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हाल ही में तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले के मप्पेडु गांव में श्री सिंगेश्वर मंदिर में 16वीं शताब्दी के ताम्रपत्र शिलालेखों का एक सेट खोजा गया है। इन तांबे की प्लेटों के दो पत्तों को एक अंगूठी की सहायता से आपस में पिरोया गया था, जिस पर विजयनगर साम्राज्य की मुहर लगी थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, यह शिलालेख नंदीनगरी लिपि का उपयोग करते हुए संस्कृत में लिखा गया था और इसे राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान 1513 में उत्कीर्ण किया गया था।
विजयनगर साम्राज्य के बारे में:
- स्थापना: विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में हरिहर और बुक्का ने की थी। आरंभ में वे वारंगल के काकतीय शासकों के अधीन रहे, बाद में उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर एक नया शहर स्थापित किया, जिसका नाम उन्होंने विजयनगर (विजय का शहर) रखा।
- राजवंश: इस साम्राज्य में चार राजवंशों का शासनकाल देखा गया: संगम, सलुवा, तुलुवा और अराविदु।
- कृष्णदेव राय का शासनकाल: कृष्णदेव राय के शासनकाल में (1509-1529) यह राज्य अपनी चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया, जिसके दौरान इसने बहमनी सल्तनत, गोलकोंडा सल्तनत और ओडिशा के गजपतियों जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर सैन्य श्रेष्ठता हासिल की थी। हालांकि, राम राय के शासनकाल में उन्हें 1565 में तलाईकोट्टा के युद्ध में पराजित किया गया, जिससे विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया।
- अंतिम शासक: विजयनगर का अंतिम शासक श्री रंगा तृतीय था।
कृष्णदेव राय (1509-1529):
- प्रसिद्धि: तुलुव वंश के कृष्णदेवराय विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। उनके शासन की विशेषता विस्तार और एकीकरण थी। उन्होंने बीजापुर, गोलकुंडा, बहमनी सल्तनत और ओडिशा के गजपतियों को हराकर प्रायद्वीप का प्रमुख शासक बन गए।
- संरक्षण: पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस और डुआर्टे बारबोसा ने उनके शासनकाल के दौरान विजयनगर साम्राज्य का दौरा किया। उन्होंने तेलुगु साहित्य को बढ़ावा दिया और अल्लासानी पेद्दाना जैसे कवियों के संरक्षक थे। उनके युग को तेलुगु साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है।
- अष्टदिग्गज: उनके दरबार के आठ प्रसिद्ध कवियों का समूह, जिन्होंने तेलुगु साहित्य और कला को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- धार्मिक सहिष्णुता: प्रारम्भ में वे शैव धर्म के अनुयायी थे, बाद में उन्होंने वैष्णव धर्म अपनाया और शिव और विष्णु दोनों के लिए मंदिर बनवाए, जो धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
नंदीनगरी लिपि:
- परिचय: नंदीनागरी, नागरी लिपि का एक प्रकार है, जो अधिकतर कर्नाटक क्षेत्र तक ही सीमित है।
- उपयोग: नंदीनगरी लिपि का प्रयोग दक्षिण भारत में 8वीं से 19वीं शताब्दी के बीच पांडुलिपियों और शिलालेखों को लिखने के लिए किया जाता था। यह बाएं से दाएं लिखा जाता है।
निष्कर्ष:
तिरुवल्लूर में मिली ये तांबे की प्लेटें न केवल ऐतिहासिक महत्व की हैं, बल्कि वे विजयनगर साम्राज्य की समृद्ध संस्कृति, साहित्य और धार्मिक सहिष्णुता का भी प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। यह खोज दक्षिण भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय को उजागर करती है और पुरातात्विक अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
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