Mains GS II- भारत के हितों, भारतीय प्रवासी पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय पोलैंड यात्रा के दौरान उन्होंने तीन महत्वपूर्ण मेमोरियल (Major Memorials of Poland) पर श्रद्धांजलि अर्पित की, जो हाल ही में चर्चा में आए हैं। ये मेमोरियल्स हैं – जाम साहब नवानगर मेमोरियल, कोल्हापुर मेमोरियल और मोंटे कैसिनो मेमोरियल। प्रधानमंत्री मोदी की इन स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने से भारत-पोलैंड के ऐतिहासिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित हुआ है, साथ ही इन स्मारकों के महत्व और इनसे जुड़े ऐतिहासिक घटनाओं की भी व्यापक चर्चा वर्तमान में हो रही है।
आइए विस्तार से जानते हैं इन मेमोरियल के बारे में।
पोलैंड के प्रमुख मेमोरियल (Major Memorials of Poland):
जाम साहब नवानगर मेमोरियल (Jam Saheb of Nawanagar Memorial) क्या है?
- यह पोलैंड की राजधानी वारसॉ में स्थित है।
- इसका अनावरण वर्ष 2016 में हुआ।
- जाम साहब नवानगर मेमोरियल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड से निकाले गए सैकड़ों बच्चों को शरण देने वाले जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जाडेजा की उदारता और मानवता का प्रतीक है।
- इस मेमोरियल में जाम साहब के योगदान को दर्शाने वाले शिलालेख हैं।
- यह एक घनाभाकार उंचाई वाला एक स्तंभ है जिसके शीर्ष पर कमल की त्रिविमीय आकृति बनी हुई है।
- इस स्तंभ पर जाम साहब द्वारा पॉलिश लोगो की भलाई में किए गए कार्यों का उल्लेख किया गया है।
जाम साहब नवानगर मेमोरियल: इतिहास और स्थापना के पीछे के कारण
- पृष्ठभूमि: द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, 1939 में, पोलैंड पर नाज़ी जर्मनी और सोवियत संघ ने आक्रमण किया, जिससे लाखों पोलिश लोग बेघर हो गए, और अनगिनत लोगों को बंदी बना लिया गया। इनमें से कई लोग, विशेषकर बच्चे, युद्ध की विभीषिका और भूखमरी के शिकार हुए। जब सोवियत संघ ने पूर्वी पोलैंड पर कब्जा कर लिया, तब हजारों पोलिश नागरिकों को साइबेरिया और अन्य ठंडे क्षेत्रों में निर्वासित कर दिया गया, जहां वे कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
- जाम साहब की भूमिका
- इन भयावह परिस्थितियों में, पोलिश बच्चों के लिए भारत आशा की किरण बना। गुजरात के नवानगर (अब जामनगर) के महाराजा, जाम साहब दिग्विजयसिंहजी, ने इन बच्चों को शरण देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी मानवीयता और दयालुता के कारण, लगभग 1,000 पोलिश बच्चों और महिलाओं को अपने राज्य में आने की अनुमति दी। यह कार्य उस समय अत्यंत साहसिक और अनूठा था, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अधिकांश देश अपने संसाधनों को सुरक्षित रखने की कोशिश में थे।
- जामनगर में पोलिश शरणार्थी शिविर
- 1942 में जाम साहब ने नवानगर में बालाचड़ी नामक स्थान पर इन शरणार्थियों के लिए एक शिविर स्थापित किया, जहां बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा, और सुरक्षा प्रदान की गई। यह स्थान उन पोलिश बच्चों के लिए घर जैसा बन गया, जो अपने माता-पिता और घर से दूर थे। जाम साहब ने न केवल उनके लिए भोजन और वस्त्र की व्यवस्था की, बल्कि उनकी शिक्षा और भविष्य को भी सुनिश्चित किया। इसके परिणामस्वरूप, जाम साहब को पोलिश बच्चों के “पालक पिता” के रूप में याद किया जाने लगा।
- पोलैंड में स्मारक की स्थापना – कारण
- पोलैंड के लोग इस अनूठी उदारता को कभी नहीं भूले। इस कृतज्ञता को व्यक्त करने के लिए और जाम साहब के योगदान को सम्मानित करने के लिए, पोलैंड में “जाम साहब नवानगर मेमोरियल” की स्थापना की गई। यह स्मारक पोलैंड के उन बच्चों की याद दिलाता है, जिन्हें जाम साहब ने नवानगर में एक नया जीवन दिया था।
जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जाडेजा की जानकारी
- जाम साहब एक भारतीय राजा और नवानगर (अब जामनगर) के महाराजा थे।
- उनका जन्म 18 सितंबर 1895 को गुजरात के सदोदर में हुआ था, और वे प्रसिद्ध क्रिकेटर रणजीतसिंहजी के भतीजे थे।
