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हाल ही में भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुए समझौते ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। गलवान घाटी संघर्ष के बाद से, यह क्षेत्र लगातार तनाव का केंद्र रहा है। हालिया गश्त समझौता, जो 2020 के गलवान हमले के बाद हुई घटनाओं के संदर्भ में आता है, भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
गलवान घाटी झड़प और उसके बाद की स्थिति:
- मई 2020 में, भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच लद्दाख क्षेत्र में पैंगोंग त्सो और गलवान जैसी जगहों पर झड़पें हुईं।
- 15 जून 2020 की रात को गलवान घाटी में एक हिंसक झड़प हुई, जिसमें कई भारतीय और चीनी सैनिकों की मौत हुई। यह झड़प दशकों में सबसे गंभीर सीमा विवादों में से एक थी।
- इसके बाद, दोनों देशों ने क्षेत्र में सैनिकों की संख्या बढ़ा दी और भारी हथियार तैनात किए।
कोर कमांडर स्तर की वार्ता:
गलवान झड़प के बाद, दोनों देशों के बीच कई दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता हुई, जिसका उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में तनाव को कम करना था। इन वार्ताओं के माध्यम से, कुछ क्षेत्रों में सैनिकों की संख्या में कमी और घर्षण बिंदुओं पर सहमति बनी, लेकिन कई प्रमुख मुद्दे बने रहे।
घर्षण बिंदु (Friction Point): पूर्वी लद्दाख में सात प्रमुख घर्षण बिंदु रहे हैं, जहाँ 2020 से टकराव की स्थिति बनी रही:
- पीपी 14 (गलवान)
- पीपी 15 (हॉट स्प्रिंग्स)
- पीपी 17A (गोगरा)
- पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट
- देपसांग मैदान
- चार्डिंग नाला
हालिया गश्त समझौते की मुख्य बातें:
- देपसांग मैदान और डेमचोक में गश्ती अधिकार बहाल: समझौते के तहत भारतीय सैनिक अब देपसांग के पीपी 10 से 13 और डेमचोक के चारडिंग नाला तक गश्त कर सकेंगे, जो एक लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को हल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- गश्त प्रोटोकॉल पर समझौता: दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पुराने बिंदुओं पर गश्त के लिए सहमति जताई है। भारतीय गश्त महीने में दो बार होगी, और झड़पों से बचने के लिए प्रत्येक गश्ती दल में 14-15 सैनिक शामिल होंगे। गश्त कार्यक्रमों का समन्वय किया जाएगा ताकि किसी भी टकराव से बचा जा सके।
विश्वास बहाली और सर्दियों की योजना:
इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल करना है। इसके तहत मासिक कमांडर-स्तरीय बैठकें होंगी, और सैनिकों की समग्र तैनाती को कम करने की योजना है, विशेष रूप से सर्दियों के लिए।
देपसांग मैदान का रणनीतिक महत्व:
- देपसांग मैदान एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो उत्तर में काराकोरम दर्रे के पास स्थित है। यह समतल क्षेत्र दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सैन्य आक्रमण या घुसपैठ के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- बॉटलनेक या वाई-जंक्शन, जो इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भारतीय सेना के बेस से 7 किमी पूर्व में स्थित है और दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क पर है।
समझौते का महत्व:
- इस समझौते से दोनों देशों के बीच राजनयिक और राजनीतिक संबंधों की बहाली की उम्मीदें बढ़ गई हैं।
- यह भारत और चीन के बीच विवादित क्षेत्रों में सैन्य तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, विशेष रूप से उस स्थिति में जब पहले चीन ने इन मुद्दों पर चर्चा करने से मना कर दिया था।
भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विवाद प्रबंधन के लिए हुए समझौते:
वर्ष |
समझौता |
केंद्र |
उद्देश्य |
1993 |
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने का समझौता |
LAC पर शांति और स्थिरता बनाए रखना |
विवादित क्षेत्रों में संघर्ष से बचाव और स्थिरता सुनिश्चित करना |
1996 |
सैन्य अभियानों में विश्वास-निर्माण के उपाय |
सैन्य गतिविधियों का नियमन |
सीमा पर सैन्य बलों के बीच संघर्ष से बचने के लिए विश्वास निर्माण |
2005 |
सैन्य विश्वास-निर्माण उपायों का विस्तृत कार्यान्वयन |
विस्तृत विश्वास-निर्माण उपायों का कार्यान्वयन |
सीमा पर सैन्य संचार और विश्वास में सुधार |
2012 |
भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) |
सीमा विवाद प्रबंधन के लिए परामर्श और समन्वय तंत्र की स्थापना |
सीमा संघर्षों को रोकने के लिए संचार और समन्वय को सुदृढ़ करना |
2013 |
सीमा रक्षा सहयोग में वृद्धि का समझौता |
सीमा क्षेत्रों में रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना |
सीमा पर स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सहयोग को मजबूत करना |
निष्कर्ष: पूर्वी लद्दाख में गश्त फिर से शुरू करने के इस समझौते से क्षेत्र में शांति और स्थिरता की उम्मीद बढ़ी है। यह दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और भारत-चीन संबंधों में एक नया अध्याय खोल सकता है।
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