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‘मेक इन इंडिया’

भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में सशक्त बनाने के लिए 25 सितंबर, 2014 को शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल के इस वर्ष 10 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। इस पहल ने कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, जैसे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा, नवाचार में वृद्धि, कौशल विकास, और विदेशी निवेश को सुविधाजनक बनाना।

मेक इन इंडिया पहल:

मेक इन इंडिया पहल का मुख्य उद्देश्य निवेश को सुविधाजनक बनाना, नवाचार को बढ़ावा देना, कौशल विकास को प्रोत्साहित करना, बौद्धिक संपदा की रक्षा करना, और सर्वोत्तम विनिर्माण बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है।

चार स्तंभों पर आधारित:

  1. नई प्रक्रियाएँ: उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए व्यापार करने में आसानी को सबसे महत्वपूर्ण कारक माना गया है। यह प्रक्रिया निवेशकों को सरल और तेज़ तरीके से व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल होने का अवसर प्रदान करती है।
  2. नवीन अवसंरचना: यह पहल अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर आधारित अवसंरचना प्रदान करने का लक्ष्य रखती है, जिससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में गुणवत्ता और दक्षता में वृद्धि हो सके।
  3. नये क्षेत्र: मेक इन इंडिया 2.0 के अंतर्गत विनिर्माण, बुनियादी ढांचे, और सेवा गतिविधियों में 27 क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध होंगे।
  4. नई सोच: सरकार नियामक की बजाय सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करेगी, जिससे व्यवसायों को आवश्यक सहायता और समर्थन मिल सके।

नोडल एजेंसियां:

  • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग: यह विभाग विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए प्रमुख जिम्मेदार है और नीतियों को लागू करने में सहायता करता है।
  • वाणिज्य विभाग: यह विभाग सेवा क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है और इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए रणनीतियाँ विकसित करता है।

प्रभाव के 10 वर्ष: मुख्य बिंदु

  1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई):
    • भारत ने 2014 से 667.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का संचयी एफडीआई आकर्षित किया है, जो पिछले दशक (2004-14) की तुलना में 119% की वृद्धि दर्शाता है।
    • यह निवेश 31 राज्यों और 57 क्षेत्रों में फैला हुआ है, जो विभिन्न उद्योगों के विकास को बढ़ावा देता है।
  2. उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना:
    • 2020 में शुरू की गई पीएलआई योजनाओं के तहत, जून 2024 तक 1.32 लाख करोड़ रुपए का निवेश और विनिर्माण उत्पादन में 10.90 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है।
    • इस पहल के माध्यम से 8.5 लाख से अधिक रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं।
  3. निर्यात और रोजगार:
    • वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापारिक निर्यात 437 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया।
    • विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार 2017-18 में 57 मिलियन से बढ़कर 2022-23 में 64.4 मिलियन हो गया।
  4. व्यापार करने में आसानी:
    • विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट में भारत 2014 में 142वें स्थान से 2019 में 63वें स्थान पर पहुंचा।
    • 42,000 से अधिक अनुपालनों को कम किया गया और 3,700 प्रावधानों को अपराधमुक्त किया गया है।

प्रमुख सुधार और पहल:

  1. सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम विकास: 76,000 करोड़ की लागत वाला सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए नीतियां विकसित कर रहा है।
  2. राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (एनएसडब्ल्यूएस): निवेशक अनुभव को सरल बनाने के लिए एकीकृत मंच, जो त्वरित अनुमोदन की सुविधा देता है।
  3. पीएम गतिशक्ति: यह राष्ट्रीय मास्टर प्लान विभिन्न मंत्रालयों के पोर्टलों के साथ डेटा-आधारित निर्णयों को सुविधाजनक बनाता है।
  4. राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (एनएलपी): लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से 2022 में शुरू की गई।
  5. एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी): स्थानीय उत्पादों और शिल्प कौशल को बढ़ावा देने के लिए 27 राज्यों में यूनिटी मॉल स्थापित किए जा रहे हैं।
  6. स्टार्टअप इंडिया: 16 जनवरी 2016 को शुरू की गई इस पहल के तहत मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 30 जून 2024 तक 1,40,803 हो गई है।

निष्कर्ष:

भारत सरकार ने घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिससे एक मजबूत और गतिशील आर्थिक माहौल विकसित हो रहा है। कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेजों और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) के माध्यम से विकास के अवसरों को बढ़ाया है।

अब, मेक इन इंडिया 2.0 का लक्ष्य स्थिरता, नवाचार, और आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाना है, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक मानकों को पूरा कर सकें।

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