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भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

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संदर्भ:

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था : केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था अगले दशक में पांच गुना बढ़कर $44 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है, जबकि निजी निवेश पहले ही ₹1,000 करोड़ को पार कर चुका है।

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था: अंतरिक्ष क्षेत्र (Indian Space Sector):

  1. वर्तमान स्थिति:
    • भारत का अंतरिक्ष उद्योग लगभग $8.4 बिलियन मूल्य का है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2% का योगदान देता है।
    • सरकार द्वारा वार्षिक अंतरिक्ष बजट लगभग $2 बिलियन है।
  2. उपग्रह प्रक्षेपण और राजस्व: 1999 से अब तक भारत ने 34 देशों के 381 उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं, जिससे $279 मिलियन का राजस्व प्राप्त हुआ है।
  3. वैश्विक स्थान: इसरो (ISRO) दुनिया की छठी सबसे बड़ी राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है।
  4. भविष्य की संभावनाएँ: भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2033 तक ₹35,200 करोड़ ($44 बिलियन) तक पहुँच सकती है, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में 8% हिस्सेदारी हासिल करने की उम्मीद है।

अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भूमिका

  1. स्पेस स्टार्टअप्स की वृद्धि
    • 2022 में केवल 1स्टार्टअप था, जो 2024 में बढ़कर लगभग 200 हो गया।
    • 2021 में $67.2 मिलियनकी तुलना में 2023 में स्टार्टअप्स ने $124.7 मिलियन की फंडिंग प्राप्त की।
  2. प्रमुख निजी कंपनियाँ: Skyroot Aerospace: भारत का पहला निजी रॉकेटVikram-S सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जिससे सैटेलाइट लॉन्च सेवाओं में क्रांति लाने की योजना है।

राष्ट्र निर्माण में अंतरिक्ष तकनीक की भूमिका

  1. भूमि डिजिटलीकरण: स्वामित्व योजना उपग्रहों की सहायता से पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड बनाए जाते हैं।
  2. संसाधन मानचित्रण: हिमालयी और समुद्री संसाधनोंके दोहन में मदद करता है।
  3. अंतरिक्ष में महिलाओं की भागीदारी: ISRO में20-25% महिला कर्मचारी, जिन्होंने चंद्रयान जैसे प्रमुख अभियानों में योगदान दिया।
  4. नेविगेशन और संचार: ISRO काNavIC सिस्टम राष्ट्रीय स्थिति निर्धारण (Positioning) और कनेक्टिविटी को मजबूत करता है।

सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदम

  1. अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार (2020): निजी क्षेत्र को भागीदारी की अनुमति, IN-SPACe, ISRO और NSIL की भूमिकाओं को परिभाषित किया गया।
  2. अंतरिक्ष दृष्टि 2047 (Space Vision 2047)
    • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS): 2035 तक।
    • गगनयान के बाद मिशनऔर BAS का पहला मॉड्यूल:  2028 तक।
    • न्यू जेनरेशन सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (NGLV): 2032 तक।
    • चंद्रयान-4: 2027 तक, चंद्रमा से नमूने लाने हेतु।
    • शुक्र ऑर्बिटर मिशन (VOM): 2028 तक, शुक्र ग्रह का अध्ययन करने के लिए।
  3. भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: ग़ैर सरकारी संस्थाओं (NGEs) के लिए समान अवसरसुनिश्चित किए गए।
  4. स्पेस स्टार्टअप्स को बढ़ावा:
    • ₹1000 करोड़ का वेंचर कैपिटल फंड: IN-SPACe के तहत अगले 5 वर्षों में।
    • SpaceTech Innovation Network (SpIN): स्टार्टअप्स और SMEs के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी।
  5. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति: अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति।

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