चर्चा में क्यों ?
हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने NDA सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिनों के महत्वपूर्ण कार्यों की जानकारी दी और बताया कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation One Election) के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं (Lok Sabha and state assemblies) के लिए एक साथ चुनाव कराने की योजना इस सरकार के मौजूदा कार्यकाल के भीतर लागू की जाएगी
- एक उच्च स्तरीय समिति (high-level committee), जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की, ने मार्च में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की। इसे “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के नाम से जाना जाता है।
- समिति ने सुझाव दिया कि सबसे पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हों, इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों को समन्वयित किया जाए।
क्या है “एक देश, एक चुनाव” (What is “One Nation One Election):
“एक देश, एक चुनाव” (One Nation One Election) का मतलब है कि भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाएं। इसका मतलब है कि हमें भारत के चुनावी सिस्टम (electoral system) को इस तरह बदलना होगा कि राज्य और केंद्र के चुनाव एक ही समय पर हों।
इस व्यवस्था में, लोग एक ही दिन और एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों के लिए वोट देंगे, इस प्रणाली का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है।
अगर यह प्रणाली लागू होती है, तो (If this system is implemented, then):
- समान समय पर मतदान (Same-time voting): लोकसभा (केंद्र सरकार) और राज्य विधानसभा के चुनाव एक ही दिन या एक ही समय में होंगे।
- समय की बचत (Time saving): इससे बार-बार चुनावी प्रक्रिया और चुनावी खर्चे कम होंगे।
- प्रशासनिक सुविधा (Administrative convenience): चुनावी कामकाज और चुनावी बंधन के लिए एक ही समय पर व्यवस्था की जाएगी, जिससे प्रशासन को आसानी होगी।
भारत में समानांतर चुनावों का इतिहास (History of Simultaneous Elections in India):
भारत में समानांतर चुनावों (Simultaneous Elections) का मतलब है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं। यह व्यवस्था स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में 1952, 1957, और 1962 में लागू की गई थी। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, राज्य विधानसभाओं का जल्दी भंग होना, और क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए अलग-अलग चुनाव की ज़रूरत के कारण यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
- 2019 में, केवल चार राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम) में राज्य विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ हुए।
समानांतर चुनाव पर विभिन्न समितियाँ (Various Committees on Simultaneous election):
- समानांतर चुनाव (Simultaneous election) का विचार पहली बार 1983 में चुनाव आयोग की रिपोर्ट में उठाया गया था। इसके बाद, 1999 में कानून आयोग (Law Commission) की रिपोर्ट में भी इसे शामिल किया गया।
- प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में इस विचार को फिर से पेश किया, और इसके बाद नीति आयोग (Niti Aayog) ने 2017 में इस पर एक कामकाजी कागज (working paper) तैयार किया।
- कानून आयोग (Law Commission) ने 2018 में कहा कि समानांतर चुनाव को लागू करने के लिए कम से कम “पाँच संवैधानिक सिफारिशें” (five constitutional recommendations) करनी होंगी।
- जून 2019 में, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस मुद्दे पर एक समिति बनाई जाएगी और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक होगी।
- जुलाई 2022 में, समानांतर संसदीय और विधानसभा चुनावों के मुद्दे को 22वें कानून आयोग के पास भेजा गया।
- कानून आयोग ने इस बारे में कई सुझाव दिए और संविधान में समानांतर चुनावों के लिए एक नया अध्याय जोड़ने की सिफारिश की।
इस पर चर्चा क्यों हो रही है (Why is this being discussed):
