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वैवाहिक बलात्कार

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संदर्भ:

वैवाहिक बलात्कार :छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि IPC की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार से मिली छूट धारा 377 पर भी लागू होती है, जिससे विवाह के भीतर गैर-सहमति से किए गए अप्राकृतिक यौन संबंध को प्रभावी रूप से अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।”

वैवाहिक बलात्कार : कानूनी स्थिति और प्रावधान

परिचय:

  • वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) एक प्रकार की घरेलू हिंसा (Intimate Partner Violence) है, जिसमें पति-पत्नी के बीच बिना सहमति के यौन संबंध या यौन उत्पीड़न शामिल होता है।
  • भारत में इसे अपराध नहीं माना गया है, लेकिन यदि पति-पत्नी अलग रह रहे हों, तो पत्नी की सहमति के बिना संबंध बनाना बलात्कार (Rape) की श्रेणी में आता है।

कानूनी स्थिति:

भारतीय दंड संहिता (IPC)

  • धारा 375(2): यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी (जो 15 वर्ष से अधिक की हो) के साथ यौन संबंध बनाता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा।
  • भारतीय न्याय संहिता (BNS): इसमें भी वैवाहिक बलात्कार से पति को छूट दी गई है, लेकिन स्वतंत्र विचार बनाम भारत सरकार (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार सहमति की न्यूनतम आयु 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005: हालांकि वैवाहिक बलात्कार अपराध नहीं है, लेकिन महिला अपने सम्मान, यौन शोषण, या अपमान के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत न्याय की मांग कर सकती है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का धारा 377 पर फैसला (2024)

  1. ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा: हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को IPC की धारा 375 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध), और 304 (हत्या के समान अपराध) के तहत दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।
  2. वैवाहिक बलात्कार अपवाद: अदालत ने IPC धारा 375 के वैवाहिक बलात्कार अपवाद का हवाला दिया, जिसमें पति द्वारा पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध अपराध नहीं माना जाता।
  3. धारा 377 के तहत अपराध नहीं:
    • अदालत ने फैसला सुनाया कि पति द्वारा पत्नी के साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध (धारा 377) अपराध नहीं है।
    • यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले पर आधारित था, जिसने सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था

वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्क

अपराध घोषित करने के पक्ष में:

  1. स्वायत्तता का उल्लंघन: प्रत्येक व्यक्ति को यौन संबंधों के लिए सहमति देने या इनकार करने का अधिकार है, चाहे वह विवाह में हो या नहीं।
    • सुप्रीम कोर्ट (2018, नवतेज जौहर मामला) ने यौन स्वायत्तता को बरकरार रखा, जिसे विवाह में भी लागू किया जाना चाहिए।
  2. सुप्रीम कोर्ट का रुख: इंडिपेंडेंट थॉट केस (2017) में नाबालिग पत्नी के साथ वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना गया था, जिससे सहमति की अनिवार्यता को बल मिला।
  3. कानून के समक्ष समानता: पतियों को छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (लैंगिक भेदभाव का निषेध), और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
  4. POCSO और बाल संरक्षण: नाबालिगों के लिए सहमति के बिना यौन संबंध अपराध है, तो इसे वयस्क विवाहित महिलाओं पर भी लागू किया जाना चाहिए।

अपराध घोषित करने के विरोध में:

  1. वैवाहिक संस्था के लिए खतरा: इसे अपराध बनाने से वैवाहिक संबंधों में अस्थिरता आ सकती है और विवाह संस्था कमजोर हो सकती है।
  2. मौजूदा कानून पर्याप्त हैं: घरेलू हिंसा कानून पहले से ही यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  3. झूठे आरोपों की संभावना: यह प्रावधान तलाक और कस्टडी मामलों में झूठे आरोपों के रूप में गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।
  4. सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: भारत में विवाह को पारंपरिक रूप से यौन संबंधों से जोड़ा जाता है, जिससे इस तरह का कानूनी बदलाव चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  5. कानूनी विरोधाभास: भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने धारा 377 हटाने के बावजूद पति के लिए छूट बनाए रखी है, जिससे कानूनी असंगति बनी रहती है।
  6. विधायी क्षेत्राधिकार: सरकार का मानना है कि यह मुद्दा न्यायपालिका के बजाय विधायिका द्वारा तय किया जाना चाहिए

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