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भारत को स्वदेशी समुद्री इंजन की जरूरत (India needs indigenous Marine Engines) | UPSC Preparation

India needs indigenous Marine Engines

 

India needs indigenous Marine Engines

India needs indigenous Marine Engines

संदर्भ:

भारत को जहाज निर्माण क्षेत्र में वास्तविक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशी समुद्री इंजनों (Indigenous Marine Engines) का विकास करना अत्यंत आवश्यक है।

तेजी से बढ़ता जहाज़ निर्माण क्षेत्र:

  • भारत सरकार 2047 तक भारत को शीर्ष 5 जहाज़ निर्माण राष्ट्रों में शामिल करने की दिशा में कार्यरत है
  • समर्थन तंत्र:
    • ₹25,000 करोड़ का Maritime Development Fund
    • मेगा क्लस्टर योजनाएँ
    • कस्टम ड्यूटी में छूट
    • बड़े जहाजों को बुनियादी ढांचा (Infrastructure) का दर्जा
  • वैश्विक सहयोग:
    • विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी
    • निजी निवेश को बढ़ावा

भारत में समुद्री इंजन के आयात से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ:

  • तकनीकी निर्भरता की स्थिति: भारत विदेशी कंपनियों पर न केवल इंजन खरीदने के लिए, बल्कि उनके डायग्नोस्टिक्स, सॉफ्टवेयर अपडेट्स और स्पेयर पार्ट्स के लिए भी निर्भर है।
    • इन इंजनों में प्रोप्रायटरी ECU (Electronic Control Units), बंद-स्रोत सॉफ़्टवेयर, और बौद्धिक संपदा से संरक्षित घटक होते हैं।
    • इससे भारत एक स्थायी तकनीकी निर्भरता की स्थिति में फँस जाता है।
  • आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की आशंका: भारत जिन पांच वैश्विक निर्माताओं पर निर्भर है, वह एक सीमित समूह है।
    • यह तकनीकी चोकपॉइंट बनाता है, जिससे किसी भी राजनयिक तनाव, व्यापार प्रतिबंध, निर्यात नियंत्रण, या आईपी लाइसेंसिंग विवाद की स्थिति में भारत का समुद्री जहाज निर्माण कार्यक्रम बाधित हो सकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर निर्यात रोक:
प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश जैसे अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान ने निर्यात नियंत्रण नियम कड़े किए हैं।

  • जैसे: EU Dual-Use Regulation, US EAR (Export Administration Regulations), और जापान का METI नियंत्रण।
  • इन नियमों के तहत समुद्री इंजनों, उनके घटकों, सॉफ्टवेयर अपडेट्स, और स्पेयर पार्ट्स के निर्यात पर किसी भी समय रोक लगाई जा सकती है।

स्वदेशी समुद्री इंजन निर्माण में चुनौतियाँ:

आधुनिक इंजन डिज़ाइन की कमी: भारत के पास स्वदेशी डिज़ाइन क्षमताओं का अभाव है, जिससे विदेशी OEMs (Original Equipment Manufacturers) पर निर्भरता बनी रहती है।

  • इससे सैन्य उपयोग के अनुसार अनुकूलन, स्थानीय जलवायु और परिचालन स्थितियों के लिए ऑप्टिमाइज़ेशन, तथा ईंधन-लचीले और स्वायत्त समुद्री प्रणालियों की ओर संक्रमण में बाधा आती है।

धातुकर्म सीमाएँ: भारत की घरेलू क्षमता उन्नत धातुओं जैसे हाई-क्रोमियम स्टील्स और निकेल-आधारित सुपरएलॉयज़ के निर्माण में सीमित है।

  • ये सामग्रियाँ अत्यधिक तापीय और यांत्रिक तनाव सहने वाले मरीन इंजनों के लिए आवश्यक हैं।

त्राइबोलॉजी और परिशुद्ध निर्माण: अत्याधुनिक घिसाव-रोधी कोटिंग्स और भारी इंजन घटकों की अल्ट्रा-प्रिसाइज़ मशीनीकरण के लिए उच्च तकनीक और औद्योगिक एकीकरण की आवश्यकता है, जो वर्तमान में भारत में अपर्याप्त है।

प्रशिक्षण प्रणाली और कौशल की खामियाँ:

  • इंजीनियरिंग संस्थानों में अभी भी पुराने इंजन मॉडल्स का उपयोग प्रशिक्षण के लिए किया जाता है।

आधुनिक डीकमीशन किए गए इंजन (जैसे आलंग शिप-ब्रेकिंग यार्ड से प्राप्त) का उपयोग कर व्यावहारिक कौशल और तकनीकी ज्ञान को अपग्रेड करने की आवश्यकता है।

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