- 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले (Red Fort) से दिए अपनी स्पीच में भी प्रधानमंत्री ने वन नेशन-वन इलेक्शन (One Nation-One Election) की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति में बाधा पैदा कर रहे हैं।
- यह पहली बार नहीं था, जब प्रधानमंत्री जी ने इस प्रक्रिया का जिक्र किया हो इससे पहले भी कई बार इसका जिक्र किया जा चुका है, भाजपा के घोषणा पत्र (manifesto) में भी इसका जिक्र है।
- इसी प्रक्रिया पर विचार के लिए एक सितंबर 2023 मे उच्च स्तरीय कमेटी (high-level committee) का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) ने की थी, इसी कारण इस कमेटी को “कोविन्द पैनल” (Kovind Panel) भी कहा जाता है ।
- कमेटी ने 14 मार्च 2024 में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” से जुड़े मुद्दों का अध्ययन करने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu ) को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
उच्च स्तरीय समिति की मुख्य सिफारिशें (Key Recommendations of the High Level Committee):
समानांतर चुनावों की बहाली (Restoring simultaneous elections):
- समिति ने समानांतर चुनावों के चक्र को फिर से बहाल करने की ज़रूरत पर बल दिया, जो भारत की स्वतंत्रता के शुरुआती दशकों के बाद बाधित हो गया था।
- समिति ने संविधान में संशोधन की सिफारिश की ताकि लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव 2029 तक कराए जा सकें।
- समिति ने उल्लेख किया कि हर साल कई चुनावों का आयोजन विभिन्न पक्षों, जैसे कि सरकार, व्यवसाय, श्रमिक, न्यायालय, राजनीतिक दल, उम्मीदवार, और नागरिक समाज पर भारी दबाव डालता है।
दो-चरणीय दृष्टिकोण (Two-stage approach): समिति ने समानांतर चुनावों के लिए दो-चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश की।
- पहले चरण में, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को समन्वित किया जाना चाहिए।
- दूसरे चरण में, नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ समन्वित किया जाना चाहिए।
पहले चरण की समन्वयन की प्रक्रिया (Achieving synchronization for first step): पहले चरण के समन्वयन के लिए, सरकार को एक बार के लिए एक निश्चित तिथि चुननी होगी जो लोकसभा चुनाव के बाद तय की जाएगी।
- इस तिथि के बाद, उन सभी राज्य विधानसभाओं की अवधि समाप्त हो जाएगी जिनके चुनाव हुए हैं, और साथ ही संसद की अवधि भी समाप्त हो जाएगी।
- इन परिवर्तनों को लागू करने के लिए, पैनल ने संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) में संशोधन की सिफारिश की है।
- इन संशोधनों के लिए राज्यों की पुष्टि की आवश्यकता नहीं होगी।
अनुच्छेद 324A की प्रविष्टि और एकल मतदाता सूची और चुनाव पहचान पत्र (Insertion of Article 324A and single voter list and election identity card):
- संविधान में कुछ संशोधन, जैसे कि पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए अनुच्छेद 324A की प्रस्तावना और एकल मतदाता सूची तथा एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन की सिफारिश की गई।
- इन संशोधनों को राज्यों द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होगी।
हंग हाउस की स्थिति मे (In case of a hung house): यदि किसी भी संकट, अविश्वास प्रस्ताव या किसी अन्य घटना के कारण नया सदन गठित करने के लिए ताजे चुनाव कराए जाने चाहिए।
- आवश्यक संविधान संशोधन विधेयक राज्यों की पुष्टि के बिना पेश किए जाएंगे।
लॉजिस्टिक योजना (Logistic planning): चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग को लॉजिस्टिक व्यवस्थाओं के लिए योजनाएं और अनुमान पहले से तैयार करने चाहिए, जिसमें ईवीएम और वीवीपैट्स जैसे उपकरणों की खरीद और मतदान कर्मियों तथा सुरक्षा बलों की तैनाती शामिल है।
एकल मतदाता सूची और पहचान पत्र (Single voter list and identity card): अनुच्छेद 325 में संशोधन करने की सिफारिश की गई है ताकि एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र का निर्माण किया जा सके, जिसे राज्यों द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होगी।
Constitutional Provision |
