National Defence Academy
National Defence Academy
संदर्भ:
हाल ही में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), पुणे से पहली बार 17 महिला कैडेट्स ने पासिंग आउट परेड में भाग लिया और 300 से अधिक पुरुष कैडेट्स के साथ स्नातक हुईं।
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में महिला कैडेट्स की भागीदारी:
पृष्ठभूमि:
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) को लंबे समय से “लीडरशिप की पाठशाला” के रूप में जाना जाता है और यह पारंपरिक रूप से एक सर्व पुरुष संस्था रही है।
- वर्ष 2021 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद NDA ने महिला कैडेट्स के लिए अपने द्वार खोले।
- इसके फलस्वरूप, 2022 में 148वें NDA कोर्स के तहत पहली बार 17 महिला कैडेट्स ने प्रवेश लिया।
सैन्य प्रशिक्षण में बाधाएं तोड़ना:
- यह निर्णय भारतीय सशस्त्र बलों में लैंगिक समावेशन (Gender Inclusivity) की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- महिला कैडेट्स को पुरुष कैडेट्स के समान कठोर सैन्य प्रशिक्षण दिया गया, जो समानता और योग्यता के सिद्धांतों पर आधारित है।
शैक्षणिक उपलब्धि:
- स्नातक होते समय, कैडेट्स को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से डिग्री प्रदान की गई।
- डिग्री में विषयों की विविधता रही — विज्ञान, कंप्यूटर साइंस, कला और प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता प्राप्त की गई।
महिलाएं और सशस्त्र बल: एक ऐतिहासिक यात्रा
प्रारंभिक योगदान :
- प्रथम विश्व युद्ध: ब्रिटिश भारतीय सेना में महिलाओं की भर्ती मुख्यतः नर्स के रूप में हुई थी, जिससे पुरुष डॉक्टरों की कमी को पूरा किया जा सके।
- द्वितीय विश्व युद्ध: महिलाओं की भूमिका का विस्तार हुआ, Women’s Auxiliary Corps का गठन हुआ, जिसमें महिलाएं प्रशासनिक और संचार संबंधी भूमिकाओं में कार्यरत थीं।
- झांसी की रानी रेजीमेंट: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज द्वारा गठित यह पूर्णतः महिला लड़ाकू इकाई थी, जिसने जापानी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध किया।
स्वतंत्रता के बाद का संघर्ष और प्रगति:
- स्वतंत्रता के बाद: महिलाओं को केवल चिकित्सा सेवाओं तक सीमित रखा गया।
- 1958: पहली बार महिलाओं को Indian Army Medical Corps में नियमित कमीशन प्राप्त हुआ।
लड़ाकू भूमिकाएं और NDA में प्रवेश:
- 1990 के दशक: महिलाओं को भारतीय वायुसेना में पायलट के रूप में नियुक्त किया गया, जो एक बड़ा बदलाव था।
- 2021: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश का अधिकार मिला, जिससे उन्हें स्थायी कमीशन हेतु पुरुष कैडेट्स के साथ प्रशिक्षण पाने का अवसर प्राप्त हुआ।
सशस्त्र बलों में महिलाओं का हालिया योगदान
युद्ध और नेतृत्व भूमिका:
ऑपरेशन सिंदूर: इस ऑपरेशन में महिला अधिकारियों ने सक्रिय भागीदारी की, जो भारत की रक्षा रणनीति में महिलाओं की प्रभावशाली उपस्थिति को दर्शाता है।
प्रमुख नेतृत्वकर्ता:
- कर्नल सोफिया कुरैशी और
- विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रमुख सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया, जिससे महिलाओं की सैन्य नेतृत्व क्षमता उजागर हुई।
नौसेना में उपलब्धियाँ:
लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के और रूपा ए ने Navika Sagar Parikrama II पूरा किया –
- यह एक समुद्री परिक्रमण अभियान था, जिसमें उन्होंने 25,600 नॉटिकल मील की दूरी को 8 महीनों में तय किया।
- यह उपलब्धि सहनशीलता, साहस और दृढ़ निश्चय का प्रतीक बनी, और समुद्री रक्षा में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया।
आगे की राह:
भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं ने बड़ी प्रगति की है, लेकिन अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं जैसे लैंगिक भेदभाव, आधारभूत सुविधाओं की कमी और सामाजिक धारणाएँ।
हालांकि, नीतिगत सुधारों और समाज के सहयोग से वे देश की रक्षा व्यवस्था में अहम बदलाव ला रही हैं।