Download Today Current Affairs PDF
संदर्भ:
वित्त मंत्री ने आम बजट 2025-26 में छह वर्षीय ‘आत्मनिर्भरता मिशन’ की घोषणा की, जिसका लक्ष्य दालों के उत्पादन को बढ़ाकर भारत को आत्मनिर्भर बनाना है।
आत्मनिर्भरता मिशन (दालों के लिए):
- बजट आवंटन: ₹1,000 करोड़ इस मिशन के लिए निर्धारित।
- उद्देश्य:
- दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद और कटाई के बाद भंडारण समाधान प्रदान करना।
- आयात पर निर्भरता कम करना।
आत्मनिर्भरता मिशन (दालों के लिए) की प्रमुख विशेषताएँ:
- MSP-आधारित खरीद:
- NAFED और NCCF किसानों से दालें खरीदेंगे, बशर्ते वे पंजीकरण कर समझौता करें।
- उद्देश्य: किसानों को उचित मूल्य दिलाना और बाजार मूल्य स्थिर रखना।
- कटाई के बाद भंडारण (Post-Harvest Warehousing): भंडारण अवसंरचना में सुधार और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने पर जोर।
- लक्षित फसलें:
- तूर/अरहर: पहले 250-270 दिन में तैयार होती थी, अब 150-180 दिन में तैयार हो रही है।
- उपज 20 क्विंटल/हेक्टेयर से घटकर 15-16 क्विंटल/हेक्टेयर।
- उड़द: काली दाल, भारत की प्रमुख दलहन फसलों में से एक।
- मसूर: लाल मसूर, जिसके आयात में हाल के वर्षों में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है।
- तूर/अरहर: पहले 250-270 दिन में तैयार होती थी, अब 150-180 दिन में तैयार हो रही है।
दालों के आयात में रुझान:
- 2017-18 से 2022-23: आयात घटकर 96 लाख टन (lt) तक पहुँच गया।
- मटर (पीली/सफेद मटर) और चना (काबुली/देशी चना) में आत्मनिर्भरता बढ़ी।
- 2023-24: सूखे के कारण आयात 38 लाख टन ($3.75 बिलियन) तक बढ़ा।
- मसूर का रिकॉर्ड आयात: 76 लाख टन।
- मटर का आयात भी बढ़ा।
- अप्रैल-नवंबर 2024: $3.28 बिलियन का आयात, जो 2023 की इसी अवधि ($2.09 बिलियन) से 6% अधिक।
- 2024-25 (वर्तमान वित्तीय वर्ष):
- आयात 40 लाख टन पार।
- तूर/अरहर पहली बार 10 लाख टन से अधिक।
- मटर का आयात सात साल के उच्चतम स्तर पर।
- 2024-25 के लिए अनुमान: मौजूदा दर पर आयात $5.9 बिलियन तक पहुँच सकता है।
- यह 2016-17 के अब तक के उच्चतम $4.24 बिलियन के रिकॉर्ड को पार कर सकता है।
दालों की आत्मनिर्भरता में चुनौतियाँ:
- कम उत्पादकता– अस्थिर पैदावार के कारण दालों की खेती उपेक्षित रही है।
- अवशिष्ट फसल– दालों को कम उपजाऊ और वर्षा आधारित भूमि पर उगाया जाता है, जिससे पोषक तत्व और कीट प्रबंधन पर कम ध्यान दिया जाता है।
- हरित क्रांति का प्रभाव– गेहूं और चावल को प्राथमिकता देने से दालों की खेती हाशिए पर चली गई, जिससे उत्पादकता घटी और भूमि की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
- तकनीकी प्रगति की कमी– अब तक किसी भी दाल की फसल में महत्वपूर्ण तकनीकी सुधार नहीं हुआ है।
- कम लाभदायक फसल– किसानों को गेहूं और चावल की तुलना में दालों की कम लागत-लाभ अनुपात वाली फसल मानते हैं।
- HYV बीजों का कम उपयोग– उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYV) के बीजों की पहुँच और उपयोग कम है।
- कटाई के बाद नुकसान– भंडारण के दौरान नमी और कीटों, विशेष रूप से दाल भृंग के कारण नुकसान होता है।