Description |
Article 83 |
Specifies that the Lok Sabha (House of the People) shall continue for five years from its first meeting unless dissolved earlier. |
Article 172 |
Declares that a State Legislative Assembly shall continue for five years from the date of its first meeting. |
Article 324 |
Empowers the Election Commission of India (ECI) to supervise, direct, and control the preparation of electoral rolls and conduct elections to the Parliament, State Legislatures, and the offices of the President and Vice-President. |
Article 356 |
Allows for the imposition of President’s Rule in a State in case of failure of constitutional machinery, leading to direct rule by the President through the Governor. |
Representation of People Act, 1951 |
Provides the legal framework for conducting elections in India, covering aspects such as electoral rolls, qualifications for membership, and election conduct. |
एक राष्ट्र, एक चुनाव के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of One Nation One Election):
- वित्तीय बोझ में कमी (Reduction in financial burden): ONOE चुनाव आयोग का खर्च घटाएगा, जिससे कुल खर्च ₹4500 करोड़ तक आ सकता है। एक ही मतदाता सूची का उपयोग होने से समय और पैसा बचेगा।
- राजनीतिक दलों की वित्तीय स्थिति में सुधार (Improvement in financial condition of political parties): एक साथ चुनाव होने से फंडिंग की डुप्लिकेशन नहीं होगी और छोटे दल बेहतर प्रबंधन कर सकेंगे।
- नीति स्थिरता और शासन में सुधार (Improvement in policy stability and governance): सरकार की नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी और चुनावों से संबंधित व्यवधान कम होंगे।
- प्रशासनिक दक्षता (Administrative efficiency): सरकारी अधिकारी चुनावी कामों में व्यस्त नहीं रहेंगे, जिससे प्रशासनिक कार्य बेहतर होंगे।
- सुरक्षा बलों की कमी (Reduction in security forces): एक साथ चुनाव होने से सुरक्षा बलों का उपयोग अधिक प्रभावी होगा और लागत कम होगी।
- मतदाता मतदान में वृद्धि (Increase in voter turnout): चुनाव एक साथ होने से वोट डालना आसान होगा, जिससे मतदान बढ़ेगा।
- लुभावनी घोषणाओं में कमी और राज्य वित्त में सुधार (announcements and improvement in state finances): ONOE से मुफ्त योजनाओं की संख्या घटेगी और राज्यों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी।
- पार्टी बदलने की संभावना कम (Less chance of party switching:) नियमित चुनावों से पार्टी बदलने की संभावना कम होगी, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के खिलाफ तर्क (Arguments against One Nation One Election):
- जवाबदेही में कमी (Decrease in accountability): नियमित चुनाव सरकार को लोगों की इच्छाओं के प्रति उत्तरदायी बनाते हैं। ONOE से सरकारों में स्वायत्तता बढ़ सकती है।
- संघीयता के खिलाफ ( Against federalism): ONOE से सत्ता केंद्रीकृत होगी, राज्य दलों की भूमिका कम होगी, और राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
- लोकतंत्र की भावना के खिलाफ (Against the spirit of democracy): यह चुनावों के चक्र को कृत्रिम रूप से निर्धारित करता है और मतदाताओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- मतदाता व्यवहार पर प्रभाव (Effect on voter behaviour): एक साथ चुनाव से मतदाता एक ही पार्टी को वोट दे सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा।
- लागत में वृद्धि (Increase in cost): ONOE से ईवीएम और वीवीपीएटी की लागत बढ़ेगी, और चुनाव खर्च भी बढ़ेगा।
- विघटन की चुनौतियाँ (Challenges of dissolution): लोकसभा का जल्द विघटन होने पर क्या सभी राज्यों में चुनाव होंगे, यह एक बड़ा सवाल है।
- राष्ट्रीय दलों की प्राथमिकता (Priority to national parties): ONOE से राष्ट्रीय दलों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे क्षेत्रीय दलों की स्थिति कमजोर होगी।
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