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महाराष्ट्र ने त्रिभाषा नीति रद्द की (Maharashtra Scraps Three-Language Policy) | UPSC Preparation

Maharashtra Scraps Three-Language Policy

Maharashtra Scraps Three-Language Policy

Maharashtra Scraps Three-Language Policy-

संदर्भ:

“लगातार दो महीने तक चले जनविरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के लिए तीनभाषा नीति को रद्द कर दिया है। इस निर्णय का विरोध शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनसीपी जैसे सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों ने भी किया था।”

त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula):

  1. परिचय और उद्देश्य:
    • कोठारी आयोग (1964–66) द्वारा पहली बार प्रस्तावित।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 (इंदिरा गांधी सरकार) के तहत औपचारिक रूप से अपनाया गया।
    • उद्देश्य: भाषाई विविधता को बढ़ावा देना और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करना।
  2. पुरानी नीति के अंतर्गत व्यवस्था:
    • हिंदीभाषी राज्यों में: हिंदी + अंग्रेज़ी + एक आधुनिक भारतीय भाषा (अधिमानतः दक्षिण भारतीय भाषा)।
    • गैरहिंदी भाषी राज्यों में: क्षेत्रीय भाषा + हिंदी + अंग्रेज़ी।

  1. नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में बदलाव:
    • त्रिभाषा सूत्र बनाए रखा गया, परंतु अधिक लचीलापन प्रदान किया गया।
    • स्पष्ट प्रावधान: किसी भी भाषा को किसी राज्य पर थोपे जाने की अनुमति नहीं
    • शिक्षार्थियों और अभिभावकों को भाषा चयन में स्वतंत्रता दी गई है।
  2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की भूमिका (NCF):
    • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) ने लगातार त्रिभाषा सूत्र का समर्थन किया है।
    • भाषा शिक्षण को सांस्कृतिक समावेशिता और राष्ट्र निर्माण का आधार माना गया है।

त्रिभाषा सूत्र के उद्देश्य:

  1. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना: भाषाई समरसता के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक एकता को मजबूत करना।
  2. बहुभाषावाद को प्रोत्साहन: विद्यार्थियों को अनेक भाषाओं में दक्ष बनाकर विविध समुदायों के बीच संवाद को सुगम बनाना।
  3. संस्कृति और विरासत का संरक्षण: स्थानीय और शास्त्रीय भाषाओं पर बल देकर भारत की भाषाई विरासत को संरक्षित रखना।
  4. संज्ञानात्मक विकास में सहायता: बचपन में एक से अधिक भाषाओं के संपर्क से स्मरणशक्ति, समझ और सीखने की क्षमता में सुधार होता है।

त्रिभाषा सूत्र की आलोचनाएं:

  1. हिंदीगैर हिंदी असंतुलन का आरोप: गैरहिंदी भाषी राज्य इस नीति को हिंदी को अप्रत्यक्ष रूप से थोपने वाला मानते हैं, जिससे भाषाई संघवाद (Linguistic Federalism) को कमजोर किया जाता है।
  2. तमिलनाडु का विरोध: तमिलनाडु जैसे राज्य लंबे समय से दोभाषा प्रणाली (तमिल + अंग्रेज़ी) का समर्थन करते हुए त्रिभाषा सूत्र का विरोध करते रहे हैं।
  3. शिक्षकों और सामग्री की कमी: प्रशिक्षित भाषा शिक्षकों की भारी कमी और क्षेत्रीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री की अनुपलब्धता, इस नीति की व्यावहारिक क्रियान्वयन में बड़ी बाधाएं हैं।

आगे की दिशा:

  1. NEP 2020 द्वारा लचीलापन: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने लचीलापन देकर राज्यों, स्कूलों और छात्रों को भाषा चयन की स्वतंत्रता दी है, बशर्ते तीन में से दो भाषाएं भारतीय हों
  2. समावेशी नीतिनिर्माण की आवश्यकता: सभी भाषाई समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए नीति को लागू करना।
  3. प्रशिक्षण और निवेश: शिक्षकों के प्रशिक्षण, गुणवत्तापूर्ण अनुवाद और शिक्षण सामग्री विकास में पर्याप्त निवेश अनिवार्य है।
  4. राज्यस्तरीय अनुकूलन: नीति में राज्यों को स्थानीय संदर्भों के अनुसार अनुकूलन की स्वायत्तता देना आवश्यक है।

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