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समुद्री विकास निधि और भारतीय शिपिंग उद्योग

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संदर्भ:

समुद्री विकास निधि और भारतीय शिपिंग उद्योग: केंद्रीय बजट 2025 में शिपिंग उद्योग के लिए ₹25,000 करोड़ का समुद्री विकास कोष (Maritime Development Fund) सहित अन्य प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है।

समुद्री विकास निधि: मुख्य बिंदु

  1. घोषणा:
    • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ₹25,000 करोड़ का समुद्री विकास कोष (Maritime Development Fund) घोषित किया।
    • उद्देश्य: भारतीय शिपिंग उद्योग को समर्थन और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना।
  2. कारण:
    • रेड सी संकट के कारण विदेशी शिपिंग लाइनों द्वारा उच्च भाड़े दरों की मनमानी
    • भारतीय निर्यातकों की शिकायतों के बाद यह कदम उठाया गया
  3. सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी:
    • 49% योगदान सरकार का
    • शेष पोर्ट्स और निजी क्षेत्र से जुटाया जाएगा
  4. पृष्ठभूमि:
    • 2019 में केंद्र सरकार ने शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) के विनिवेश को मंजूरी दी थी
    • भारत से बढ़ते निर्यात के साथ परिवहन सेवाओं पर विदेशी मुद्रा भुगतान बढ़ रहा है
    • 2022 में भारतीय व्यापारियों ने $109 बिलियन से अधिक परिवहन शुल्क के रूप में भेजे

भारतीय शिपिंग उद्योग की वर्तमान स्थिति:

  1. समुद्री क्षेत्र द्वारा व्यापार प्रबंधन: 95% व्यापार (वॉल्यूम में) और 70% व्यापार (मूल्य में) समुद्री क्षेत्र द्वारा संचालित।
  2. निर्यातित जहाजों का बाजार हिस्सा: भारत वैश्विक शिपिंग जहाजों का 33% निर्यात करता है (आर्थिक सर्वेक्षण 2024)।
  3. वैश्विक जहाज निर्माण और स्वामित्व:
    • वैश्विक जहाज निर्माण में भारत की हिस्सेदारी केवल 0.07%
    • भारत के पास दुनिया के कुल जहाजों का केवल 1.2% स्वामित्व
  4. जहाज पुनर्चक्रण (Ship Recycling):
    • टन भार के हिसाब से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जहाज पुनर्चक्रण केंद्र
    • 30% वैश्विक बाजार हिस्सेदारी
    • दुनिया की सबसे बड़ी शिप ब्रेकिंग सुविधा अलंग, गुजरात में स्थित।
  5. बंदरगाह अवसंरचना: 13 प्रमुख बंदरगाह और 200+ अधिसूचित लघु एवं मध्यम बंदरगाह

भारत के समुद्री और जहाज निर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ:

  • वित्तीय बाधाएँ:जहाज अवसंरचना का दर्जा न मिलने और SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत बंधक न रखे जाने से वित्त पोषण में कठिनाई।
  • बंदरगाह अवसंरचना की कमी:भारतीय बंदरगाह बड़े कंटेनर जहाज नहीं संभाल सकते, ट्रांसशिपमेंट के लिए विदेशी हब पर निर्भरता।
  • तकनीकी और कौशल अंतर:वैश्विक नाविकों में भारत की 10-12% भागीदारी, लेकिन विशेष जहाज निर्माण कौशल में कमी।
  • नीतिगत और नियामक बाधाएँ:भूमि अधिग्रहण और CRZ अनुपालन के कारण बंदरगाह विस्तार में देरी।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा:चीन की 6% वैश्विक हिस्सेदारी के मुकाबले भारतीय शिपयार्ड की सीमित क्षमता और प्रतिस्पर्धात्मकता।
  • धीमी तटीय शिपिंग:7,500 किमी तटीय क्षेत्र के बावजूद घरेलू माल परिवहन में इसकी हिस्सेदारी मात्र 6%, लॉजिस्टिक्स लागत अधिक।

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