Kaveri Engine
संदर्भ:
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद सोशल मीडिया पर ‘फंड कावेरी इंजन’ नामक ऑनलाइन अभियान तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है। यह अभियान नागरिकों और रक्षा क्षेत्र के समर्थकों द्वारा भारत के स्वदेशी फाइटर जेट इंजन परियोजना को समर्थन और वित्तीय प्रोत्साहन देने की मांग को लेकर चलाया जा रहा है।
(Kaveri Engine) कावेरी इंजन परियोजना:
परिचय: कावेरी इंजन भारत का एक स्वदेशी जेट इंजन है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की गैस टर्बाइन अनुसंधान स्थापना (GTRE) द्वारा विकसित किया गया है। यह एक लो–बायपास ट्विन–स्पूल टर्बोफैन इंजन है, जो लगभग 80 किलो न्यूटन (kN) थ्रस्ट उत्पन्न करने में सक्षम है। इस परियोजना का मूल उद्देश्य इसे हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस के लिए उपयोग करना था।
परियोजना की शुरुआत और इतिहास:
- यह परियोजना 1980 के दशक में भारत की विदेशी इंजनों पर निर्भरता समाप्त करने हेतु शुरू की गई थी।
- वर्ष 1996 में पहली बार इंजन की परीक्षण उड़ान की गई, लेकिन तकनीकी चुनौतियों के चलते प्रगति धीमी रही।
- 2008 में, आवश्यक प्रदर्शन स्तर न प्राप्त कर पाने के कारण, इसे तेजस प्रोग्राम से अलग कर दिया गया।
- वर्तमान में यह इंजन मानवरहित लड़ाकू हवाई वाहनों (UCAVs) जैसे कार्यक्रमों में उपयोग हेतु संशोधित किया जा रहा है।
परियोजना में देरी के प्रमुख कारण:
- एयरोथर्मल डायनेमिक्स, सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड्स, और उच्च तापमान सामग्री जैसी जटिल तकनीकों में अनुभव की कमी
- 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध, जिससे आवश्यक सामग्री और तकनीक की आपूर्ति बाधित हुई
- उच्च ऊंचाई पर परीक्षण के लिए आवश्यक सुविधाओं की अनुपस्थिति; रूस के CIAM जैसे विदेशी संस्थानों पर निर्भरता
- कुशल मानव संसाधन और औद्योगिक आधारभूत ढांचे की कमी
- फ्रांस की कंपनी स्नेकमा (Snecma) के साथ साझेदारी का असफल होना
बिना पर्याप्त परीक्षण के तेजस में इंजन लगाने की अव्यावहारिक अपेक्षा