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परमाणु दायित्व कानून (Nuclear Liability Law) | Ankit Avasthi Sir

Nuclear Liability Law

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Nuclear Liability Law – 

संदर्भ:

भारत अपने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए परमाणु दायित्व कानून (Nuclear Liability Law) में संशोधन की योजना बना रहा है।

  • इस प्रस्तावित बदलाव का उद्देश्य आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी (supplier liability) को सरल बनाना है, ताकि निवेशकों का भरोसा बढ़ाया जा सके और देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा को गति मिल सके।

भारत की न्यूक्लियर दायित्व रूपरेखा

  1. नागरिक परमाणु क्षति के लिए दीवानी दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA) परमाणु दुर्घटना की स्थिति में शीघ्र मुआवज़े के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
  2. ऑपरेटर की जिम्मेदारी:
  • न्यूक्लियर क्षति के लिए सख्त और विशेष रूप से ऑपरेटर की जिम्मेदारी तय करता है।
  • अधिकतम दायित्व: ₹1,500 करोड़।
  1. सरकारी जिम्मेदारी:
  • ₹1,500 करोड़ से अधिक के दावों को सरकार द्वारा पूरा किया जाएगा।
  • कुल अतिरिक्त दायित्व: ~₹2,300 करोड़ (Convention on Supplementary Compensation – CSC के अनुरूप)।
  1. बीमा अनिवार्यता: ऑपरेटरों को अनिवार्य रूप से बीमा करवाना होता है ताकि पीड़ितों को शीघ्र मुआवज़ा मिल सके।
  2. अंतरराष्ट्रीय समझौते में भागीदारी:
  • भारत ने CSC (Convention on Supplementary Compensation) पर 1997 में हस्ताक्षर किए।
  • 2016 में इसका अनुमोदन (ratification) किया गया।
  • CLNDA पहले ही 2010 में लागू हो चुका था।

परमाणु क्षति नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 से जुड़ी मुख्य चिंताएँ (CLNDA):

  1. आपूर्तिकर्ता दायित्व की चिंता:
    • अस्पष्ट बीमा नियम, “परमाणु क्षति” की परिभाषा में अस्पष्टता और धारा 46 के तहत दीवानी मुकदमों की आशंका से विदेशी व घरेलू आपूर्तिकर्ता हिचकते हैं।
    • धारा 17(b) दोषपूर्ण उपकरण या जानबूझकर की गई गलती पर आपूर्तिकर्ता को उत्तरदायी ठहराती है।
  2. विदेशी निवेश में बाधा:
    • CLNDA की शर्तें अंतरराष्ट्रीय मानकों (CSC) से कठोर हैं, जिससे अमेरिका जैसे देशों के साथ परमाणु समझौते प्रभावित हुए हैं।
  1. स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य में रुकावट:
  • यह कानून निवेशकों का विश्वास कमजोर करता है और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की वृद्धि धीमी करता है, जो 2030 तक 500 GW नॉन-फॉसिल लक्ष्य के लिए जरूरी है।
  • जैतापुर जैसी बड़ी परियोजनाएँ (6 GW) देरी का शिकार हैं, जबकि परमाणु ऊर्जा का योगदान केवल 3% है।

कानूनी अनिश्चितता से प्रभावित प्रमुख परियोजनाएँ:

  1. जैतापुर परियोजना (महाराष्ट्र): 2009 में फ्रांस की कंपनी AREVA से समझौता (MoU), बाद में EDF से।
    • EDF ने कानूनी जोखिम पर चिंता जताई, परियोजना अभी भी ठप।
  2. कोव्वाडा परियोजना (आंध्र प्रदेश): भारत-अमेरिका सहयोग प्रस्तावित, लेकिन आपूर्तिकर्ता दायित्व को लेकर प्रगति रुकी।
  3. केवल एक सक्रिय विदेशी भागीदारी: रूस समर्थितकुडनकुलम परमाणु संयंत्र, जो CLNDA से पहले आरंभ हुआ था।

भारत के न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून से जुड़ी मुख्य समस्याएँ:

  1. आपूर्तिकर्ताओं की भागीदारी में हिचकिचाहट: विदेशी आपूर्तिकर्ता अनिश्चित और असीम दावों की आशंका से पीछे हटते हैं।
  2. अनुबंध बनाम कानून टकराव: अनुबंध में उल्लेख न होने पर भी धारा 17(b) और 46 आपूर्तिकर्ताओं को उत्तरदायी बनाती हैं, जिससे नियामकीय टकराव उत्पन्न होता है।
  3. बीमा को लेकर अस्पष्टता: आपूर्तिकर्ता को कितनी बीमा राशि सुरक्षित रखनी है, यह स्पष्ट नहीं – जिससे वित्तीय योजना प्रभावित होती है।
  4. नीतिगत विरोधाभास: सरकार कानून को CSC के अनुरूप बताती है, लेकिन अदालतें विधायी मंशा की बजाय लिखित क़ानून को आधार बनाती हैं।

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