- दिग्विजयसिंहजी 1933 से 1966 तक नवानगर के महाराजा रहे और उन्होंने अपने शासनकाल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।
- जाम साहब का 3 फरवरी 1966 को मुंबई में निधन हो गया।
- शिक्षा: उन्होंने राजकोट के राजकुमार कॉलेज, मालवर्न कॉलेज, और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में शिक्षा प्राप्त की।
- सैन्य सेवा: जाम साहब ने 1919 से 1947 तक ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की। उन्हें लेफ्टिनेंट-जनरल के पद पर पदोन्नति मिली और वे 1931 में सेना से सेवानिवृत्त हुए।
- महाराजा के रूप में कार्यकाल: 1933 में, अपने चाचा रणजीतसिंहजी के निधन के बाद, दिग्विजयसिंहजी नवानगर के महाराजा बने। उन्होंने अपने चाचा की विकास और सार्वजनिक सेवा की नीतियों को आगे बढ़ाया। वे चैंबर ऑफ प्रिंसेस में शामिल हुए और 1937 से 1943 तक इसके अध्यक्ष रहे। जाम साहब ने अपने चाचा की क्रिकेट परंपरा को जारी रखते हुए 1937-1938 में BCCI के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- स्वतंत्रता के बाद का योगदान: भारत की स्वतंत्रता के बाद, जाम साहब ने 15 अगस्त 1947 को भारत के डोमिनियन में प्रवेश के साधन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने नवानगर को काठियावाड़ के संयुक्त राज्य में विलय कर दिया और 1956 तक इसके राजप्रमुख के रूप में कार्य किया।
- सम्मान: उनके सम्मान में पोलैंड की संसद ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलिश बच्चों के शरणार्थियों की सहायता के लिए उन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया। वारसॉ में “गुड महाराजा स्क्वायर” का नाम उनके नाम पर रखा गया और उनकी स्मृति में “जाम साहब दिग्विजयसिंह जडेजा स्कूल” की स्थापना की गई। उन्हें मरणोपरांत 2011 में पोलैंड गणराज्य के द्वारा ‘कमांडर क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट’ से सम्मानित किया गया।
कोल्हापुर मेमोरियल (Kolhapur Memorial) क्या है?
- कोल्हापुर मेमोरियल एक ऐतिहासिक स्मारक है।
- जो पोलैंड के वारसॉ में स्थित है।
- इसका निर्माण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के शाही परिवार द्वारा पोलिश शरणार्थियों को दी गई सहायता की याद में किया गया।
- इसे नवंबर 2017 में अनावरित किया गया था।
- यह स्मारक उस समय की मानवीय सहायता की कदर करने और पोलिश-भारतीय संबंधों को सम्मानित करने के लिए स्थापित किया गया है।
यह एक आयताकार सफेद संगमरमर का एक पाषाण है। जिस पर शाही परिवार को कोल्हापुर सहयोग के लिए धन्यवाद संदेश लिखा गया है।
कोल्हापुर मेमोरियल का इतिहास
कोल्हापुर मेमोरियल का इतिहास द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू होता है, जब भारत के एक शाही परिवार ने 1942 और 1948 के बीच पोलिश शरणार्थियों को शरण दी। युद्ध के समय पोलैंड में भारी संकट के कारण, लगभग 6,000 पोलिश नागरिकों, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे, को भारतीय राज्य कोल्हापुर के वलीवडे गांव में आश्रय मिला। इस मानवीय सहायता का आयोजन भारत सरकार और स्थानीय अधिकारियों के सहयोग से किया गया। वलीवडे गांव को इसकी अनुकूल जलवायु और सुविधाओं के कारण चुना गया था, जहाँ एक पोलिश बस्ती के रूप में इसे विकसित किया गया। जिसमें स्कूल, चर्च, सामुदायिक केंद्र और थिएटर जैसी सुविधाएँ शामिल थीं। वलीवडे गांव को शरणार्थियों के लिए विशेष रूप से चुना गया था क्योंकि इसकी जलवायु उनके लिए अनुकूल थी।
कोल्हापुर मेमोरियल के अन्य उपयोगी बिंदु
- भारत में भी महावीर गार्डन पार्क में एक स्मारक है। इसको एसोसिएशन ऑफ पोल्स इन इंडिया द्वारा समर्पित किया गया है।
- भारत में कोल्हापुर के कब्रिस्तान को वर्ष 2014 में बहाल किया गया है, जो उस दौर में भारत में रहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए।
- पोलिश शरणार्थियों द्वारा भारत के साथ बनाए गए संबंधों को कायम रखने के लिए 1954 में रियूनियन शुरू हुआ, जो अब भी चलता आ रहा है।
मोंटे कैसिनो मेमोरियल (Monte Cassino Memorial) क्या है?
