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भारत का सौर आयात 2030 तक सालाना 30 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है, यह वैश्विक सौर उद्योग में चीन के प्रभुत्व को उजागर करता है। वर्तमान में, चीन वैश्विक सौर उत्पादन और निर्यात का 80% से अधिक हिस्सा नियंत्रित करता है, जिससे भारत और अन्य देशों में स्थानीय विनिर्माण प्रभावित हो रहा है।
(भारत का सौर आयात) रिपोर्ट की प्रमुख चुनौतियाँ:
- आयात पर निर्भरता: भारत की घरेलू विनिर्माण क्षमता सीमित है, खासकर चीन पर निर्भरता के कारण।
- कच्चे माल की कमी: भारत उच्च शुद्धता वाले पॉलीसिलिकॉन और वेफर का उत्पादन नहीं कर पाता, जो सौर विनिर्माण में महत्वपूर्ण हैं।
- अनुसंधान एवं विकास में कमी: नवीनतम सौर सेल प्रौद्योगिकियों को अपनाने में भारत पीछे है।
- वित्तीय बाधाएँ: उच्च पूंजी लागत के कारण निवेश में रुकावट आती है।
सिफारिशें:
- पीएलआई योजना का विस्तार: प्रारंभिक चरण के सौर विनिर्माण के लिए।
- अनुसंधान एवं विकास में निवेश: पूर्णतः एकीकृत सौर आपूर्ति श्रृंखला के लिए।
- आयात शुल्क का पुनर्मूल्यांकन: स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे देशों के साथ मिलकर चीन पर निर्भरता कम करना।
भारत की पहल:
- अनुमोदित मॉडल और निर्माताओं की सूची (एएलएमएम): सरकार समर्थित परियोजनाएँ।
- पीएलआई योजना: सौर पीवी विनिर्माण इकाइयों के लिए प्रोत्साहन।
- पीएम-कुसुम: घरेलू स्तर पर उत्पादित सौर सेल और मॉड्यूल के उपयोग को अनिवार्य बनाना।
भारत के सौर क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोग करने वाला देश है और सौर ऊर्जा में इसकी क्षमता 5वें स्थान पर है। भारत ने COP26 में 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्राप्त करने का संकल्प लिया है, जो कि विश्व की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार योजना का हिस्सा है।
सौर ऊर्जा विकास:
- उत्पादन में वृद्धि: पिछले 9 वर्षों में स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 30 गुना वृद्धि हुई है, जो अगस्त 2024 में 89.4 गीगावाट तक पहुँच जाएगी।
- सौर क्षमता: भारत की कुल सौर क्षमता 748 GWp होने का अनुमान है (राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान, NISE)।
निवेश और एफडीआई: विद्युत अधिनियम 2003 के तहत, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और वितरण परियोजनाओं के लिए 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
भारत के सौर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे:
- भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ:
- बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं के लिए भूमि की कमी एक प्रमुख बाधा है। 1 मेगावाट उत्पादन के लिए लगभग 5 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है, जिससे 500 गीगावाट के लक्ष्य के लिए 1.5 मिलियन एकड़ भूमि की आवश्यकता हो सकती है।
- भूमि अधिग्रहण से संबंधित विवादों के कारण परियोजनाओं में देरी होती है, जैसे गुजरात के धोलेरा सौर पार्क में स्थानीय किसानों का विरोध।
- ग्रिड एकीकरण और बुनियादी ढाँचा:
- सौर ऊर्जा की अस्थिरता ग्रिड स्थिरता और प्रबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण है। भारत का ग्रिड बुनियादी ढाँचा पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के लिए अभिकल्पित है और सौर उत्पादन की परिवर्तनशीलता को समायोजित करने में संघर्ष करता है।
- ट्रांसमिशन घाटा वर्ष 2021-22 तक लगभग 16.4% रहा है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
- निधियन एवं निवेश संबंधी बाधाएँ:
- सौर परियोजनाओं के लिए निरंतर निधियन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है। बिजली डिस्कॉम का बकाया मई 2023 तक 93,000 करोड़ रुपये तक पहुँच गया है, जिससे चलनिधि संबंधी दबाव उत्पन्न हो रहा है।
- हरित बांड और विशेष वित्तीय उपकरणों का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन इनकी पहुंच और प्रभावशीलता में वृद्धि अभी भी आवश्यक है।
- तकनीकी निर्भरता और विनिर्माण अंतराल:
- भारत का सौर क्षेत्र मुख्य रूप से आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भर है, विशेषकर चीन से। स्वदेशी विनिर्माण क्षमता सीमित है, और महत्वपूर्ण घटकों के लिए घरेलू आपूर्ति श्रृंखला की कमी है।
- वैश्विक बाजारों में पॉलीसिलिकॉन की कीमतों में भारी वृद्धि ने इस क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित किया है।
- भंडारण और चौबीसों घंटे बिजली:
- लागत प्रभावी ऊर्जा भंडारण समाधानों की कमी सौर ऊर्जा की पूर्ण क्षमता को बाधित करती है। वर्तमान बैटरी भंडारण क्षमता मात्र 20 मेगावाट घंटा है, जबकि भविष्य की आवश्यकता 74 गीगावाट तक पहुँच सकती है।
- पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव:
- सौर ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग से पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि पर्यावास ह्रास और जैव विविधता की हानि।
- सौर पैनलों का जीवन-अंत प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, और 2030 तक 34,600 टन सौर पैनल अपशिष्ट उत्पन्न होने की उम्मीद है, जबकि पुनर्चक्रण नीति का अभाव है।
निष्कर्ष: भारत का सौर क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है, लेकिन इसके समक्ष कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। इन बाधाओं का समाधान करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें नीतिगत सुधार, तकनीकी विकास, और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना शामिल है।
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