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म्यूनिसिपल बांड (Municipal Bonds) | Apni Pathshala

Municipal Bonds

 

Municipal Bonds

संदर्भ:

भारत का म्युनिसिपल बॉन्ड बाजार अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। वर्ष 1997 में इसकी शुरुआत के बाद से अब तक केवल लगभग ₹5,000 करोड़ की राशि के करीब 55 बॉन्ड ही जारी किए गए हैं।

क्या हैं Municipal Bonds?
  • परिभाषा: स्थानीय सरकारों या राज्यों द्वारा जारी किए गए ऋण प्रतिभूतियाँ (Debt Securities)।
  • लोकप्रिय नाम: इन्हें ‘Munis’ भी कहा जाता है।
  • उद्देश्य: बुनियादी ढाँचे, स्कूल, परिवहन, जल व ऊर्जा जैसी सार्वजनिक परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु।
  • प्रमुख प्रकार: General Obligation Bonds (GO Bonds) – जिनकी वापसी की गारंटी नगरपालिका के कर और गैर-कर राजस्व से होती है।
  • कर छूट: अगर खरीदार नगरपालिका द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करता है, तो इन बांड्स पर मिलने वाला ब्याज टैक्सफ्री होता है।

भारत में Municipal Bonds का विकास:

  • 1997: भारत का पहला म्युनिसिपल बांड – बेंगलुरु म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा जारी।
  • 1998: अहमदाबाद ने शहरी विकास हेतु बांड जारी किया।
  • 2024 तक:
    • कर्नाटक और गुजरात अग्रणी राज्य।
    • मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश भी पूल्ड फाइनेंसिंग मॉडल के ज़रिये बाज़ार में सक्रिय

नियमन (Regulation):

प्रमुख संस्था: SEBI (भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड)

प्रमुख नियमन:

  • 2015 का नियमन: “Issue and Listing of Debt Securities by Municipalities”
  • मुख्य प्रावधान:
    • Escrow Account की अनिवार्यता
    • वित्तीय पारदर्शिता: नियमित वित्तीय खुलासे व ऑडिटेड अकाउंट्स जरूरी

बाजार को गहराई देने के प्रयास:

  • AMRUT 2.0 (MoHUA):
    • हर ₹100 करोड़ की बांड निर्गम पर ₹13 करोड़ की प्रोत्साहन राशि
    • क्रेडिट रेटिंग को अनिवार्य सुधार के रूप में शामिल किया गया
  • वित्त मंत्रालय की योजना: राज्यों को उनके वर्गीकरण के अनुसार प्रोत्साहन
  • उदाहरण: इंदौर नगर निगम ने ₹244 करोड़ का सोलर प्रोजेक्ट हेतु पब्लिक इशू से बांड जारी किया – खुदरा निवेशक भी शामिल हुए।

वर्तमान स्थिति:

  • कुल निर्गम: केवल 18 बांड्स, $575 मिलियन (2015 के बाद से)
  • तुलना (US से):
    • 5000 म्युनिसिपल बांड्स
    • $4.1 ट्रिलियन का बकाया म्युनिसिपल ऋण
    • अमेरिका में 2/3rd नगरपालिका बुनियादी ढाँचा म्युनिसिपल बांड्स से वित्तपोषित

मुख्य बाधाएँ (Bottlenecks in India):

  1. वित्तीय अस्थिरता: संचालन व रखरखाव खर्च तक पूरा नहीं होता
    • राजस्व धाराएँ कमजोर
  2. कमज़ोर क्रेडिट रेटिंग: निवेश योग्य रेटिंग (A- से ऊपर) बहुत कम शहरों को मिलती है
  3. नियामकीय/प्रक्रियात्मक जटिलताएँ: राज्य सरकार की स्वीकृति प्रक्रिया धीमी व अपारदर्शी
    • दिवालियापन/ऋण पुनर्गठन हेतु स्पष्ट कानूनी ढाँचे का अभाव
  4. पारदर्शिता की कमी:
    • वित्तीय रिपोर्टिंग प्रणाली पुरानी
    • ऑडिट में देरी और स्टैंडर्ड फॉर्मेट की कमी
    • सार्वजनिक रूप से ऑडिटेड विवरण बहुत कम जारी होते हैं
  5. बाजार माँग निवेशकों की रुचि कम:
    • संस्थागत निवेशकों का वर्चस्व
    • खुदरा निवेशकों के लिए पर्याप्त कर छूट या रिटर्न का अभाव

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