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लद्दाख की नई अधिवास नीति (New Domicile Policy of Ladakh) | UPSC Preparation

New Domicile Policy of Ladakh

 

सामान्य अध्ययन पेपर II: संघवाद, संवैधानिक संशोधन 

चर्चा में क्यों (New Domicile Policy of Ladakh)? 

हाल ही में, 3 जून 2025 को केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए अधिवास और स्थानीय शासन से जुड़ी नई नीतियाँ जारी कीं।यह कदम लद्दाख के मूल निवासियों की सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है।

लद्दाख के लिए अधिवास और प्रशासनिक सुधार हेतु मुख्य प्रावधान

  • पात्रता मानदंड: लद्दाख में अब अधिवासी माने जाने के लिए कुछ स्पष्ट मानदंड तय किए गए हैं:
      • 15 वर्षों का सतत निवास अनिवार्य कर दिया गया है, जिसकी गणना वर्ष 2019 से की जाएगी। यानी, जो व्यक्ति 2019 के बाद लद्दाख में बस गए हैं, उन्हें 2034 तक अधिवास प्रमाणपत्र के लिए पात्र नहीं माना जाएगा।
      • विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रावधान रखा गया है। यदि किसी छात्र ने लद्दाख में कम से कम 7 वर्ष तक स्कूली शिक्षा प्राप्त की है और स्थानीय परीक्षा दी है, तो वह भी अधिवासी की श्रेणी में आ सकता है।
      • केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चे, जो लद्दाख में लंबे समय से सेवारत हैं, उन्हें भी अधिवास प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है।
  • अधिवास प्रमाणपत्र: Ladakh Civil Services Domicile Certificate Rules, 2025 के तहत अधिवास प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया को औपचारिक रूप दिया गया है:
      • नागरिक ऑनलाइन या भौतिक आवेदन के माध्यम से प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं।
      • तहसीलदार को प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार दिया गया है, जबकि जिला उपायुक्त अपील प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगा।
      • इससे आवेदन प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित होगी।
  • अधिवास आधारित आरक्षण: Ladakh Civil Services Decentralization and Recruitment (Amendment) Regulation, 2025 में अधिवास के आधार पर नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है:
  • स्थानीय युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता सुनिश्चित की गई है।
  • इससे बाहरी प्रतिस्पर्धा सीमित होगी और लद्दाखी युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे।
  • आरक्षण में संशोधन
      • अनुसूचित जनजातियों (STs) को सरकारी नौकरी एवं व्यावसायिक संस्थानों (जैसे मेडिकल, इंजीनियरिंग) में अब 85% तक आरक्षण दिया गया है।
      • यह आरक्षण पहले 80% था।
      • अन्य श्रेणियाँ जैसे EWS के लिए 10%, सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए 4%, और SC वर्ग के लिए 1% आरक्षित हैं।
  • महिलाओं का प्रतिनिधित्व
      • पहली बार महिलाओं के लिए एक-तिहाई (33%) आरक्षण लागू किया गया है।
      • यह चक्रीय प्रणाली पर आधारित होगा, जिससे हर चुनाव में अलग-अलग सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी।
      • यह प्रावधान स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को बढ़ावा देगा।
  • भाषायी पहचान: Ladakh Official Languages Regulation, 2025 द्वारा क्षेत्र की भाषायी विविधता को संवैधानिक मान्यता दी गई:
  • अब अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी को आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इसके साथ ही, शिना, ब्रोक्सकाट, बल्टी और लद्दाखी जैसी भाषाओं को संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में प्रोत्साहित किया गया है।
  • यह कदम लद्दाख की जनजातीय विरासत और सांस्कृतिक अस्मिता को सहेजने का माध्यम बनेगा।

लद्दाख में अधिवास नीति की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • क्षेत्रीय अधिकारों का संकट
  • वर्ष 2019 में जब अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, तो लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया।
  • इस राजनीतिक पुनर्गठन के चलते अधिवास नीति की माँग जोर पकड़ने लगी, ताकि लद्दाख के मूल निवासियों को एक कानूनी और प्रशासनिक सुरक्षा कवच प्रदान किया जा सके।
  • सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय सुरक्षा:
      • लद्दाख का पारिस्थितिक तंत्र सीमित संसाधनों वाला है। यहाँ की संस्कृति, भाषाएँ और जनजातीय जीवनशैली सदियों से प्रकृति के अनुरूप विकसित हुई है। 
      • स्थानीय लोगों को आशंका है कि अधिवास नीति के अभाव में बाहरी लोग यहाँ भूमि खरीदकर स्थायी रूप से बस सकते हैं, जिससे जनसांख्यिकीय असंतुलन और संस्कृति का क्षरण हो सकता है। 
  • संवैधानिक सुरक्षा:
    • लद्दाख में लम्बे समय से यह मांग उठ रही थी कि उसे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। 
    • लद्दाख जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां अधिकांश जनसंख्या जनजातीय समुदायों से आती है, यह प्रावधान भू-अधिकारों की रक्षा, स्थानीय कानूनों के निर्माण, तथा परंपरागत संस्थाओं की मान्यता के लिए आवश्यक है। 

केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए निर्णय किस संवैधानिक अधिकार के तहत लिया? 

