की नई सत्तारूढ़ सरकार के साथ भारत के संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
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तीस्ता नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
1- तीस्ता नदी का उद्गम वही है जो ब्रह्मपुत्र का है लेकिन यह सिक्किम से होकर बहती है।
2- रंगीत नदी की उत्पत्ति सिक्किम में होती है और यह तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।
3- तीस्ता नदी, भारत एवं बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
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