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भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry)

Mains: GS II – भारतीय राजनीति और शासन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्रीय सरकार ने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) को वरिष्ठ पदों के लिए पार्श्व भर्ती (Lateral Entry) की मांग वाले विज्ञापन को वापस लेने का निर्देश दिया।

केंद्र ने पार्श्व भर्ती योजना (Lateral Entry) क्यों वापस ली

  • विपक्ष ने इस नीति की आलोचना की क्योंकि इसमें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
  • कुछ NDA सहयोगियों, जैसे जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने भी इस कदम का विरोध किया।
  • भारत में पार्श्व भर्ती को लेकर विवाद इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि इसमें SC, ST, OBC और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण की अनदेखी की गई, जिससे सामाजिक न्याय और संविधान के उल्लंघन के आरोप लगे हैं।
  • इससे संविदा और अस्थायी भर्तियों की बढ़ती प्रवृत्ति, हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए अवसरों की कमी, और कुछ वर्गों के प्रति पक्षपात की चिंताएं भी उभरी हैं।
  • हाल ही में उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षकों की भर्ती को लेकर उत्पन्न विवाद ने इस मुद्दे को और भी गर्म कर दिया है, जिससे आरक्षण नीतियों पर व्यापक बहस छिड़ गई है।

पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) क्या है?

UPSC में पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) एक विशिष्ट भर्ती प्रक्रिया है जो पारंपरिक प्रशासनिक भर्ती पद्धतियों के बाहर से योग्य व्यक्तियों को शामिल करने का अवसर प्रदान करती है। यह कार्यक्रम निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कार्यरत पेशेवरों को अनुबंध के आधार पर केंद्रीय मंत्रालयों में वरिष्ठ और मध्य-स्तर के पदों पर नियुक्त करने का प्रावधान करता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत, विशेष रूप से उन व्यक्तियों को चुना जाता है जिनके पास आवश्यक अनुभव और विशेषज्ञता हो, जो प्रशासनिक तंत्र में नवीनता और दक्षता लाने में सहायक हो सकते हैं। यह प्रणाली सरकारी सेवाओं में बाहरी अनुभव और दृष्टिकोण को शामिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

पार्श्व प्रवेश की शुरुआत:

पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) की अवधारणा का समर्थन कई महत्वपूर्ण आयोगों और समितियों द्वारा किया गया है। इसका प्रस्ताव पहली बार छठे केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसने सुझाव दिया कि उच्च सरकारी पदों पर पार्श्विक प्रवेश किया जाए। इसका उद्देश्य सरकार के भीतर और बाहर से उत्कृष्ट प्रतिभाओं को आकर्षित करना था, जिससे प्रदर्शन को अनुबंधों के आधार पर सुनिश्चित किया जा सके।

इसके बाद, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर पार्श्व प्रवेश के लिए एक पारदर्शी और संस्थागत प्रक्रिया की सिफारिश की। सुरेन्द्र नाथ समिति और होता समिति ने भी 2003 और 2004 में इस विचार का समर्थन किया, जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

2017 में, नीति आयोग और कुछ सचिवों के समूह ने केंद्र सरकार में वरिष्ठ स्तर पर व्यक्तियों के पार्श्विक प्रवेश की सिफारिश की। 2018 में, इस योजना के तहत 10 संयुक्त सचिव पदों के लिए 6,077 आवेदन प्राप्त हुए। इसके परिणामस्वरूप, 2019 में नौ संयुक्त सचिवों का चयन हुआ, जिनमें से आठ ने पद ग्रहण किया।

2021 में, 2,031 आवेदकों में से 31 उम्मीदवारों का चयन हुआ, जिनमें तीन संयुक्त सचिव भी शामिल थे। 2022 में, चयनित उम्मीदवारों में से 30 (3 संयुक्त सचिव, 18 निदेशक और 9 उप सचिव) 21 मंत्रालयों में शामिल हुए, जबकि एक ने पद छोड़ दिया। यह प्रणाली विभिन्न सरकारी विभागों में बाहरी अनुभव और विशेषज्ञता को शामिल करने के लिए लगातार विकसित हो रही है।

पार्श्व प्रवेश (Lateral Entry) के लाभ

  • विशेषज्ञता: पार्श्व प्रवेश से विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों के विशेषज्ञ सरकारी सेवा में शामिल होते हैं। यह उन्हें विशेष तकनीकी और प्रबंधकीय कौशल लाने का अवसर प्रदान करता है, जो सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी और आधुनिक बना सकता है।
  • नवीन दृष्टिकोण: निजी और सार्वजनिक क्षेत्र से आए पेशेवर नए विचार और दृष्टिकोण लेकर आते हैं। इससे सरकारी प्रक्रियाओं और नीतियों में नवाचार और सुधार की संभावना बढ़ जाती है।
  • संस्थानिक सुधार: पार्श्व प्रवेश की प्रक्रिया से एक नई दृष्टि के साथ-साथ बेहतर प्रबंधन और प्रशासनिक सुधार संभव होते हैं। इससे सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं को अधिक कुशलता से लागू किया जा सकता है।
  • प्रदर्शन में सुधार: पार्श्विक प्रवेश के अंतर्गत चयनित व्यक्तियों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाता है, जिससे उनकी प्रदर्शन पर निगरानी रखी जा सकती है। इससे सरकारी विभागों की दक्षता और कामकाजी क्षमता में सुधार होता है।
  • प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा: बाहरी विशेषज्ञों की नियुक्ति से मौजूदा सरकारी अधिकारियों में प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा का माहौल बनता है। यह कर्मचारियों को अपनी क्षमताओं को बेहतर बनाने और नई चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है।

