Net FDI
संदर्भ:
वित्त वर्ष 2025 में भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 96.5% की भारी गिरावट के साथ केवल 353 मिलियन डॉलर पर पहुँच गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष के 10 अरब डॉलर की तुलना में बेहद कम है और देश में निवेश के माहौल तथा आर्थिक विश्वास पर गंभीर संकेत देता है।
भारत में शुद्ध FDI में ऐतिहासिक गिरावट: RBI रिपोर्ट
- शुद्ध FDI में भारी गिरावट: RBI के अनुसार FY25 (अब तक) में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) केवल $353 मिलियन रहा – यह अब तक का सबसे कम स्तर है। FY24 में यह $10 बिलियन था।
- गिरावट के कारण:
- भारत में आने वाले निवेश की तुलना में भारत से बाहर जाने वाला FDI और FDI रिपैट्रिएशन (लौटा हुआ निवेश) अधिक रहा।
- इसका अर्थ है कि विदेशी कंपनियों ने भारत में निवेश कम किया और पहले किए गए निवेश को वापस ले लिया।
- स्थिर बनाम अस्थिर निवेश:
- ‘स्थिर’ FDI प्रवाह की तुलना में ‘अस्थिर’ पोर्टफोलियो निवेश (FPI) ज्यादा रहा।
- FY25 में शुद्ध FDI प्रवाह, पोर्टफोलियो प्रवाह की तुलना में 86% कम रहा।
- पोर्टफोलियो निवेश FY25 में $2.67 बिलियन रहा।
क्या है नेट एफडीआई (Net FDI)?
- परिभाषा: नेट FDI (शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) वह राशि होती है जो भारत में आए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में से, भारत की कंपनियों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश, विदेशी कंपनियों द्वारा की गई रकम की वापसी, और रणनीतिक निवेश की निकासी को घटाने के बाद बचती है।
- घटक:
इसमें निम्नलिखित घटक शामिल होते हैं:
- भारत में आया कुल विदेशी निवेश (Gross Inflow)
- घटाएं:
- भारत की कंपनियों द्वारा विदेश में निवेश (Outward FDI)
- फॉरेन कंपनियों द्वारा निवेश की वापसी (Repatriation)
- रणनीतिक हिस्सेदारी की बिक्री या निकासी
शामिल निवेशक: इसमें निवेश करने वाले होते हैं:
- प्राइवेट इक्विटी फर्म्स
- वेंचर कैपिटलिस्ट्स
- वैश्विक फंड्स जो भारत में कंपनियों में हिस्सेदारी लेते हैं
नेट FDI क्यों महत्वपूर्ण है ?
सकारात्मक नेट FDI (Positive Net FDI)-
- दर्शाता है कि भारत में आने वाला विदेशी निवेश, बाहर जाने वाले निवेश से अधिक है।
- इसे अक्सर देश की आर्थिक आकर्षण और नीति स्थिरता का संकेत माना जाता है।
- यह रोज़गार, इन्फ्रास्ट्रक्चर और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देता है।
कम या नकारात्मक नेट FDI-
- संकेत हो सकता है कि:
- विदेशी निवेशक पूंजी निकाल रहे हैं, या
- भारतीय कंपनियां विदेशों में अधिक निवेश कर रही हैं।
- यह विनियामक अस्थिरता, कम रिटर्न की आशंका या घरेलू अवसरों की कमी को दर्शा सकता है।
लेकिन जरूरी नहीं कि यह हमेशा नकारात्मक हो–
- विकसित होती अर्थव्यवस्था में कंपनियों की वैश्विक विस्तार की महत्वाकांक्षा को भी दिखा सकता है।
परिपक्व अर्थव्यवस्था में घरेलू कंपनियों का बाहर निवेश बढ़ना सामान्य होता है।