सामान्य अध्ययन पेपर I: भारतीय साहित्य, नाटक/रंगमंच |
International Booker Prize 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक की प्रसिद्ध लेखिका और समाजसेविका बानू मुश्ताक को 2025 का अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्रदान किया गया है, जिससे भारतीय साहित्य को वैश्विक मंच पर नई पहचान मिली है।
International Booker Prize 2025 (अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025)
- स्थान:
- इस प्रतिष्ठित पुरस्कार समारोह का आयोजन लंदन के टेट मॉडर्न म्यूज़ियम में किया गया।
- घोषणाकर्ता:
- इस पुरस्कार की घोषणा मैक्स पोर्टर ने की, जो स्वयं बुकर पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध लेखक रह चुके हैं।
- इस बार वे पाँच-सदस्यीय निर्णायक मंडल के अध्यक्ष थे।
- विजेता:
- कर्नाटक की जानी-मानी लेखिका और समाजसेविका बानू मुश्ताक को उनकी कन्नड़ भाषा की कहानियों के संग्रह ‘हार्ट लैम्प’ के लिए इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है।
- यह पुरस्कार उन्हें उनके अनुवादक दीपा भास्ती के साथ संयुक्त रूप से दिया गया, जिन्होंने इस उत्कृष्ट रचना का अंग्रेज़ी में प्रभावशाली अनुवाद किया।
- यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ भाषा की कृति को अनुवाद के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।
- यह पहली बार है जब किसी लघुकथा संग्रह को इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार मिला है।
बानू मुश्ताक का सम्पूर्ण परिचय
- प्रारंभिक जीवन:
- बानू मुश्ताक का जन्म 1948 में कर्नाटक के हसन ज़िले में एक मुस्लिम परिवार में हुआ।
- मात्र आठ वर्ष की आयु में उन्होंने शिवमोगा के एक मिशनरी स्कूल में कन्नड़ माध्यम से पढ़ना प्रारंभ किया।
- वैवाहिक जीवन:
- बानू ने 26 वर्ष की उम्र में प्रेमविवाह किया।
- यह निर्णय उस दौर में स्त्रियों की स्वतंत्रता की एक मिसाल बना।
- उन्होंने यह साबित किया कि स्त्री की सोच और इच्छाएं भी सम्मान के योग्य हैं।
- लेखन का आरंभ:
- बानू ने पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसवोत्तर अवसाद) के दौरान कहानियाँ लिखना शुरू किया।
- उनकी पहली प्रकाशित कहानी कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में छपी, जब वे 29 वर्ष की थीं।
- उनकी कहानियाँ स्त्री के मानसिक संसार, उसकी पीड़ा, आत्मसम्मान और सामाजिक घुटन को तीखे ढंग से उजागर करती हैं।
- सामाजिक चेतना:
- बानू मुश्ताक सामाजिक आंदोलनों की एक सशक्त आवाज भी बनीं।
- 1980 के दशक से वे कट्टरपंथ और सामाजिक अन्याय के खिलाफ सक्रिय रही हैं।
- उन्होंने कोमु सौहार्द वेदिके जैसे संगठनों के साथ मिलकर सांप्रदायिकता का विरोध किया।
- जब उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश के अधिकार की बात की, तो उन्हें और उनके परिवार को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।
- साहित्यिक यात्रा:
- बानू मुश्ताक ने अब तक छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक कविता संकलन और एक निबंध संग्रह प्रकाशित किए हैं।
- उनके लेखन की विषयवस्तु व्यापक है – स्त्री अस्मिता, वर्ग संघर्ष, सांस्कृतिक असमानता और धार्मिक कट्टरता जैसे जटिल मुद्दे उनकी कहानियों में प्रमुखता से उभरते हैं।
- उनकी कहानी करी नगरगालु पर आधारित फिल्म हसीना 2003 में बनी, जिसने उनके साहित्य को नई पहचान दी।
- पुरस्कार और सम्मान:
- बानू मुश्ताक को कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है।
- 2024 में उन्हें अनुवाद के लिए PEN Translate Award भी प्राप्त हुआ, जिससे उनकी साहित्यिक क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली।
विशेष: दीपा भास्ती, कर्नाटक के कोडगु की लेखिका और अनुवादक है। दीपा पहली भारतीय अनुवादक बनीं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है।
‘हार्ट लैम्प’ कहानी संग्रह में क्या लिखा गया है?
