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राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC)

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कैबिनेट ने गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) के विकास को मंजूरी दी है। इस परियोजना का उद्देश्य भारत की समृद्ध समुद्री विरासत को प्रदर्शित करना और इसे विश्व का सबसे बड़ा समुद्री विरासत परिसर बनाना है। इसे बंदरगाह, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्लू) द्वारा सागरमाला कार्यक्रम के तहत विकसित किया जा रहा है।

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) के मुख्य बिंदु:

  1. उद्देश्य:
    • भारत की समुद्री विरासत और समृद्ध इतिहास को प्रदर्शित करना।
    • विश्व का सबसे बड़ा समुद्री विरासत परिसर बनाना।
  2. लोथल का महत्व:
    • लोथल, गुजरात में स्थित है और इसे सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख शहर माना जाता है।
    • यह खम्बात की खाड़ी के पास भोगाव और साबरमती नदियों के बीच स्थित है।
    • यहाँ दुनिया का सबसे पुराना मानव निर्मित शुष्क गोदी (2400 ईसा पूर्व) स्थित है, जो उस समय की समुद्री गतिविधियों और ज्वार-भाटा, हवा आदि पर आधारित ज्ञान को दर्शाता है।
  3. प्रमुख परियोजनाएं:
    • विश्व स्तरीय लाइटहाउस संग्रहालय।
    • तटीय राज्य मंडप और समुद्री थीम पर आधारित इको-रिसॉर्ट।

लोथल के बारे में :

लोथल सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization – IVC) के सबसे दक्षिणी स्थलों में से एक है, जो अब गुजरात राज्य के भाल क्षेत्र में स्थित है। इसका निर्माण लगभग 2,200 ईसा पूर्व माना जाता है। यह स्थल एक प्रमुख व्यापार केंद्र के रूप में उभरा, जिसके व्यापारिक संबंध पश्चिम एशिया और अफ्रीका तक थे।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • व्यापारिक संबंध: लोथल मोतियों, रत्नों और गहनों के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था। यहाँ से बने आभूषणों का निर्यात दूर देशों तक किया जाता था, जिससे यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया।
  • नाम का अर्थ: गुजराती में लोथल शब्द “लोथ” और “थाल” के संयोजन से बना है, जिसका अर्थ है “मृतकों का टीला“।
  • प्राचीन बंदरगाह: लोथल का उत्खनन स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र ज्ञात बंदरगाह शहर है, जहां एक शुष्क गोदी की संरचना मिली है। इसने उस समय के समुद्री व्यापार और नौवहन की उन्नत स्थिति को दर्शाया है।

UNESCO विश्व धरोहर स्थल के लिये नामांकन:

  • लोथल को अप्रैल 2014 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामांकित किया गया था।
  • इसका आवेदन यूनेस्को की अस्थायी सूची में लंबित है, जिससे इस स्थल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को वैश्विक मान्यता मिल सके।

भारत की समुद्री विरासत के प्रमुख कालखंड:

  1. प्रारंभिक काल (3000 – 2000 ई.पू.): सिंधु घाटी सभ्यता का मेसोपोटामिया के साथ समुद्री व्यापार संबंध था।
  2. वैदिक युग (2000 – 500 ई.पू.): समुद्री गतिविधियों का सबसे प्रारंभिक संदर्भ ऋग्वेद में मिलता है।
  3. नंद और मौर्य युग (500 – 200 ई.पू.): मगध साम्राज्य की नौसेना को दुनिया की पहली नौसेना माना जाता है।
  4. सातवाहन राजवंश (200 ई.पू. – 220 ई.): सातवाहन शासकों ने जहाजों के अंकन के साथ सिक्के जारी किए।
  5. गुप्त राजवंश (320 – 500 ई.): इस काल में पूर्व और पश्चिम में कई बंदरगाह खोले गए, जिससे यूरोप और अफ्रीका के साथ व्यापार बढ़ा।
  6. मराठा काल: शिवाजी के अधीन मराठा नौसेना ने 500 से अधिक जहाजों के साथ एक मजबूत बल के रूप में विकास किया।
  7. दक्षिणी राजवंश: चोल, चेर, पांड्य और विजयनगर साम्राज्य समुद्री संसाधनों और व्यापार में समृद्ध थे।

इस परियोजना से भारत की ऐतिहासिक समुद्री ताकत को प्रदर्शित करने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद मिलेगी।

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