पार्श्व प्रवेश की प्रक्रिया:

पार्श्व प्रवेश की प्रक्रिया के तहत, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOP&T) के अनुरोध पर, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय नागरिकों से वरिष्ठ और मध्य-स्तर के पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित करता है। यह भर्ती अनुबंध के आधार पर की जाती है, जिसमें प्रारंभिक अवधि तीन वर्षों की होती है, लेकिन प्रदर्शन के आधार पर इसे पांच वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।

उम्मीदवारों को विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में इन पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन करना होता है। इसके लिए सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में पद की विस्तृत जानकारी, कार्य की जिम्मेदारियाँ, और आवश्यक योग्यताएँ दी जाती हैं।

UPSC में लेटरल एंट्री के लिए पात्रता:

  • शैक्षिक योग्यता: उम्मीदवार के पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से संबंधित क्षेत्र में स्नातक या उच्चतर डिग्री होनी चाहिए। कुछ पदों के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञता या प्रोफेशनल डिग्री की भी आवश्यकता हो सकती है।
  • कार्य अनुभव: संबंधित क्षेत्र में व्यापक अनुभव अनिवार्य है। आमतौर पर, उम्मीदवार के पास कम से कम 15 से 20 वर्षों का अनुभव होना चाहिए, जिसमें वरिष्ठ प्रबंधकीय या नेतृत्वकारी भूमिकाओं में कार्य किया हो।
  • प्रतिष्ठा और अखंडता: उम्मीदवार की प्रतिष्ठा और नैतिक अखंडता भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। उसके पास किसी भी भ्रष्टाचार या नैतिकता संबंधी मुद्दों से मुक्त होने का प्रमाण होना चाहिए।

पार्श्व प्रवेश के तहत नियुक्त किए गए कुछ प्रमुख अधिकारियों के नाम:

  1. अम्बर दुबे – नागरिक उड्डयन मंत्रालय
  2. काकोली घोष – कृषि मंत्रालय
  3. मनीष चड्ढा – वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
  4. सुजीत कुमार बाजपेयी – पर्यावरण मंत्रालय
  5. दिनेश दयानंद जगदाले – नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय
  6. सैमुअल प्रवीण कुमार – कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
  7. सौरभ मिश्रा – वित्तीय सेवा विभाग
  8. राजीव सक्सेना – आर्थिक मामलों के विभाग
  9. अरुण गोयल – वाणिज्य मंत्रालय
  10. सुमन प्रसाद सिंह – सड़क परिवहन मंत्राल
  11. भूषण कुमार – शिपिंग मंत्रालय
  12. बालासुब्रमण्यम कृष्णमूर्ति – वित्त मंत्रालय
  13. मनमोहन सिंह – पूर्व प्रधानमन्त्री
  14. विजय केलकर – अर्थशास्त्री
  15. बिमल जालान – RBI के पूर्व गवर्नर
  16. नंदन नीलेकणी – इन्फोसिस के चेयरमैन

Lateral Entries के तहत नियुक्ति चुनौतियाँ:

  • प्रक्रिया की पारदर्शिता: पार्श्व प्रवेश की चयन प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता की चिंता उठती है। यदि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव होता है, तो यह विवादों का कारण बन सकता है और प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
  • संवैधानिकता और आरक्षण: पार्श्व प्रवेश के तहत नियुक्तियाँ आरक्षण नीति का पालन नहीं करती हैं, जो संवैधानिक रूप से निर्धारित है। इससे सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को नुकसान हो सकता है और हाशिए पर पड़े वर्गों को अवसरों से वंचित किया जा सकता है।
  • मौजूदा अधिकारियों का असंतोष: पार्श्विक प्रविष्टियाँ मौजूदा सरकारी अधिकारियों के बीच असंतोष पैदा कर सकती हैं। उन्हें यह लग सकता है कि बाहरी व्यक्तियों को उच्च पदों पर नियुक्ति देकर उनके करियर की प्रगति में बाधा डाली जा रही है।
  • लंबी अवधि के प्रभाव: पार्श्विक प्रविष्टियों के माध्यम से नियुक्त किए गए अधिकारी केवल अनुबंध के आधार पर होते हैं। इससे लंबे समय में नीति निर्माण और प्रशासनिक निर्णयों की स्थिरता पर असर पड़ सकता है, क्योंकि ये अधिकारी स्थायी रूप से प्रशासनिक सेवाओं का हिस्सा नहीं होते।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: पार्श्विक प्रविष्टियों में राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना भी होती है, जिससे चयन प्रक्रिया और नियुक्तियों की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।

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