INSV Koundinya
सामान्य अध्ययन पेपर I: प्राचीन भारतीय इतिहास |
(INSV Koundinya) चर्चा में क्यों?
हाल ही में कारवार नौसैनिक बेस पर एक विशेष समारोह में भारतीय नौसेना ने प्राचीन सिलाई तकनीक से बनी जहाज़ को औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल किया। इस ऐतिहासिक पोत को ‘INSV कौंडिन्य’ नाम दिया गया।
INSV कौंडिन्य क्या हैं?
- परिचय:
- भारतीय नौसेना द्वारा हाल ही में INSV कौंडिन्य नामक एक अद्भुत जहाज को नौसेना में शामिल किया गया है।
- INSV कौंडिन्य का नाम एक प्राचीन भारतीय नाविक – कौंडिन्य के सम्मान में रखा गया है।
- यह जहाज प्राचीन भारतीय जहाज निर्माण तकनीकों का जीवंत उदाहरण है, जिसे पूर्णतया कार्यात्मक और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया गया है।
- इस जहाज का निर्माण 5वीं शताब्दी ईस्वी में अजंता गुफाओं में चित्रित एक प्राचीन जहाज की आकृति से प्रेरित होकर किया गया है, जो भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास और कला का परिचायक है।
- INSV कौंडिन्य को सिलाई तकनीक के माध्यम से बनाया गया है, जो भारतीय प्राचीन जहाज निर्माण की एक पारंपरिक विधि रही है।
- जहाज का निर्माण लकड़ी के भागों को मजबूती से जोड़ने और सीवन के माध्यम से सिलाई करके किया गया है।
- भारतीय नौसेना द्वारा हाल ही में INSV कौंडिन्य नामक एक अद्भुत जहाज को नौसेना में शामिल किया गया है।
- संस्थान:
- INSV कौंडिन्य का निर्माण तीन प्रमुख संस्थाओं के सहयोग से संभव हुआ है।
- जुलाई 2023 में एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ।
- इस समझौते के तहत संस्कृति मंत्रालय ने आर्थिक सहायता प्रदान की।
- भारतीय नौसेना ने तकनीकी परामर्श और गुणवत्ता नियंत्रण किया।
- गोवा स्थित होदी इनोवेशन ने जहाज के निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- योजना:
- इस जहाज को वर्ष 2025 के अंत तक ओमान की ओर एक ऐतिहासिक समुद्री यात्रा पर भेजा जाएगा।
- यह यात्रा प्राचीन व्यापार मार्गों का अनुसरण करते हुए भारत और पश्चिम एशिया के बीच पुराने समुद्री संबंधों को फिर से जीवंत करेगी।
INSV कौंडिन्य की विशेषताएँ
- पारंपरिक सिलाई तकनीक:
- इस जहाज का निर्माण सिलाई विधि (Stitched Plank Technique) “टंकाई विधि” के आधार पर किया गया है, जिसमें लकड़ी की पट्टियों को जोड़ने के लिए नाखून या कील का उपयोग नहीं किया गया।
- इसमें नारियल के रेशे (Coir Rope), ताड़ के तंतुओं और प्राकृतिक राल (Natural Resin) का इस्तेमाल कर उन्हें मजबूती से जोड़ा गया है।
- यह तकनीक प्राचीन भारतीय जहाज निर्माण की खासियत रही है।
- डिज़ाइन और वैज्ञानिक जांच:
- जहाज का डिज़ाइन अजंता गुफाओं की चित्रकला (Iconographic Extrapolation) से पुनर्निर्मित किया गया है।
- इसके डिज़ाइन की प्रामाणिकता और हाइड्रोडायनामिक टेस्टिंग (Hydrodynamic Testing) आईआईटी मद्रास में की गई, जिससे जहाज की जल-चालन क्षमता और स्थिरता सुनिश्चित हुई।
- कलात्मक और सांस्कृतिक प्रतीक:
- INSV कौंडिन्य पर अनेक प्रतीकात्मक चित्र और डिजाइन हैं, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं।
- इसके पालों पर गंडभेरुंड (दो-सिर वाला गरुड़) और सूर्य के चिह्न बने हुए हैं, जो कादंब वंश की समुद्री शक्ति का प्रतीक हैं।
- जहाज के नाक पर एक सिंह याली (मिथकीय सिंह की मूर्ति) स्थापित है, जो जहाज की सुरक्षा और शक्ति का सूचक है।
- इसके डेक पर हड़प्पा कालीन शैली में निर्मित पत्थर का लंगर रखा गया है, जो प्राचीन समुद्री व्यापार का प्रतीक है।
- समुद्री उपकरण:
- जहाज पर चौकोर पाल (Square Sails) और लकड़ी के स्टीयरिंग ओर्स (Steering Oars) लगे हैं, जो प्राचीन समुद्री यात्रियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की प्रतिलिपि हैं।
- ये उपकरण जहाज को पुरानी नौवहन पद्धतियों से जोड़ते हैं और इसकी ऐतिहासिक सटीकता को बढ़ाते हैं।
- साहित्यिक प्रेरणा:
- INSV कौंडिन्य की डिज़ाइन और निर्माण पर प्राचीन भारतीय युक्तिकल्पतरु ग्रंथ (नौवहन से संबंधित 9वीं शताब्दी का ग्रंथ), अजंता की मुरल पेंटिंग्स, और विदेशी यात्रियों के द्वारा दर्ज प्राचीन सिलाई जहाजों के वर्णन आधारित हैं।
जहाज निर्माण की सिलाई पद्धति – “टंकाई विधि”
- परिचय:
- टंकाई विधि (Tankai Method) भारत की 2000 वर्ष पुरानी पारंपरिक जहाज निर्माण तकनीक है, जो लकड़ी के पट्टों को कीलों की बजाय रस्सियों से सिलकर जोड़ने पर आधारित है।
- यह तकनीक आधुनिक औद्योगिक पद्धतियों से अलग, पूर्णतः हस्तशिल्प, स्वदेशी सामग्री और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है।
- परिचय:
- विधि:
- टंकाई पद्धति में जहाज निर्माण की शुरुआत पतवार (Hull) से की जाती है, न कि ढांचे (Frame) से, जैसा कि यूरोपीय पद्धतियों में होता है।
- लकड़ी के पट्टों (Teak, Sal, Mango) को पहले छेदकर, फिर नारियल की रस्सी (Coir Rope) से सिल दिया जाता है। इसके बाद इन जोड़ को कपास, मछली का तेल और प्राकृतिक राल (Dammar Resin) से भरकर जलरोधी (Waterproof) बनाया जाता है।
- विशेषता:
- इस पद्धति की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई धातु या कील का प्रयोग नहीं किया जाता।
- धातु के न होने से जहाज जंग से सुरक्षित रहता है, हल्का होता है और समुद्र में अधिक लचीला और सुदृढ़ बनता है।
- इससे जहाज रेत की पट्टियों और उथले पानी में क्षतिग्रस्त नहीं होते, जो भारतीय तटीय क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
- टंकाई विधि के पुनरुत्थान से हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Littoral States) के देशों से भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को मजबूती मिलती है।
- यह तकनीक भारत की सामुद्रिक सभ्यता और व्यापारिक परंपराओं का जीवंत प्रतीक है।
- इस पद्धति की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई धातु या कील का प्रयोग नहीं किया जाता।
कौंडिन्य कौन थे?
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