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मध्यम उद्यम 2025 (Medium Enterprises 2025) | Ankit Sir

Medium Enterprises 2025

Medium Enterprises 2025

संदर्भ:

नीति आयोग ने हाल ही में “Designing a Policy for Medium Enterprises” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें मध्यम उद्यमों (Medium Enterprises) को भारत की अर्थव्यवस्था का विकास इंजन बनाने के लिए एक व्यापक नीति रोडमैप प्रस्तुत किया गया है। यह रिपोर्ट इस क्षेत्र की चुनौतियों, अवसरों और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता को उजागर करती है, ताकि ये उद्यम देश के आर्थिक विकास में अधिक योगदान दे सकें।

मध्यम उद्यमों की परिभाषा (Medium Enterprises 2025):
  • वैधानिक वर्गीकरण: मध्यम उद्यम वे होते हैं जिनमें
    • संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश ₹50 करोड़ तक हो, और
    • वार्षिक टर्नओवर ₹250 करोड़ तक हो।
  • MSME में अनुपात: भारत में पंजीकृत 6 करोड़ से अधिक MSMEs में से केवल 0.3% ही मध्यम उद्यम की श्रेणी में आते हैं।

आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में मध्यम उद्यमों की भूमिका:

  • GDP में योगदान: MSME क्षेत्र भारत की GDP में 29% का योगदान देता है।
  • निर्यात में योगदान: मध्यम उद्यम MSME निर्यात का लगभग 40% योगदान करते हैं, जो उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को दर्शाता है।
  • नवाचार और विस्तार की क्षमता: ये उद्यम नवाचार-आधारित और विस्तार योग्य होते हैं, जिनमें भविष्य में बड़े उद्यम बनने की क्षमता होती है तथा ये आत्मनिर्भर भारत को सशक्त बनाते हैं।
  • महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भागीदारी: ऑटो-कंपोनेंट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में मध्यम उद्यम घरेलू और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (value chains) में अहम कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।
  • रोजगार सृजन: MSMEs भारत की 60% से अधिक कार्यबल को रोजगार देते हैं। उचित समर्थन मिलने पर मध्यम उद्यम अधिक औपचारिक और कुशल रोजगार सृजित कर सकते हैं।

मध्यम उद्यमों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ

  • वित्तीय पहुंच की कमी: मध्यम उद्यमों की विशेष कार्यप्रणाली और पूंजी चक्र को ध्यान में रखकर बने उपयुक्त वित्तीय साधनों का अभाव है।
  • तकनीकी पिछड़ापन: Industry 4.0 जैसे आधुनिक तकनीकी उपकरणों को अपनाने में सीमितता और उन्नत विनिर्माण समाधान तक पहुंच की कमी है।
  • कमजोर अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रणाली: विशेषकर क्लस्टर-आधारित और उच्च प्रभाव वाले परियोजनाओं के लिए नवाचार को बढ़ावा देने हेतु संस्थागत समर्थन का अभाव है।
  • परीक्षण अवसंरचना की कमी: क्षेत्र-विशेष परीक्षण और प्रमाणन केंद्रों की अनुपस्थिति के कारण उत्पाद मानकीकरण और नियामकीय अनुपालन में कठिनाई होती है।
  • कौशल असंतुलन: वर्तमान प्रशिक्षण कार्यक्रम क्षेत्रीय और औद्योगिक आवश्यकताओं से मेल नहीं खाते, जिससे आवश्यक कुशल मानव संसाधन की कमी रहती है।
  • डिजिटल विखंडन: सरकारी योजनाओं और अनुपालन उपकरणों तक पहुंच के लिए केंद्रीकृत और उपयोग में सरल डिजिटल प्लेटफॉर्म की कमी है।

MSME से जुड़ी भारत सरकार की प्रमुख योजनाएँ:

  • उद्योग रजिस्ट्रेशन पोर्टल (2020): MSME पंजीकरण को आसान बनाकर उद्यमों को औपचारिक रूप देना।
  • पीएम विश्वकर्मा योजना (2023): पारंपरिक कारीगरों को ऋण, प्रशिक्षण और डिजिटल सुविधा देना।
  • प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम PMEGP: सूक्ष्म उद्यमों के ज़रिए स्वरोज़गार हेतु वित्तीय सहायता।
  • SFURTI योजना: पारंपरिक उद्योगों को क्लस्टर बनाकर पुनर्जीवित करना और अवसंरचना सुधारना।
  • माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज के लिए सार्वजनिक खरीद नीति (2012): केंद्र सरकार और PSU की 25% खरीद MSEs से अनिवार्य, बाज़ार पहुँच बढ़ाने हेतु।

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