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ग्रामीण भारत में 95 प्रतिशत भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण

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हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 2016 के बाद से ग्रामीण भारत में लगभग 95 प्रतिशत भूमि अभिलेखों का का डिजिटलीकरण किया गया है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित एवं सुलभ भूमि स्वामित्व सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।

  • डिजिटलीकरण की उपलब्धि: 2016 से अब तक 6.26 लाख से अधिक गांवों के भूमि रिकॉर्ड को डिजिटलीकृत किया गया है, जिससे ग्रामीण भारत में 95% भूमि अभिलेख डिजिटल रूप में उपलब्ध हैं।

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण का महत्व:

  1. पारंपरिक चुनौतियों का समाधान:
    • भूमि विवाद: भारत में 60% से अधिक मुकदमे भूमि से संबंधित हैं, डिजिटलीकरण से विवादों का समाधान करना आसान होगा।
    • अतिक्रमण और बेनामी संपत्ति: यह समस्या कम होगी।
    • मैनुअल प्रक्रियाएं: डिजिटलीकरण से कार्यप्रणाली में दक्षता आएगी।
  1. सटीक सर्वेक्षण और योजना: भू-स्थानिक मानचित्रण: पारदर्शिता में वृद्धि और कमजोर वर्गों के लिए बेहतर पहुंच सुनिश्चित करता है।
  2. कृषि को बढ़ावा देना: स्पष्ट भूमि स्वामित्व से कृषि के लिए पूंजी और ऋण की उपलब्धता में आसानी होगी।
  3. अन्य लाभ: कृषि इनपुट सब्सिडी का बेहतर लक्ष्यीकरण, समय पर मुआवजा और जीडीपी को बढ़ावा।

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण में समस्याएँ:

  1. बोझिल प्रक्रिया: वर्तमान में भूमि अभिलेख अधूरे हैं और विभिन्न विभागों में फैले हुए हैं।
  2. धीमी प्रक्रिया: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी हो रही है और आंकड़े पुराने हो रहे हैं।
  3. कानूनी और प्रशासनिक सुधार: किरायेदारी कानूनों और भूमि उपयोग विनियमों को अद्यतन करना आवश्यक है।

आगे बढ़ने का रास्ता:

  • नवीन तकनीकों का उपयोग: भूमि प्रशासन में ब्लॉकचेन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और मशीन लर्निंग का उपयोग।
  • पंजीकरण अधिनियम की समीक्षा

सरकारी पहलें:

  1. डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP): एक आधुनिक और पारदर्शी भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना।
  2. विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN): प्रत्येक भूमि पार्सल के लिए 14 अंकों का अल्फ़ान्यूमेरिक कोड।
  3. राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS): दस्तावेज़ पंजीकरण के लिए एक समान प्रक्रिया।
  4. स्वामित्व योजना: ग्रामीण क्षेत्रों में घर मालिकों को ‘अधिकारों का रिकॉर्ड’ प्रदान करना।

भू-आधार (ULPIN) के बारे में:

·        परिभाषा: भू-आधार, जिसे विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN) के रूप में भी जाना जाता है, हर भूमि खंड को एक अद्वितीय पहचान संख्या प्रदान करता है।

·        लॉन्च: इसे 2021 में केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के तहत लॉन्च किया गया था।

·        उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य भूमि भूखंडों को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और एकरूप बनाना है, जिससे भूमि प्रबंधन में सुधार हो सके।

तकनीकी पहलू:

·        संपर्क: ULPIN, भूमि क्षेत्र के देशांतर और अक्षांश निर्देशांकों के आधार पर प्रदान किया जाता है। यह विस्तृत सर्वेक्षणों और भू-संदर्भित भूकर मानचित्रों पर निर्भर करता है।

·        संरचना:

    • प्रत्येक भूमि खंड को 14 अंकों की अल्फा-न्यूमेरिक पहचान दी जाती है।
    • इसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:
      • राज्य कोड
      • जिला कोड
      • उप-जिला कोड
      • गांव कोड
      • विशिष्ट प्लॉट आईडी नंबर

·        स्थायित्व: ULPIN एक बार तैयार होने के बाद, इसे भूमि मालिक के पास मौजूद भौतिक भूमि रिकॉर्ड दस्तावेज़ पर अंकित किया जाता है। यह यूएलपीआईएन भूमि के भूखंड से स्थायी रूप से जुड़ा रहेगा, चाहे भूमि हस्तांतरित हो, उप-विभाजित हो या उसमें कोई बदलाव हो।

ULPIN/भू-आधार के मुख्य उद्देश्य:

1.   आसान पहचान: भूमि के प्रत्येक भूखंड को एक विशिष्ट आईडी प्रदान करके पहचान और अभिलेखों की पुनर्प्राप्ति को सरल बनाना।

2.   सटीक डिजिटल रिकॉर्ड: भूमि मालिकों, भूखंड सीमाओं, क्षेत्र, उपयोग आदि के विवरण के साथ सटीक डिजिटल भूमि रिकॉर्ड तैयार करना।

3.   प्रक्रियाओं का एकीकरण: भूमि अभिलेखों और संपत्ति पंजीकरण प्रक्रियाओं को जोड़ना।

4.   ऑनलाइन सेवाएँ: भूमि रिकॉर्ड सेवाओं की ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा प्रदान करना।

5.   डेटा का अद्यतन: अद्यतन भूमि डेटा बनाए रखकर सरकारी योजनाओं में सहायता करना।

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