- ‘हार्ट लैम्प’ 12 अलग-अलग पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियों का एक संग्रह है।
- इस कहानी संग्रह की कहानियाँ दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं के जीवन की वास्तविकताओं पर आधारित हैं।
- ये महिलाएँ सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक बंधनों में जकड़ी होती हैं।
- लेखिका ने उनके दर्द, संघर्ष और साहस को बहुत सादगी और ताकत के साथ सामने रखा है।
- ये कहानियाँ 1990 से लेकर 2023 के बीच लिखी गईं।
- इन तीन दशकों में बानु ने महिलाओं के मुद्दों को बहुत करीब से देखा, समझा और महसूस किया।
- इसमें बानु मुश्ताक का लेखन शैलीगत रूप से बोलचाल की भाषा में है, लेकिन हर पंक्ति में भावनाओं की गहराई छुपी है।
- इन कहानियों में समाज में हो रहे अन्याय, जातिगत शोषण और राजनीतिक पाखंड को उजागर किया गया है।
- कहानियों की दादी-नानी, मासूम बच्चियाँ, मा और विवश पत्नियों के चरित्र बहुत प्रभावशाली लिखे गए हैं।
- यह कहानी संग्रह सामाजिक सच्चाइयों को उजागर करती है। हर कहानी में मोड़ है, तनाव है और एक गहराई है जो पाठक को झकझोर देती है।
- बानु मुश्ताक की लेखनी स्त्री स्वतंत्रता और समानता के पक्ष में एक मजबूत आवाज़ बनकर उभरी है।
- आज जब दुनिया महिला अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों से जूझ रही है, तब ‘हार्ट लैम्प’ हमारे समय का आईना बन गया है।
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार क्या हैं?
- परिचय:
- अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार है, जो हर साल ऐसी कहानी या उपन्यास को दिया जाता है जो मूल रूप से किसी अन्य भाषा में लिखा गया हो और उसका अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ हो।
- यह पुरस्कार यूनाइटेड किंगडम (UK) या आयरलैंड में प्रकाशित अनुवादित साहित्य को दिया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार का उद्देश्य दुनिया के अलग-अलग कोनों से आई कहानियों को एक साझा मंच पर लाने की कोशिश है।
- इस पुरस्कार की शुरुआत 2005 में की गई थी।
- वर्ष 2016 से पहले यह हर दो साल में किसी लेखक के संपूर्ण साहित्यिक योगदान के लिए दिया जाता था।
- 2016 से हर साल एक अनुवादित पुस्तक को यह पुरस्कार दिया जाता है।
- आयोजनकर्ता:
- यह पुरस्कार Booker Prize Foundation द्वारा प्रदान किया जाता है, जबकि Crankstart Foundation इसका प्रायोजन करती है।
- प्रक्रिया:
- प्रत्येक वर्ष मार्च में 12-13 पुस्तकों की लॉन्गलिस्ट (‘बुकर दर्जन’) जारी होती है।
- इसके बाद अप्रैल में शॉर्टलिस्ट में 6 किताबें चुनी जाती हैं, और मई में विजेता की घोषणा होती है।
- विजेता राशि:
- इस पुरस्कार के विजेता को 50,000 पाउंड की राशि दी जाती हैं।
- यह राशि लेखक और अनुवादक दोनों में बराबर बाँटी जाती है।
- जिन लेखकों और अनुवादकों को शॉर्टलिस्ट में शामिल किया जाता है, उन्हें 2,500 पाउंड की राशि भी दी जाती है।
- इस पुरस्कार के विजेता को 50,000 पाउंड की राशि दी जाती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाले भारतीय लेखक
- वी. एस. नायपॉल (1971) – इन अ फ्री स्टेट: वी. एस. नायपॉल पहले भारतीय मूल के लेखक थे जिन्हें इस मंच पर सराहा गया। उनके लेखन में प्रवास, पहचान और उपनिवेशवाद के मुद्दे उभरकर आते हैं।
- सलमान रुश्दी (1981) – नाइट्स चिल्ड्रेन: यह उपन्यास भारत की आज़ादी और विभाजन की घटनाओं के बीच एक बच्चें की कहानी के माध्यम से इतिहास और कल्पना को जोड़ता है। रुश्दी की शैली ने अंग्रेज़ी साहित्य को नई दिशा दी।
- अरुंधति रॉय (1997) – द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स: यह उपन्यास केरल की पृष्ठभूमि में सामाजिक भेदभाव और परिवार की उलझनों को उजागर करता है। अरुंधति रॉय की यह कृति भावनात्मक गहराई और सामाजिक आलोचना का सुंदर मिश्रण है।
- किरण देसाई (2006) – द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस: उनके लेखन में भारतीय प्रवासी जीवन, सांस्कृतिक टकराव और आधुनिकता की चुनौतियाँ दिखती हैं। उन्होंने जड़ और जुड़ाव की भावनाओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से इस लेखन में प्रस्तुत किया।
- अरविंद अडिगा (2008) – द वाइट टाइगर: यह उपन्यास भारत के सामाजिक ढांचे और आर्थिक असमानता पर व्यंग्य करता है। लेखक अडिगा की यह कहानी नए भारत की विभिन्न जटिलताओं को उजागर करती है।
- गीतांजलि श्री (2022) – टॉम्ब ऑफ सैंड: यह हिंदी भाषा में बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली लेखिका बनीं। यह उपन्यास एक वृद्धा की आत्म-खोज की यात्रा है, जिसमें सीमाओं, युद्ध और स्त्री स्वायत्तता जैसे विषयों को नए नजरिये से प्रस्तुत किया गया है।