संदर्भ:
कन्नाडिप्पाया हस्तकला: केरल की एक पारंपरिक जनजातीय हस्तकला ‘कन्नाडिप्पाया‘ को हाल ही में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया गया है। यह टैग इस पारंपरिक उत्पाद को बाज़ार में विशेष पहचान और संरक्षण प्रदान करता है।
कन्नाडिप्पाया हस्तकला (Kannadipaya):
- कन्नाडिप्पाया हस्तकला : यह केरल की पारंपरिक हस्तशिल्प कला है, जिसमें रीड बांस (reed bamboo) से चटाई, टोकरी और अन्य दैनिक उपयोग की चीज़ें बनाई जाती हैं।
- किस समुदाय द्वारा बनाई जाती है: इसे उराली (Urali), मन्नान (Mannan) और मुथुवन (Muthuvan) जनजातीय समुदाय के लोग बनाते हैं।
- कौन–सी बांस की प्रजाति उपयोग होती है: Teinostachyum wightii नामक बांस की प्रजाति का उपयोग होता है, जिसे स्थानीय लोग ‘njoonjiletta’ कहते हैं।
नाम का अर्थ और विशेषता:
- चटाई की सतह इतनी चमकदार और चिकनी होती है कि यह आईने (mirror) जैसी दिखती है, इसलिए इसका नाम ‘कन्नडिपाया’ पड़ा
- कन्नड़ी = आईना, पाया = चटाई
- चटाई की सतह इतनी चमकदार और चिकनी होती है कि यह आईने (mirror) जैसी दिखती है, इसलिए इसका नाम ‘कन्नडिपाया’ पड़ा
आकार और लचीलापन:
- आमतौर पर इसका आकार होता है: 0.75–1.0 मीटर × 2 मीटर
- यह इतनी लचीली होती है कि इसे 10 सेमी व्यास की एक बांस की बेल में लपेटा जा सकता है।
निर्माण समय और तकनीक:
- एक कारीगर को एक कन्नाडिप्पाया बनाने में एक महीने से ज़्यादा का समय लगता है।
- यह चटाई बांस की चौथी या पांचवीं परत से बनी होती है, जो बहुत पतली और चमकदार होती है।
- बांस संग्रह की अनोखी परंपरा: बांस इकट्ठा करने की प्रक्रिया एक पूर्णिमा की रात का अनुष्ठान है, जिसमें जंगल जाना और लौटना एक दिन और रात लेता है।