  • लद्दाख के लिए अधिवास नीति, आरक्षण, भाषा और हिल काउंसिल से संबंधित जो नवीनतम नीतियाँ घोषित की गई हैं, वे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 240(1) राष्ट्रपति को चुनिंदा केंद्रशासित प्रदेशों के लिए नियम बनाने की शक्ति देता है।
    • इन नियमों का उद्देश्य शांति, सुशासन और प्रशासनिक स्पष्टता सुनिश्चित करना होता है।
    • लद्दाख जैसे क्षेत्रों में जहाँ विधानसभा नहीं है, वहाँ यह अनुच्छेद केंद्रीय शासन का आधार बनता है।
    • इन नियमों को संसद के अधिनियमों के बराबर वैधानिक मान्यता प्राप्त होती है।
    • इसके तहत बनाए गए प्रावधान मौजूदा कानूनों को संशोधित या निरस्त भी कर सकते हैं।
    • यह अनुच्छेद उन केंद्रशासित प्रदेशों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जहाँ विधानसभा नहीं है और जहाँ सभी प्रशासनिक निर्णय केंद्र सरकार के अधीन होते हैं। 
  • अनुच्छेद 240 के अंतर्गत बनाए गए नियम को संसद द्वारा पारित विधेयकों के समान दर्जा प्राप्त होता है। इन नियमों के अंतर्गत जारी किए गए प्रावधान वर्तमान कानूनों को संशोधित, निरस्त या प्रतिस्थापित भी कर सकते हैं। 

नई अधिवास नीति का व्यापक प्रभाव

  • जनजातीय अधिकारों की सशक्त सुरक्षा: लद्दाख की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अनुसूचित जनजातियों (STs) से आता है, जिनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति अब तक सीमित संसाधनों पर आधारित रही है। अधिवास नीति से पहली बार लद्दाख में स्थानीय युवाओं को प्रशासनिक और पेशेवर संस्थानों में प्रभावी प्रतिनिधित्व मिलेगा। यह न केवल समान अवसर प्रदान करेगा, बल्कि समुदायों को स्थायित्व और भविष्य की सुरक्षा भी देगा।
  • लैंगिक समानता: लद्दाख की हिल काउंसिलों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण लागू करना एक राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी कदम है। यह प्रावधान लैंगिक न्याय और नेतृत्व में महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा देगा। इसके माध्यम से महिला प्रतिनिधियों को स्थानीय समस्याओं पर सीधी भागीदारी और समाधान की दिशा में प्रभावशाली निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होगा।
  • जनसांख्यिकीय संतुलन: नई अधिवास नीति में 15 वर्षों के स्थानीय निवास को अनिवार्य करने का प्रावधान एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय सुरक्षा उपाय है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बाहरी लोग लद्दाख में भूमि न खरीद सकें और स्थानीय संसाधनों पर दबाव न बढ़े। यह निर्णय पारंपरिक भूमि उपयोग, जल स्रोतों और आजीविका के साधनों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक था।
  • भाषायी संरक्षण: लद्दाख की भाषिक और सांस्कृतिक विरासत देश की सबसे विशिष्ट परंपराओं में से एक है। नई नीति में भोटी, पुर्गी, हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है, जबकि शिना, ब्रोक्सकाट, बल्टी और लद्दाखी जैसी भाषाओं को भी संरक्षण की श्रेणी में रखा गया है। यह कदम सांस्कृतिक समावेशन को मजबूती प्रदान करता है।
  • संवैधानिक मान्यता: लद्दाख के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए कानूनों को लागू किया गया है, जो जम्मू-कश्मीर के पुराने कानूनों से स्वतंत्र हैं। नई अधिवास नीति ने लद्दाख के स्थानीय हितों को पहली बार विधायी और प्रशासनिक स्तर पर स्वीकृति दी है। अब केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को एक स्वतंत्र प्रशासनिक पहचान के साथ विशेष संवैधानिक दृष्टिकोण मिल रहा है।

 

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