- मोंटे कैसिनो मेमोरियल पोलैंड के वारसॉ में स्थित एक प्रमुख युद्ध स्मारक है।
- इसका उद्घाटन 30 मई, 1999 को किया गया था।
- जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मोंटे कैसिनो की लड़ाई में पोलिश सैनिकों की बहादुरी को सम्मानित करने के लिए बनाया गया है।
- यह वारसॉ में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय के निकट स्थित क्रासिंस्की गार्डन के द्वार के बीच बना हुआ है ।
- यह सफेद संगमरमर और प्रबलित कंक्रीट से बना हुआ है। जिसकी ऊंचाई 12 मीटर हैं।
मोंटे कैसिनो मेमोरियल का इतिहास
मोंटे कैसिनो मेमोरियल का इतिहास द्वितीय विश्व युद्ध की एक महत्वपूर्ण लड़ाई से जुड़ा हुआ है। यह लड़ाई 11 से 18 मई 1944 तक लड़ी गई थी, जिसमें पोलिश सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 923 सैनिक शहीद हुए। उन्हीं की याद में इसका निर्माण करवाया गया।
स्मारक के निर्माण के लिए स्थान का चयन दिसंबर 1994 में किया गया और जून 1995 में पोलिश आर्किटेक्ट्स एसोसिएशन द्वारा एक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस परियोजना को पोलिश सेना की दूसरी कोर के दिग्गजों और विभिन्न संस्थानों के अनुदान से वित्तपोषित किया गया। उद्घाटन समारोह में पोलैंड के राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व रिस्ज़र्ड कालीज़ ने किया। स्मारक पोलिश सैनिकों की वीरता और उनकी सेवा की ऐतिहासिक कद्र को संरक्षित करता है।
मोंटे कैसिनो मेमोरियल की वास्तुकला:
- डिजाइन और निर्माण: इस स्मारक को मूर्तिकार काज़िमिर्ज़ गुस्ताव ज़ेमला और वास्तुकार वोज्शिएक ज़ब्लोकी ने डिज़ाइन किया।
- सामग्री: यह स्मारक सफ़ेद कैरारा संगमरमर से ढके प्रबलित कंक्रीट से बना है और इसका कुल वज़न 220 टन है।
- स्तंभ और आधार: 70 टन का मुख्य स्तंभ जमीन में छह मीटर गहरे छेद के ऊपर स्थिर किया गया है। यह स्तंभ 12 मीटर ऊंचा है।
- मूर्ति: इसमें बिना सिर वाली नाइक की मूर्ति है, जिस पर लड़ाई और चोट के निशान हैं।
- आधार: स्मारक के आधार में मोंटे कैसिनो की पहाड़ी, वर्जिन मैरी की आकृति, और बिखरे हुए हेलमेट उकेरे गए हैं।
- पेडस्टल और उकेरावट: दो मीटर ऊंचे पेडस्टल पर मोंटे कैसिनो का क्रॉस, युद्ध में भाग लेने वाली पांच पोलिश इकाइयों के प्रतीक, पोलिश ईगल और नायकों की राख से भरा कलश उकेरा गया है।
- अतिरिक्त स्मारक: मुख्य स्मारक के बगल में दो छोटे स्मारक हैं—एक जनरल व्लादिस्लाव एंडर्स की छवि वाली पट्टिका और दूसरा फारस (अब ईरान) के लोगों के लिए “कृतज्ञता का स्मारक,” जिन्होंने 1942 में पोलिश शरणार्थियों का स्वागत किया।
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